भारत में 67 लाख बच्चे ऐसे, जो 24 घंटे से अधिक समय तक रहते हैं पूरी तरह से भूखे

दुनिया के 92 देशों में जीरो फूड चिल्ड्रन का अध्ययन किया गया, जिनमें भारत में ऐसे बच्चों की संख्या आधे से अधिक पाई गई
फोटो साभार : सीएसई
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निम्न और मध्य आय वाले देशों में कई बच्चों को विभिन्न सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय कारणों से पर्याप्त पौष्टिक भोजन तक पहुंचने में भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। जिसके कारण अल्पपोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए भारी चिंता के रूप में उभर रही है।

जेएएमए नेटवर्क ओपन, पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि नवजात शिशुओं को छह महीने की उम्र तक केवल स्तनपान पर निर्भर रहना चाहिए। छह महीने की उम्र के बाद, शिशुओं और छोटे बच्चों की बढ़ती पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अकेले स्तन का दूध पर्याप्त नहीं है।

अध्ययन के दौरान भारत में लगभग 67 लाख बच्चे ऐसे पाए गए, जिन्होंने 24 घंटों के दौरान कुछ नहीं खाया। इन बच्चों को जीरो फूड की श्रेणी में रखा गया। जीरो फूड चिल्ड्रन का आशय है कि 6 से 23 माह की उम्र के वे  बच्चे जिन्होंने पिछले 24 घंटों में कोई दूध, या भोजन नहीं खाया हो।

अध्ययन के मुताबकि भारत में जीरो फूड चिल्ड्रन की संख्या अब तक की सबसे अधिक है। यह अध्ययन 92 देशों पर किया गया था और भारत में पाए गए जीरो फूड चिल्ड्रन की संख्या इन 92 देशों के बच्चों की संख्या के मुकाबले लगभग आधी है। भारत की यह दर गिनी, बेनिन, लाइबेरिया और माली जैसे पश्चिम अफ्रीकी देशों में प्रचलित दर के बराबर है।

जीरो-फूड चिल्ड्रन यानी बिना भोजन के बच्चों की संख्या के मामले में नाइजीरिया दूसरे स्थान पर है (962000), इसके बाद पाकिस्तान (849000), इथियोपिया (772000) और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (362000) हैं।

जनसंख्या स्वास्थ्य और भूगोल के प्रोफेसर सुब्रमण्यम और हार्वर्ड सेंटर फॉर पॉपुलेशन एंड डेवलपमेंट स्टडीज के वैज्ञानिक रॉकली किम ने 92 निम्न और मध्यम आय वाले देशों के छह से 23 महीने की उम्र के 276,379 बच्चों का विश्लेषण किया, जिनकी देखभाल करने वालों ने उनके भोजन के बारे में जानकारी दी थी।

शोधकर्ताओं ने 92 निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 2010 और 2022 के बीच एकत्र किए गए राष्ट्रीय आंकड़ों का उपयोग किया।

अध्ययन में पाया गया कि बिना भोजन वाले बच्चे अध्ययन आबादी का 10.4 फीसदी थे। शून्य-भोजन वाले बच्चों का प्रचलन देशों के बीच व्यापक रूप से फैला हुआ है। कोस्टा रिका में, प्रसार 0.1 फीसदी था, गिनी में, 21.8 फीसदी।

भारत में, जहां अध्ययन के लगभग आधे बिना भोजन वाले बच्चे थे, जिनका प्रसार 19.3 फीसदी था।

अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, बिना भोजन वाले बच्चों की व्यापकता विकास की इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान शिशु और छोटे बच्चों के आहार प्रथाओं में सुधार और अधिकतम पोषण सुनिश्चित करने के लिए लक्षित हस्तक्षेप की आवश्यकता को उजागर करती है। यह मुद्दा पश्चिम और मध्य अफ्रीका और भारत में विशेष रूप से जरूरी है।

 6 से 23 माह के उम्र के बच्चों के लिए निरंतर स्तनपान के अलावा पर्याप्त खाद्य पदार्थों की शुरुआत अधिकतम पोषण सबसे महत्वपूर्ण है।

शोध में पर्याप्त भोजन के कम अवधि और लंबे समय के फायदों को भी उजागर किया है, जैसे मृत्यु दर, कुपोषण, बौनापन, कम वजन और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी के खतरों का कम होना शामिल है। साथ ही बच्चों का मानसिक विकास तेजी से होता है, जो बच्चों के भविष्य की नींव रखता है।

हार्वर्ड द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि कुछ देशों में बिना भोजन के बच्चों की प्रचलन दर 21 फीसदी तक है।

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