छत्तीसगढ़: ग्रामीण सीएचसी में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 91.2 फीसदी पद खाली

छत्तीसगढ़ में दूरदराज और नक्सल प्रभावित इलाकों में स्वास्थ्य विभाग चिकित्सकों को वेतन के अलावा 50 हजार तक अतिरिक्त भत्ता भी दिया जा रहा है
File Photo: Jyotsna Singh
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छत्तीसगढ़ राज्य विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है। ग्रामीण इलाकों में यह समस्या और भी गंभीर है। ग्रामीण स्‍वास्‍थ्‍य सांख्यिकी 2018 के अनुसार कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर (सीएचसी) में स्‍वीकृत संख्‍या 652 की तुलना में विशेषज्ञों की रिक्त्यिां 595 (91.2 प्रतिशत) है। वहीं पीएचसी में स्‍वीकृत संख्‍या 793 की तुलना में डाक्‍टरों की रिक्तियां 434 (54.7प्रतिशत) है। यह चौकाने वाले आंकड़े 15वें वित्‍त आयोग के अध्‍यक्ष एनके सिंह की अध्‍यक्षता में आयोग के सदस्‍य और वरिष्‍ठ अधिकारियों की छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकत के दौरान सामने आए।

कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर पर मात्र 6 प्रतिशत सर्जन की उपलब्धता है। प्रदेश में सीएचसी पर 169 सर्जन की जरूरत है जिसमें से 163 पदों की स्वीकृति है, लेकिन सिर्फ 11 सर्जन इन केंद्रों पर काम कर रहे हैं। इसी तरह इन केंद्रों पर गायनाकोलॉजिस्ट के 163 स्वीकृत पदों में 21 पदों पर ही डॉक्टर काम कर रहे हैं। फिजिशियन के 13 पद और बाल रोग विशेषज्ञ के 12 पदों पर ही चिकित्सक काम कर रहे हैं।

शहरी और ग्रामीण इलाका मिलाकर पूरे छत्तीसगढ़ में 1525 विशेषज्ञ डॉक्टर के पद स्वीकृत हैं इनमें से सिर्फ 175 काम कर रहे हैं। इसी तरह, मेडिकल ऑफिसर की 2,048 स्वीकृत पदों पर महज 1469 चिकित्सक काम कर रहे हैं।

'डाउन टू अर्थ' से बातचीत के दौरान छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की सचिव निहारिका बारिक सिंह ने बताया कि सरकार इस समस्या से निजात पाने के लिए पूरी कोशिश कर रही है। सरकार की ओर से दुर्गम क्षेत्रों में काम करने वाले चिकित्सकों को विशेष भत्ता भी दिया जाता है। इसके अलावा सरकार ने मेडिकल कॉलेज से पास होने वाले डॉक्टर्स को भी 2 साल गांव भेजने के लिए बॉन्ड की राशि को पांच लाख से बढ़ाकर 25 लाख कर दिया है ताकि वे ग्रामीण इलाकों में सेवा दे सकें।

शिशु मृत्यु दर में टॉप 5 में प्रदेश, ग्रामीण इलाकों की हालत खराब

छत्तीसगढ़ का शिशु मृत्यु दर 39 है और इस तरह यह राज्य मध्यप्रदेश (47), असम (44), ओडिसा (44), उत्तरप्रदेश (43) और राजस्थान (41) के साथ इस मामले में शीर्ष पांच राज्यों में आता है। इसमें सबसे गंभीर बात छत्तीसगढ़ के ग्रामीम इलाकों में शिशु मृत्यु दर 41 है जो कि शहरी इलाकों से 10 अधिक है। शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 जीवित जन्मे शिशुओं मे से एक वर्ष या इससे कम उम्र मे मर गये शिशुओं की संख्या है। राज्य का मातृत्व मृत्यु दर 173 है जो कि देश के दर 130 से बहुत ज्यादा है। मातृत्व मृत्यु दर को प्रति 1,00,000 जन्म के दौरान मृत्यु के अनुपात को दिखाता है।

क्या नक्सल समस्या की वजह से नहीं आ रहे डॉक्टर

सचिव निहारिका बारिक सिंह ने बताया कि मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ के पास शुरुआत में एक ही मेडिकल कॉलेज था जिसमें मुश्किल से 100 सीटें थी। इसके बाद अब पांच और कॉलेज की स्थापना हुई है जिसके बाद मेडिकल की सीट 650 हो गई है। इस वजह से चिकित्सकों की कमी इस राज्य में शुरू से ही रही। उन्होंने बताया कि पूरे देश की तरह इस प्रदेश में भी चिकित्सक ग्रामीण इलाकों में नहीं जाना चाहते हैं। वे मानती हैं कि दुर्गम और दूरदराज के गांव और कुछ स्थानों पर नक्सली समस्या भी इसके पीछे की वजह हो सकती है। हालांकि सचिव ने हाल ही में किए गए प्रयासों को गिनाते हुए कहा कि भविष्य में इस समस्या से निजात मिल सकेगी। उन्होंने कहा कि बॉन्ड की राशि बढ़ाने के बाद अगले दो साल में चिकित्सकों की संख्या बढ़ेगी। पहले मेडिकल कॉलेज से निकलने के बाद डॉक्टर बॉन्ड की पांच लाख की राशि भरकर बाहर चले जाते थे, लेकिन अब उनके लिए 25 लाख भरना मुश्किल होगा।

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