भारत में बेची जाने वाली 70 फीसदी एंटीबायोटिक दवाएं अस्वीकृत या प्रतिबंधित पाई गई: अध्ययन

भारतीय फार्मास्युटिकल या दवा बाजार के विश्लेषण में पाया गया है कि, 2020 में बाजार में मौजूद 70.4 प्रतिशत फिक्स्ड-डोज एंटीबायोटिक फॉर्मूलेशन या तो अस्वीकृत थे या प्रतिबंधित थे।
फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स, शेरोनडॉन
फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स, शेरोनडॉन
Published on

भारतीय फार्मास्युटिकल या दवा बाजार के विश्लेषण में पाया गया है कि, 2020 में बाजार में मौजूद 70.4 प्रतिशत फिक्स्ड-डोज एंटीबायोटिक फॉर्मूलेशन या तो अस्वीकृत थे या प्रतिबंधित थे।

विश्लेषण, जिसका शीर्षक 'भारत में निश्चित खुराक संयोजनों के विपणन का नियामक प्रवर्तन: प्रणालीगत एंटीबायोटिक दवाओं का एक केस अध्ययन' है। इस अध्ययन से पता चलता है कि फिक्स्ड-डोज कॉम्बिनेशन (एफडीसी) एंटीबायोटिक बिक्री में इन दवाओं की हिस्सेदारी 15.9 प्रतिशत है। यह अध्ययन जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल पॉलिसी एंड प्रैक्टिस में प्रकाशित किया गया है। 

विश्लेषण में पाया गया है कि, केंद्र द्वारा अस्वीकृत और प्रतिबंधित फिक्स्ड-डोज कॉम्बिनेशन (एफडीसी) दवाओं को हटाने की सरकारी पहल काफी हद तक अप्रभावी रही है। 2020 में, भारत में बेचे गए अधिकांश एंटीबायोटिक फॉर्मूलेशन अस्वीकृत या प्रतिबंधित थे। शोधकर्ताओं ने कहा कि इन पर अंकुश लगाने के लिए सरकार द्वारा और निगरानी किए जाने की जरूरत है।

क्या होती हैं फिक्स्ड-डोज कॉम्बिनेशन (एफडीसी) दवाएं?

फिक्स्ड-डोज कॉम्बिनेशन (एफडीसी), दवाएं वे होती हैं जिनमें एक ही दवा में दो या दो से अधिक सक्रिय फार्मास्युटिकल अवयवों (एपीआई) का मिश्रण होता है, जो आमतौर पर एक निश्चित अनुपात में निर्मित होते हैं।

अध्ययन में पाया गया कि, कुल एंटीबायोटिक बिक्री के अनुपात के रूप में, एफडीसी की बिक्री 2008 में 32.9 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 37.3 प्रतिशत हो गई।

हालांकि, अध्ययन में यह भी पाया गया कि, बाजार में एंटीबायोटिक एफडीसी फॉर्मूलेशन की कुल संख्या जो 2008 में 574 से 2020 में गिरकर 395 रह गई, लेकिन अधिकांश फॉर्मूलेशन यानी 70.4 प्रतिशत या 395 में से 278 अस्वीकृत या प्रतिबंधित पाए गए।

क्या है रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर)?

इस अध्ययन ने चिकित्सा बिरादरी के बीच चिंता बढ़ा दी है, खासकर जब से रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) दिन पर दिन बढ़ रहा है। एएमआर तब होता है जब रोग फैलाने वाले - बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी समय के साथ बदलते हैं और इन पर दवाओं का असर नहीं होता है, जिससे संक्रमण का इलाज करना कठिन हो जाता है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के मुताबिक, रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) की मूक महामारी दुनिया भर के सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा है। जिसका स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, आजीविका, अर्थव्यवस्था और विकास पर भारी प्रभाव पड़ता है।

एंटीबायोटिक मनुष्य के स्वास्थ्य, पशुधन, मत्स्य पालन और फसलों में उनके अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग के साथ-साथ अस्पतालों, खेतों और कारखानों में गलत तरीके से अपशिष्ट प्रबंधन के अलावा अन्य कारणों से अप्रभावी हो रहे हैं।

यहां बताते चले कि हर साल 18 से 24 नवंबर को विश्व एएमआर जागरूकता सप्ताह के रूप में मनाया जाता है।

इस साल के विश्व एएमआर जागरूकता सप्ताह के दौरान इस मुद्दे को उजागर करने के लिए, आज यानी 20 नवंबर को सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) संयुक्त रूप से एक राष्ट्रीय परामर्श का आयोजन कर रहे हैं, जिसका विषय 'भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एएमआर को रोकने और नियंत्रित करने के लिए कार्रवाई' है।

अध्ययन को लेकर, विशेषज्ञों ने कहा कि, नियमों को लागू करने वालों (नियामक) ने इस मुद्दे से निपटने के लिए कई पहल की हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिबंध लगे हैं। हालांकि, ऐसे प्रयासों के बावजूद, कई अस्वीकृत और प्रतिबंधित एफडीसी बाजार में बने हुए हैं।

अध्ययन के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर रोगाणुरोधी प्रतिरोध के बढ़ते स्तर के कारण एंटीबायोटिक एक विशेष रूप से महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

विशेषज्ञों ने कहा कि, एक मजबूत नीति की जरूरत है, कई डॉक्टर विस्तृत नैदानिक विश्लेषण से बचते हैं, और एफडीसी लिखते हैं। जब तक नियामक इन संयोजनों के निर्माण और उपलब्धता को नियंत्रित नहीं करते, तब तक कई डॉक्टर इन्हें इसी तरह लिखना जारी रखेंगे।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in