भारत में 45 वर्ष से अधिक उम्र के हर 3 में से 1 व्यक्ति झेल रहा है कोई न कोई दर्द

45 वर्ष की आयु वर्ग के लगभग 15 प्रतिशत लोग सप्ताह में कम से कम पांच दिन दर्द से जूझते हैं।
भारत में 45 वर्ष से अधिक उम्र के हर 3 में से 1 व्यक्ति झेल रहा है कोई न कोई दर्द
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भारत में पहली बार लोगों को होने वाले दर्द के बारे में पता लगाया गया है। एक शोध में कहा गया है कि, भारत में 45 वर्ष या उससे अधिक आयु के हर 3 में से 1 व्यक्ति दर्द से पीड़ित है।

शोध पत्रिका पेन के अनुसार भारत में राष्ट्रीय दर्द का औसत 45 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिए 37 प्रतिशत है। इस आयु वर्ग के लगभग 15 प्रतिशत व्यक्तियों को सप्ताह में कम से कम 5 दिन दर्द होता है।

शोध के अनुसार दर्द की व्यापकता पूरे देश में स्थिर या एक जैसी नहीं है। विभिन्न राज्यों के लोगों में अलग-अलग तरह का दर्द दिखाई देता है। उदाहरण के लिए, नागालैंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड और पुडुचेरी में लोग सबसे अधिक दर्द से जूझ रहे हैं, जबकि हरियाणा, आंध्र प्रदेश और मिजोरम जैसे राज्यों में लोगों में दर्द सबसे कम पाया गया।

शोध में उस आबादी के अनुपात के बारे में भी बात की गई है जो दर्द के कारण अपनी रोजमर्रा के काम नहीं कर पाते हैं। मिजोरम में यह अनुपात 2.6 प्रतिशत है जो बढ़ कर केरल में 22 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में करीब 40 प्रतिशत तक पहुंच जाता है।

अध्ययनकर्ता तथा मुंबई के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज (आईआईपीएस) के प्रोफेसर संजय मोहंती ने कहा कि दर्द लोगों को परेशान करता है और घरों तथा अर्थव्यवस्था पर बोझ डालता है। लेकिन इसने सार्वजनिक स्वास्थ्य की ओर उतना ध्यान आकर्षित नहीं किया है, या यों कहें कि भारत में इस तरह के शोधों की और अधिक जरूरत है।

प्रो. मोहंती ने नीदरलैंड और स्विटजरलैंड के शैक्षणिक संस्थानों के अपने सहयोगियों के साथ मिलकर दर्द की व्यापकता, रोजमर्रा की गतिविधियों पर दर्द से संबंधित सीमाओं और उपचार के स्तर के पहले-राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय अनुमानों को उजागर किया है।

राज्यों में उपचार के स्तर में भिन्नता भी अभी स्पष्ट नहीं है। मिजोरम में केवल 10.5 प्रतिशत लोगों का इलाज चल रहा था, जबकि केरल में 76 प्रतिशत और गोवा, लक्षद्वीप, महाराष्ट्र, पुडुचेरी, तेलंगाना, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में 85 प्रतिशत या इससे अधिक लोगों का इलाज चल रहा था।

शोध के अनुसार, लगभग 73 प्रतिशत दर्द पीड़ितों का इलाज किया जा रहा था। उनमें से, लगभग 40 प्रतिशत ने इंजेक्शन या दवाएं ली, जबकि 40 प्रतिशत ने दर्द की जगह पर सामयिक दर्द निवारक दवाएं ली थी। दूसरों ने दर्द से राहत के लिए फिजियोथेरेपी या मनोचिकित्सा का सहारा लिया

शोध में दर्द के कारणों पर प्रकाश नहीं डाला गया है, मोहंती ने कहा कारण, लागत, जीवन की गुणवत्ता और घरों पर प्रभाव भविष्य के शोध के विषय हैं।

इंडियन सोसाइटी फॉर द स्टडी ऑफ पेन के अध्यक्ष तथा दर्द प्रबंधन विशेषज्ञ मुरलीधर जोशी ने कहा कि दुनिया भर में, दर्द के इलाज की पहुंच तीन चीजों पर निर्भर करती है, सामर्थ्य, उपलब्धता और उपलब्ध संभावित उपचारों के बारे में लोगों की जागरूकता।

शोधकर्ता ने कहा वर्तमान में दर्द प्रबंधन लागत या दर्द का सही से प्रबंधन न होने के परिणामस्वरूप होने वाले खर्चे के बारे में बहुत कम जानकारी है। उन्होंने कहा कि दर्द का कारण, होने वाला खर्च, जीवन की गुणवत्ता और घरों पर पड़ने वाले प्रभाव पर शोध करने की जरूरत है।

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