महामारी के बाद, पहली बार बाल टीकाकरण में आया सुधार, 40 लाख अधिक बच्चों को मिली खुराक

'शून्य खुराक' वाले बच्चों की संख्या जहां महामारी के दौरान बढ़कर 1.81 करोड़ पर पहुंच गई थी, वो 2022 में घटकर 1.43 करोड़ पर पहुंच गई है
भारत में एक छोटी लड़की का टीकाकरण करते वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ; फोटो: आईस्टॉक
भारत में एक छोटी लड़की का टीकाकरण करते वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ; फोटो: आईस्टॉक
Published on

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने टीकाकरण को लेकर जो नए आंकड़े जारी किए हैं, उनसे आशाजनक संकेत मिले हैं। आंकड़े दर्शाते हैं कि महामारी के दौरान वैश्विक टीकाकरण सेवाओं में आई ऐतिहासिक गिरावट के बाद एक बार फिर उसमें सुधार देखने को मिला है।

गौरतलब है कि कोविड-19 महामारी ने बच्चों के टीकाकरण को भी बुरी तरह प्रभावित किया था। इसकी वजह से 2020 के दौरान दुनिया भर में करीब 2.3 करोड़  बच्चे नियमित टीकाकरण से वंचित रह गए थे।

वहीं जानकारी मिली है कि 2021 की तुलना में 2022 के दौरान 40 लाख अतिरिक्त बच्चों को टीके लगे हैं। जो स्पष्ट तौर पर कुछ देशों में बाल टीकाकरण से जुड़ी सेवाओं में सुधार को दर्शाता है। हालांकि इसके बावजूद अभी भी करोड़ों बच्चे जीवन रक्षक टीकों से वंचित हैं। विशेष रूप से कमजोर देशों में, अभी भी टीकाकरण की स्थिति महामारी से पहले की तुलना में कम है। इसकी वजह से बच्चों में बीमारी के फैलने का गंभीर खतरा अभी भी बना हुआ है।

नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक दुनिया भर में अभी भी 2.05 करोड़ बच्चे डिप्थीरिया, टिटनेस और काली खांसी से बचाव के लिए लगाए जाने वाले डीपीटी-1 के एक या उससे अधिक खुराक लेने से वंचित रह गए थे। वहीं 2021 में यह आंकड़ा 2.45  करोड़ दर्ज किया गया था। गौरतलब है कि डीपीटी वैक्सीन को, आमतौर पर टीकाकरण कवरेज के वैश्विक संकेतक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस का कहना है कि, “ये आंकड़े उत्साहजनक हैं और इसके लिए वो लोग बधाई के पात्र हैं जिन्होंने टीकाकरण में दो साल की लगातार गिरावट के बाद, इन जीवरक्षक सेवाओं को बहाल करने के लिए कड़ी मेहनत की है।”

लेकिन साथ ही उनका यह भी कहना है कि वैश्विक और क्षेत्रीय औसत इसकी पूरी कहानी बयां नहीं करते और वो गम्भीर एवं निरंतर चली आ रही असमानताओं को छुपा देते हैं। जब देश या क्षेत्र पीछे छूटते हैं, तो उसका खामियाजा बच्चों उठाना पड़ता है।

1.43 करोड़ बच्चों को नहीं लगा है एक भी टीका

यह सही है कि 2022 में वैश्विक स्तर पर बाल टीकाकरण में सुधार आया है लेकिन इसके बावजूद वो अभी भी महामारी से पहले की तुलना में कम है। गौरतलब है कि 2019 में टीकाकरण से वंचित रह गए बच्चों संख्या 1.84 करोड़ दर्ज की गई थी। कुछ ऐसी ही स्थिति उन बच्चों की है जिन्हें अब तक एक भी वैक्सीन नहीं दी गई है।

आंकड़ों के अनुसार 'शून्य खुराक' वाले बच्चों की संख्या जहां 2019 में 1.29 करोड़ थी वो महामारी के दौरान बढ़कर 1.81 करोड़ पर पहुंच गई थी। वहीं 2022 में यह घटकर 1.43 करोड़ पर पहुंच गई है। लेकिन इसके बावजूद यह आंकड़ा 2019 की तुलना में कहीं ज्यादा है।

