नॉर्वे में नॉवेल कोरोनावायरस ( कोविड-19) की वैक्सीन के चलते 23 मौतें दर्ज हुई हैं। नॉर्वे की दवा एजेंसी स्टैटेंस लेगेमिडेलवर्क ने 14 जनवरी को बताया कि इनमें से 13 मौतों का आकलन किया गया है।
एजेंसी ने अपनी वेबसाइट पर कहा कि, "वैक्सीन लगवाने के बाद की सभी मौतों की सावधानीपूर्वक जांच की जा रही है।
27 दिसंबर, 2020 को टीकाकरण शुरू होने के बाद अब तक 25,000 लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है। संबंधित मामलों में फाइजर कंपनी की एमआरएनए (मैसेंजर राइबोनुक्लिएक एसिड) आधारित वैक्सीन इस्तेमाल की गई थीं।
राज्य-संचालित ब्रॉडकास्टर एनआरके ने 14 जनवरी को रिपोर्ट में बताया कि एजेंसी ने वैक्सीन के दुष्प्रभावों की जांच की है और 29 रिपोर्ट तैयार की हैं।
नॉर्वे की मेडिसिन एजेंसी के मेडिकल डायरेक्टर स्टिनर माडसेन का हवाला देते हुए रिपोर्ट में बताया गया कि, 'उनमें से 13 मौतें थीं, नौ गंभीर दुष्प्रभाव थे और सात कम गंभीर दुष्प्रभाव थे।
मैडसेन के मुताबिक, हादसे के शिकार सभी लोग 'दुर्बल' श्रेणी के थे- जिन्हें हृदय संबंधी बीमारियां, मनोभ्रंश, श्वास-संबंधी बीमारियां और कई अन्य गंभीर बीमारियां थीं- और वे सभी वृद्ध थे, कुछ 80 वर्ष के और कुछ 90 वर्ष से भी अधिक उम्र के। कुछ लोगों को बुखार और बेचैनी जैसे गंभीर दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ा।
उन्होंने आगे कहा कि डॉक्टरों को वैक्सीन के प्रति बेहद सावधान रहना चाहिए और अत्यधिक उम्र के मरीजों का एकल निर्धारण करने के बाद तय करना चाहिए कि वैक्सीन लगानी है कि नहीं।
उन्होंने कहा कि परिस्थिति गंभीर नहीं है और कुछ अपवादों (बेहद नाजुक लोगों) के लिए वैक्सीन हल्का खतरा हो सकती हैं। उनकी एजेंसी साप्ताहिक रिपोर्ट जारी करेगी।
हालांकि इस खबर के चलते चीन में नकारात्मक समीक्षा शुरू हो गई है। चीन की सरकारी समाचार एजेंसी ग्लोबल टाइम्स ने बिना नाम ज़ाहिर किए 'स्वास्थ्य विशेषज्ञों' की राय प्रकाशित की है, जिसमें नॉर्वे और अन्य देशों को एमआरएनए आधारित वैक्सीन से किनारा करने को कहा गया है, क्योंकि वे सुरक्षा मानकों पर खरी नहीं उतरतीं।
समाचार एजेंसी ब्लूमबर्ग ने 13 जनवरी को रिपोर्ट पेश की थी कि फाइजर और अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी वैक्सीन लगवाने वाले एक व्यक्ति की मौत की जांच कर रहे हैं।
फाइजर-बायोएनटेक की दवा कॉमिरनेटी के अलावा मॉडेर्ना द्वारा बनाई गई वैक्सीन भी एमआरएनए प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करती है।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया की अर्चा फॉक्स ने जैसा कि पहले भी बताया है: मांसपेशी में इंजेक्शन लगने के बाद एमआरएनए को कोशिकाएं ग्रहण करती हैं। कोशिकाओं की प्रोटीन फैक्ट्री कहे जाने वाले राइबोसोम्स एमआरएनए में मौजूद जानकारी को पढ़ते हैं और विषाणुजनित प्रोटीन बनाते हैं। ये नए प्रोटीन कोशिकाओं से बाहर भेजे जाते हैं और बाकी की प्रक्रिया अन्य दवाओं के जैसे काम करती है: हमारा प्रतिरक्षा तंत्र इन प्रोटीन को बाहर से आया हुआ पहचानकर इनके खिलाफ एंटीबॉडी बनता है।
इन दवाओं को बेहद कम तापमान पर रखा जाना जरूरी है - फाइजर की वैक्सीन के लिए -70 डिग्री और मॉडेर्ना की वैक्सीन के लिए -20 डिग्री तापमान होना चाहिए।
इन दोनों में से कोई भी वैक्सीन भारत में 16 जनवरी से शुरू होने वाले टीकाकरण अभियान का हिस्सा नहीं है।