भले ही आज एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं ने एचआईवी/ एड्स को ऐसी बीमारी बना दिया है जिसके साथ भी एक बेहतर जीवन व्यतीत किया जा सकता है। लेकिन इसके बावजूद एचआईवी, वायरल हेपेटाइटिस और यौन संक्रमणों से हर घंटे जा रही 285 लोगों की जान इस बात का सबूत है कि यह बीमारियां अभी भी स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपनी नई रिपोर्ट में आगाह किया है कि दुनिया में हर दिन दस लाख से ज्यादा लोग संक्रमण का शिकार बन रहे हैं, इनमें से ज्यादातर मामले यौन संक्रमण के होते हैं। यह बीमारियां कितनी घातक हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एचआईवी, वायरल हेपेटाइटिस और यौन संक्रमणों की वजह से सालाना 25 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है।
मतलब की हर मिनट इन बीमारियों की वजह से औसतन पांच लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है। वहीं 2020 में इनकी वजह से 23 लाख लोगों की जान गई थी। हालांकि 2025 तक इन मौतों को 17 लाख जबकि 2030 तक 10 लाख पर सीमित करने का लक्ष्य रखा गया है। आपको जानकार हैरानी होगी की एचआईवी, वायरल हेपेटाइटिस और यौन संक्रमणों की वजह से हर साल 12 लाख लोग कैंसर की चपेट में आ रहे हैं।
आंकड़ों से इस बात की भी पुष्टि हुई है कि मौजूदा समय में हेपेटाइटिस की वजह से पहले से कहीं ज्यादा जाने जा रही हैं। गौरतलब है कि जहां 2019 में हेपेटाइटिस की वजह से 11 लाख लोगों की मौत हुई थी, वहीं 2022 में यह आंकड़ा बढ़कर 13 लाख पर पहुंच गया। यह इस बात की ओर इशारा है कि रोकथाम, निदान और उपचार के प्रभावी साधन उपलब्ध होने के बावजूद, हेपेटाइटिस से संबंधित कैंसर और मौतों की संख्या बढ़ रही है। गौरतलब है कि इनमें से 11 लाख मौतें हेपेटाइटिस बी की वजह से हुई थी।
आंकड़ों के मुताबिक जहां 2022 में हेपेटाइटिस बी के 12 लाख नए मामले सामने आए थे। वहीं हेपेटाइटिस सी के भी दस लाख नए मामले दर्ज किए गए। हालांकि वैश्विक स्तर पर हेपेटाइटिस सी होने वाली मौतों में गिरावट आई है, जहां 2019 में हेपेटाइटिस सी की वजह से 290,000 लोगों की मौत हुई थी, वहीं 2022 में यह आंकड़ा घटकर 240,000 रह गया है।
यह दर्शाता है कि उपचार तक बेहतर पहुंच से फर्क पड़ा है। इस मामले में मिस्र ने एक मुकाम हासिल किया है जो 2023 में हेपेटाइटिस सी उन्मूलन के लिए स्वर्ण स्तर की स्थिति तक पहुंचने वाला पहला देश बन गया है। यह निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिए एक मिसाल है कि वो भी इस तरह की सफलता हासिल कर सकते हैं।
लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कहीं ज्यादा प्रयासों की है दरकार
वहीं यदि एचआईवी से जुड़े आंकड़ों पर गौर करें तो इसके मामलों और संबंधित मौतों में धीरे-धीरे गिरावट आ रही है। हालांकि इसके बावजूद गिरावट की यह दरें 2025 के लिए तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए काफी नहीं हैं। जो दर्शाता है कि इस ओर किए जा रहे प्रयासों पर दोबारा गौर करने की जरूरत है। देखा जाए तो एचआईवी से निपटने के लिए एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी व्यापक रूप से उपलब्ध है। इसके बावजूद 2022 में एचआईवी की वजह से 630,000 मौते हुई थी।
विडम्बना देखिए कि इनमें से कई मौतों की वजह देखभाल में देरी और सेवाओं तक पहुंच में मौजूद बाधाओं के कारण हुई थी। इससे ज्यादा दुःख की बात क्या होगी की एचआईवी का शिकार बन रहे इन लोगों में से 13 फीसदी 15 वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चे थे। एचआईवी से पीड़ित 167,000 लोग वो हैं, जिनकी जान 2022 में तपेदिक, हेपेटाइटिस बी और हेपेटाइटिस सी जैसी वजहों से गई थी।