यदि भारत में इन जीवनरक्षक टीकाकरण से वंचित रह गए बच्चों के आंकड़ों को देखें तो जहां इस दौरान 20.75 लाख बची बीसीजी की खुराक से वंचित रह गए थे। वहीं डीटीपी 1 के मामले में यह आंकड़ा 11.3 लाख दर्ज किया गया। इसी तरह 2022 के दौरान 15.8 लाख बच्चे डीटीपी 3, हेपेटाइटिस बी 3 की खुराक से 15.7 लाख बच्चे, पीसीवी3 की खुराक से 76.6 लाख बच्चे वंचित रह गए।

रिपोर्ट के अनुसार टीकाकरण में आया यह सुधार सब जगह एक सा नहीं है। इसमें काफी विषमता है। इस मामले में जहां भारत और इंडोनेशिया जैसे साधन संपन्न देश जहां बच्चों की बड़ी आबादी है वो प्रगति कर रहे हैं। वहीं मध्यम और निम्न आय वाले देशों में सुधार की यह दर धीमी रही यहां तक कि कई देशों में टीकाकरण की दर में 2022 में भी गिरावट देखी गई।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार महामारी के दौरान जिन 73 देशों में टीकाकरण में गिरावट देखी गई थी। उनमें से 15 देश महामारी से पहले की स्थिति में लौट आए हैं। वहीं 24 दोबारा बहाली की राह पर अग्रसर है। लेकिन 34 देशों में स्थिति खराब है वहां या तो इस दिशा में होती प्रगति थम गई है या उसमें गिरावट दर्ज की गई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक अन्य दूसरे टीकों के साथ खसरे के टीकाकरण की दर में सुधार नहीं आया है। बता दें कि खसरा एक बेहद संक्रामक रोगजनक होता है। इससे जुड़े आंकड़े दर्शाते हैं कि पिछले साल करीब 2.19 करोड़ बच्चे अपने जीवन के पहले वर्ष के दौरान खसरे की नियमित खुराक से चूक गए थे। यह आंकड़ा 2019 की तुलना में  27 लाख ज्यादा है। वहीं 2022 के दौरान 1.33 करोड़ बच्चों को खसरे की दूसरी खुराक नहीं मिल पाई थी। इसकी वजह से जिन क्षेत्रों में टीकाकरण की दर कम है वहां इस बीमारी के प्रसार का खतरा बढ़ गया है।

आंकड़ों में यह भी सामने आया है कि जिन देशों में महामारी से पहले के वर्षों में नियमित टीकाकरण किया जा रहा था वो अपनी टीकाकरण सेवाओं को स्थिर रखने में कहीं ज्यादा सफल रहे हैं।

यही वजह है कि दक्षिण एशिया, जिसने महामारी से पहले के दशक में टीकाकरण में क्रमिक वृद्धि दर्ज की थी, उसने दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन जैसे गिरावट झेलने वाले क्षेत्रों की तुलना अधिक तेजी से बेहतर सुधार का प्रदर्शन किया है। वहीं अफ्रीका जो पहले से ही इस मामले में पिछड़ रहा है वो बढ़ती आबादी के चलते अतिरिक्त चुनौतियों का सामना करने को मजबूर है।

इस बारे में यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल का कहना है कि, "सकारात्मक प्रवृत्ति के पीछे एक गंभीर चेतावनी भी छिपी है।" उनके अनुसार जब तक ज्यादातर देश नियमित टीकाकरण में आई कमियों को दूर नहीं करते, हर जगह बच्चों के इन बीमारियों से संक्रमित होने के साथ मृत्यु का जोखिम बना रहेगा।

खसरा जैसे वायरस सीमाओं को नहीं पहचानते। टीकाकरण से चूक गए बच्चों को खुराक मिल सके इसके लिए प्रयासों को तत्काल सशक्त किए जाने की जरूरत है। साथ ही टीकाकरण सेवाओं को महामारी से पहले के स्तर पर बहाल करने और उसमें सुधार करने की आवश्यकता है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in