कोविड-19 के कारण जरुरी जीवन रक्षक टीकों से वंचित रह गए थे 2.3 करोड़ बच्चे

डीटीपी -1 के मामले में भारत की स्थिति सबसे ज्यादा ख़राब है, जहां 2020 में 30.4 लाख बच्चों को इस टीके की पहली खुराक नहीं मिल पाई थी
कोविड-19 के कारण जरुरी जीवन रक्षक टीकों से वंचित रह गए थे 2.3 करोड़ बच्चे
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कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन और स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ने वाले असर के कारण 2020 के दौरान दुनिया भर में करीब 2.3 करोड़ बच्चे जरुरी जीवनरक्षक टीकों से वंचित रह गए थे। देखा जाए तो यह आंकड़ा 2019 की तुलना में 37 लाख ज्यादा है, जोकि 2009 के बाद से सबसे ज्यादा है। यह जानकारी आज विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और यूनिसेफ द्वारा जारी आंकड़ों में सामने आई है।

यदि वैश्विक टीकाकरण की स्थिति को देखें तो जहां 2019 में इसकी दर 86 फीसदी थी वो 2020 में 3 फीसदी घटकर 83 फीसदी रह गई थी। इसी तरह 2020 में केवल 19 टीकों की शुरुवात की गई थी, जो पिछले दो दशकों के दौरान किसी भी वर्ष की तुलना में आधे से भी कम है। पिछले वर्ष की तुलना में 2020 में 16 लाख से ज्यादा अधिक बच्चियों को एचपीवी का टीका नहीं लगा था जो उन्हें मानव पेपिलोमावायरस से सुरक्षित रख सकता है। 

आंकड़ों के अनुसार 2020 के दौरान दुनिया के लगभग सभी देशों में बच्चों के टीकाकरण दर में गिरावट दर्ज की गई थी। यह कोविड-19 की शरुवात के बाद से पहला आधिकारिक आंकड़ा है जो इस बात को स्पष्ट करता है कि इस महामारी ने दुनिया भर में बच्चों के लिए जरुरी टीकाकरण पर असर डाला है। 

दुःख की बात तो यह है कि इनमें से करीब 1.7 करोड़ बच्चों को 2020 में एक भी टीका नहीं लगा था। जहां दुनिया भर में पहले ही टीकाकरण को लेकर भारी असमानता है, यह महामारी और उससे आया संकट इसे और बढ़ा रहा है। टीकाकरण से वंचित अधिकांश बच्चे या तो संघर्ष प्रभावित समुदायों, दूर-दराज के क्षेत्रों  या फिर उन झुग्गी बस्तियों में रहते हैं, जहां आज भी स्वास्थ्य से जुड़ी बुनियादी सेवाओं और सुविधाओं तक पहुंच नहीं हैं। 

भारत में 30 लाख से ज्यादा बच्चे 2020 में रह गए थे डीटीपी -1 वैक्सीन से वंचित

हालांकि कोविड-19 का यह असर पूरी दुनिया में बच्चों के टीकाकरण पर पड़ा है, लेकिन इसने सबसे ज्यादा दक्षिणपूर्व एशिया और पूर्वी भूमध्य क्षेत्र को प्रभावित किया है।  चूंकि कोविड-19 के कारण टीकाकरण की दर में कमी कर दी गई थी, ऐसे में इन क्षेत्रों में जरुरी टीकाकरण से वंचित बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ है।  जहां 2019 की तुलना में और 35 लाख बच्चे डिप्टीथिरिया टेटनस पर्टुसिस कम्बाइंड वैक्सीन (डीटीपी -1) की पहली खुराक से चूक गए थे। गौरतलब है कि यह टीका बच्चों को डिप्थीरिया, काली खांसी और टिटनेस जैसी खतरनाक बीमारियों के खतरे से बचाता है। वहीं पहले के मुकाबले 30 लाख से अधिक बच्चों को खसरे की पहली खुराक नहीं मिल पाई थी। 

देखा जाए तो डीटीपी -1 के मामले में भारत की स्थिति सबसे ज्यादा ख़राब है, जहां 2020 में 30.4 लाख बच्चों को इस टीके की पहली खुराक नहीं मिल पाई थी।  यह आंकड़ा 2019 में 14 लाख था। इसी तरह पाकिस्तान में जहां 2019 में 5.67 लाख बच्चे इससे वंचित थे वो 2020 में बढ़कर 9.68 लाख पर पहुंच गए थे। 

इस बारे में जानकारी देते हुए डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेब्येयियस ने बताया कि जब दुनिया के ज्यादातर देश कोविड-19 के टीकों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं, ऐसे में बच्चों के लिए जरुरी इन टीकों के मामले में वो काफी पीछे चले गए हैं, जिससे बच्चों में खसरा, पोलियो या मेनिन्जाइटिस जैसी बीमारियों का खतरा काफी बढ़ गया है।

जब समुदाय और हेल्थ सिस्टम पहले ही कोरोना से निपटने के लिए जूझ रहा है ऐसे में यदि अन्य बीमारियों का प्रकोप समुदाय और स्वास्थ्य सिस्टम को पूरी तरह तोड़ देगा। ऐसे में बच्चों के लिए जरुरी इन बुनियादी टीकों पर निवेश और हर बच्चे तक उसकी पहुंच सुनिश्चित करना पहले से कहीं ज्यादा जरुरी हो गहा है। यह बच्चे हमारा कल हैं इनपर हमारा भविष्य निर्भर है। हम अपने भविष्य को इस तरह अन्धकार में नहीं छोड़ सकते।    

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