अभावों की गहराई में जीने को मजबूर हैं दुनिया में विकलांगता से ग्रस्त 24 करोड़ बच्चे

यह बच्चे स्वस्थ बच्चों की तुलना में विकास, पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, और सुरक्षा जैसे मामलों में काफी पिछड़े हैं, जो उन्हें अभावों के अन्धकार में धकेल रहा है।
अभावों की गहराई में जीने को मजबूर हैं दुनिया में विकलांगता से ग्रस्त 24 करोड़ बच्चे
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यूनिसेफ द्वारा जारी हालिया आंकड़ों से पता चला है कि दुनिया भर में करीब 24 करोड़ बच्चे विकलांगता से ग्रस्त हैं। यही नहीं रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि यह बच्चे स्वस्थ बच्चों की तुलना में विकास, पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा, और सुरक्षा जैसे मामलों में काफी पिछड़े हैं। जो उन्हें अभावों के अन्धकार में धकेल रहा है।

रिपोर्ट के अनुसार यदि सामने बच्चों की तुलना में विकलांग बच्चों की बात करें तो उनमें स्टंटिंग की सम्भावना 34 फीसदी ज्यादा है जबकि वेस्टिंग की बात करें तो उसकी सम्भावना करीब 25 फीसदी ज्यादा है। इसी तरह विकलांग बच्चों में सांस सम्बन्धी संक्रमण के होने का खतरा करीब 53 फीसदी ज्यादा है।  इसी तरह उन बच्चों को जीवन के वर्षों में प्रोत्साहन और उचित देखभाल मिलने की सम्भावना भी 24 फीसदी कम होती है। 

इस रिपोर्ट में 42 देशों के आंकड़ों को शामिल किया है, जिसमें बाल कल्याण से जुड़े 60 संकेतकों को शामिल किया गया है। जिनमें पोषण और स्वास्थ्य से लेकर, साफ पानी और स्वच्छता के साथ हिंसा और शोषण के खिलाफ सुरक्षा से लेकर शिक्षा तक को शामिल किया गया है। 

49 फीसदी अधिक है विकलांग बच्चों के कभी स्कूल न जा पाने की सम्भावना

यदि शिक्षा से जुड़े संकेतकों की बात करें तो सामान्य बच्चों की तुलना में विकलांग बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा पाने की सम्भावना 25 फीसदी कम है। इसी तरह शिक्षा प्राप्त करने की सम्भावना 16 फीसदी, पढ़ने और जोड़-घटा की क़ाबलियत की सम्भावना करीब 42 फीसदी कम है।  यही नहीं विकलांग बच्चों में इस बात की 49 फीसदी अधिक सम्भावना है कि शायद वो कभी स्कूल न जा पाएं।

यदि प्राथमिक विद्यालय से बाहर होने की बात करें तो उनमें इसकी सम्भावना करीब 47 फीसदी अधिक है। वहीं उच्च और माध्यमिक शिक्षा को बीच में ही छोड़ने की सम्भावना 27 फीसदी अधिक है। यही नहीं विकलांग बच्चों को इस बात की 32 फीसदी अधिक सम्भावना है कि उन्हें शारीरिक दंड मिले, जबकि 41 फीसदी के साथ भेदभाव की सम्भावना ज्यादा है।  वहीं 51 फीसदी को अधिक दुखी रहने की सम्भावना है। वहीं स्वस्थ बच्चों की तुलना में बेहतर जीवन पाने की उम्मीद करीब 20 फीसदी कम है। 

इस बारे में जानकारी देते हुए यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर ने बताया कि जो हम पहले से जानते हैं यह रिपोर्ट उस बात की पुष्टि करती है। विकलांग बच्चों को अपने अधिकारों को पाने के लिए कई और अक्सर जटिल चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उनके अनुसार बात चाहे शिक्षा तक पहुंच से लेकर घर पर पढ़ने की हो, विकलांग बच्चों को उसमें शामिल होने की सम्भावना दूसरे बच्चों की तुलना में कम होती है। बहुत बार तो विकलांग बच्चों को बस केवल पीछे छोड़ दिया जाता है।    

 कुल मिलकर कह सकते हैं कि यह रिपोर्ट इस बारे में स्पष्ट तौर बताती है कि विकलांग बच्चे किस हद तक अपने अधिकारों से वंचित हैं। उनके साथ भेदभाव किया जाता है और उनके भविष्य को अन्धकार में रहने के लिए छोड़ दिया जाता है। यह स्पष्ट करता है कि समाज सभी बच्चों के बुनियादी अधिकारों को प्रदान करने के लिए पर्याप्त नहीं कर रहा है। नतीजन इन बच्चों को पीछे छोड़ दिया जाता है और यह चक्र लगातार चलता रहता है। 

ऐसे में जीवन के सभी पहलुओं में विकलांग बच्चों को शामिल करना समाज की प्राथमिकता होनी चाहिए। हर बच्चे में कुछ न कुछ खास और कुछ अलग होता है। यदि उन पर ध्यान दिया जाए तो उनकी ऊर्जा, प्रतिभा और विचार न केवल परिवार बल्कि समाज और दुनिया में भी सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। बस जरुरी है तो इन बच्चों और युवाओं को आगे बढ़ने का मौका देना, जिससे वो भी दूसरे बच्चों की तरह ही अपने सपनों की उड़ान भर सकें। 

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