बता दें कि 2020 में जहां एचआईवी के 15 लाख नए मामले सामने आए थे, वहीं 2022 में यह आंकड़ा घटकर 13 लाख पर पहुंच गया है। मौजूदा आंकड़ों को देखें तो एचआईवी से पीड़ित 75 फीसदी से अधिक लोगों को एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी दी जा रही है। वहीं इलाज करा रहे 93 फीसदी लोग शरीर में फैलते संक्रमण को सीमित करने में कामयाब हुए हैं। इसके बावजूद एचआईवी से होती मौतों का यह आंकड़ा दर्शाता है कि इस बीमारी को दूर करने के लिए कहीं ज्यादा प्रयास करने होंगें।
डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया है कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में महामारी के बाद से सिफलिस जैसे यौन संक्रमण (एसटीआई) के मामले बढे हैं। यदि 2022 के आंकड़ों पर गौर करें तो 15 से 49 वर्ष के लोगों में सामने आए सिफलिस के मामले बढ़कर 80 लाख पर पहुंच गए हैं।
रिपोर्ट से पता चला है कि कोरोना महामारी के दौरान, वयस्कों और माओं में सिफलिस के अधिक मामले सामने आए। साथ ही इसके साथ पैदा होने वाले शिशुओं की दर बढ़कर प्रतिलाख जन्मों पर 523 मामलों तक पहुंच गई। बता दें कि सिफलिस की वजह से 2022 में 230,000 लोगों की मौत हो गई थी।
2022 में, डब्ल्यूएचओ के सदस्य देशों ने वयस्क में सिफलिस के मामलों को 71 लाख से घटाकर 2030 तक 7.1 लाख तक लाने का लक्ष्य रखा था। हालांकि इसके बावजूद 15 से 49 वर्ष के वयस्कों में नए मामले 10 लाख का इजाफा दर्ज किया गया है, जिसके बाद यह मामले बढ़कर 80 लाख तक पहुंच गए हैं। अमेरिका और अफ्रीका में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई है।
गौरतलब है कि सिफलिस, उपचार योग्य चार यौन संक्रमणों (एसटीआई) में से एक है। इनमें गोनोरिया, क्लैमाइडिया, और ट्राइकोमोनिएसिस शामिल हैं, जिनसे हर साल करोड़ों लोगों को जूझना पड़ता है। रिपोर्ट में 2022 के दौरान ह्यूमन पेपिलोमा वायरस से जुड़े सर्वाइकल कैंसर से होने वाली 350,000 मौतों पर भी प्रकाश डाला है।
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस घेब्रेयसस ने सिफलिस के बढ़ते मामलों पर चिंता व्यक्त की है। साथ ही उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, "सौभाग्य से, हमने निदान और उपचार सहित आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में सुधार की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल की है।"
स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी नए आंकड़ों दवा में दवा प्रतिरोधी गोनोरिया के मामलों में वृद्धि देखी गई है। 2023 में, निगरानी किए गए 87 देशों में से नौ ने इसके प्रभावी उपचार, सेफ्ट्रिएक्सोन के प्रति उच्च प्रतिरोध की सूचना दी। डब्ल्यूएचओ इस पर नजर बनाए हुए है। इस प्रसार को रोकने के लिए इसके उपचार से जुड़ी सिफारिशों को अपडेट किया गया है।
डब्ल्यूएचओ ने अपनी रिपोर्ट में एचआईवी, हेपेटाइटिस और यौन संक्रमणों (एसटीआई) के इलाज और सेवाओं के विस्तार में हुई प्रगति पर भी प्रकाश डाला है। गर्भवती महिलाओं के लिए परीक्षण और उपचार में सुधार दिखाते हुए मां से बच्चे में फैलने वाले एचआईवी या सिफलिस के संचरण को खत्म करने के लिए डब्ल्यूएचओ ने 19 देशों को मान्यता दी है।
जहां बोत्सवाना एचआईवी वहीं नामीबिया अफ्रीका का पहला देश बनने की ओर अग्रसर है, जिसने मां से बच्चे में एचआईवी, सिफलिस और हेपेटाइटिस बी के प्रसार को रोकने में काफी हद तक सफलता हासिल की है।