सरकारी ढिलाई से बिहार में चमकी और तेज बुखार से 51 बच्चों की मौत

तेज गर्मी की वजह से बिहार के मुजफ्फरपुर में एईएस बीमारी की चपेट में आने से बच्चों की मौत हो रही है। जिसे रोकने में प्रशासन विफल साबित हो रहा है।
मुजफ्फरपुर के अस्पताल में भर्ती एईएस बीमारी से पीड़ित बच्चा। फोटो: पुष्यमित्र
मुजफ्फरपुर के अस्पताल में भर्ती एईएस बीमारी से पीड़ित बच्चा। फोटो: पुष्यमित्र
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पुष्यमित्र

मुजफ्फरपुर में गरमी के मौसम में बच्चों के लिए काल बनने वाला एक्यूट इन्सेफलायटिस सिंड्रोम (एईएस) का कहर इस साल फिर लौट आया है। स्थानीय मीडया में आई खबरों के मुताबिक, इस साल अब तक इस रहस्यमय बीमारी से 51 से 55 बच्चों की मौत हो चुकी है। सोमवार को एक ही दिन में 20 बच्चे अकाल कलवित हो गए। हालांकि रविवार को जारी सरकारी आंकड़े अब तक 28 मौतों की तस्दीक कर रहे हैं और बता रहे हैं कि 103 बच्चे इस रोग से पीड़ित हैं। ये बच्चे मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, वैशाली, शिवहर और पूर्वी चंपारण जिले के हैं और इनमें से ज्यादातर मुजफ्फरपुर के दो अस्पतालों में भर्ती हैं। स्वास्थ्य विभाग इस बीमारी को हाइपो ग्लाइसेमिया का नाम दे रहा है। इस मामले में सबसे परेशान करने वाली बात यह है कि पिछले साल तक ऐसा लगने लगा था कि विभाग ने इस रहस्यमय बीमारी पर काबू पा लिया है, मगर इस वर्ष अचानक इस रोग के शिकार बच्चों की संख्या बढ़ने लगी है। 

मुजफ्फरपुर शहर के दो बड़े अस्पताल एसकेएमसीएच और केजरीवाल अस्पताल में इन दिनों चमकी और तेज बुखार से पीड़ित बच्चे बड़ी संख्या में पहुंच रहे हैं। उनकी छटपटाहट और उनके परिजनों की व्याकुलता से माहौल गमगीन है। इन रोग के विशेष इलाज के लिए एसकेएमसीएच में बने दो पीआइसीयू पूरी तरफ भर चुके हैं, तीसरे पीआइसीयू को खोलने की कवायद चल रही है। पिछले महज एक हफ्ते में 100 से अधिक ऐसे मरीज इन दोनों अस्पतालों में पहुंच चुके हैं। रविवार की रात तक 31 बच्चों की मौत की खबर थी और सोमवार को 20 अन्य बच्चों की मौत की सूचना है। इन बच्चों में बदन ऐंठने और तेज बुखार के लक्षण बताए जाते हैं। 

हालांकि बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने रविवार को प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया था कि इस साल अब तक 28 बच्चों की मौत एइएस से हुई है, जिनमें दस बच्चे हाइपो ग्लाइसेमिया के शिकार हैं और एक डाइसेलेक्ट्रोलाइसीमिया का शिकार है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इस साल अब तक 48 बच्चे एइएस से पीड़ित पाए गए हैं। बाद में मुजफ्फरपुर के मलेरिया विभाग ने जानकारी दी कि अब तक 103 मरीजों में एईएस और जेई (जापानी बुखार) की पुष्टि हुई हैंइनमें 28 की मौत हुई हैइसमें 23 की मौत एईएस से होने की पुष्टि की गई है। 21 मरीज हाइपो ग्लूकेमिया के शिकार हुए हैं। सिर्फ मुजफ्फरपुर में कुल 21 बच्चों की मौत हुई हैइनमें 18 एईएस के शिकार हुए हैं, 17 में हाइपो ग्लूकेमिया की पुष्टि की गई है। 

ये आंकड़े इसलिए परेशान करने वाले हैं, क्योंकि साल 2018 में पूरे साल में इस रोग से सिर्फ सात बच्चों की मौत हुई थी और 40 बच्चे बीमार हुए थे। इनमें अगस्त महीने में गया में जेई से बीमार होने वाले बच्चे भी शामिल हैं। कभी मुजफ्फरपुर और गया प्रमंडल में बच्चों के लिए मौत का कहर बन जाने वाली यह बीमारी पिछले कुछ साल से स्वास्थ्य विभाग के काबू में आने लगी थी। इस रोग से 2012 में मुजफ्फरपुर में 122 बच्चों की जान गई थी, 2013 में 43 और 2014 में 98 बच्चों की मौत हुई थी। साल 2015 में अचानक यह आंकड़ा 15 पर पहुंच गया और 2016 में सिर्फ चार रह गया। 

हालांकि कई विशेषज्ञ मुजफ्फरपुर में एईएस के प्रकोप को लीची के फल से जोड़ कर देखते हैं क्योंकि यह रोग लीची के मौसम में ही होता है। कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि इस मौसम में मुजफ्फरपुर में सड़ी-गली लीचियां यहां वहां वहां फेंक दी जाती हैं, जिसे कई बार गरीब बच्चे खा लेते हैं। भूखे पेट में लीची का सेवन उनके शरीर में ग्लूकोज के बैलेंस को गड़बड़ा देता है। एक शोध में तो इस रोग के लिए सीधे-सीधे लीची को जिम्मेदार माना गया है। हालांकि राज्य का स्वास्थ्य विभाग इससे इनकार करता है। वजह जो भी हो, सच्चाई यह है कि पिछले कुछ सालों में मुजफ्फरपुर में एईएस का प्रकोप घट गया था। 

स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक इसकी वजह एक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसेस (एसओपी) को अपनाना था हालांकि इस रोग के कारण और इसके सही निदान का अब तक पता नहीं चल पाया है। मगर स्वास्थ्य विभाग ने पाया कि इस रोग के शिकार बच्चों में रात के तीसरे पहर और सुबह में तेज बुखार का अटैक आता है और इनमें अमूमन ग्लूकोज की कमी हो जाती है। इसे देखते हुए विभाग ने सभी प्रभावित इलाकों में सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की ड्यूटी अहले सुबह लगा दी थी। हर अस्पताल में ग्लूकोज लेवल चेक करने और ग्लूकोज चढ़ाने की व्यवस्था कर दी गई थी और ऐसे रोगी को लेकर अस्पताल पहुंचने वाले को वाहन किराया तत्काल विभाग की तरफ से अदा कर दिया जाता था। इसको लेकर जागरुकता का भी प्रसार किया गया और आशा और अन्य स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को अपने इलाके में रात में घर घर राउंड लगाने कहा जाता था कि कहीं कोई बच्चा भूखे पेट तो नहीं सो रहा। विभाग के मुताबिक, इस एसओपी की वजह से इस रोग पर काफी हद तक काबू पा लिया गया था।

मगर इस साल एक ही हफ्ते में इतने बच्चों की मौत बता रही है कि कहीं न कहीं एसओपी के पालन में कुछ ढिलाई हो रही है। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि तेज गर्मी, उमस और पानी की कमी से इस बार यह रोग खतरनाक हो रहा है। तेज गर्मी में बच्चे डिहाइड्रेशन का शिकार हो रहे हैं और उन्हें हाइपो ग्लाइसेमिया का अटैक आ रहा है। विभाग ने प्रभावित इलाकों में बच्चों को भूखे पेट नहीं सोने देने, सोते वक्त उन्हें नीबू पानी और शक्कर या ओआरएस का घोल पिलाने की सलाह दी है। मगर जिस तरह मौसम के शुरुआत में ही मुजफ्फरपुर में एइएस के मरीजों की संख्या और बच्चों के मौत के मामले बढ़ रहे हैं, ऐसा लग रहा है कि इस बार हालात स्वास्थ्य विभाग के बस में नहीं है।  

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