देश के 15 जिलों की जमीनी पड़ताल-3: कोरोना की दूसरी लहर ने हिमाचल को किया ठप

हिमाचल प्रदेश का लाहौल स्पीति जिला देश के उन जिलों में शामिल था, जहां कोविड-19 की दूसरी लहर के दोरान पॉजिटिविटी रेट बहुत ज्यादा था
हिमाचल प्रदेश के एक केंद्र में वैक्सीन के लिए लाइन पर लगे लोग। फोटो: रोहित पराशर
हिमाचल प्रदेश के एक केंद्र में वैक्सीन के लिए लाइन पर लगे लोग। फोटो: रोहित पराशर
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डाउन टू अर्थ ने कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान देश के सबसे अधिक प्रभावित 15 जिलों की जमीनी पड़ताल की और लंबी रिपोर्ट तैयार की। इस रिपोर्ट को अलग-अलग कड़ियों में प्रकाशित किया जा रहा है। पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि कैसे 15 जिले के गांव दूसरी लहर की चपेट में आए। दूसरी लहर में आपने पढ़ा अरुणाचल प्रदेश के सबसे प्रभावित जिले का हाल। आज पढ़ें, तीसरी कड़ी- 

हिमाचल प्रदेश का रोहतांग दर्रा साल में लगभग छह महीने बर्फ से ढंका रहता है और लाहौल और स्पीति घाटी के आदिवासी समुदाय इसके पीछे आम जनजीवन से अलग-थलग रहते हैं। पिछले साल उनका अलगाव और भी लंबा था। महामारी के कारण लगभग एक साल तक बंद रहने के बाद, इस साल फरवरी में यह ठंडी रेगिस्तानी पहाड़ी घाटी पर्यटकों के स्वागत के लिए पूरी तरह तैयार थी। स्पीति टूरिज्म सोसाइटी, ट्रैवल एजेंट, होटल व्यवसायी और समुदाय के नेता खुश थे क्योंकि हाल ही में रोहतांग दर्रे को बायपास करने के लिए बनाई गई 9 किलोमीटर की अटल सुरंग का उद्घाटन किया गया था, जिसने ऊंचाई पर बसी इस आदिवासी घाटी को दुनिया के बाकी हिस्सों के करीब ला दिया था और निवासियों के लिए व्यापार के नए रास्ते खोल दिए थे। जिला प्रशासन ने घाटी में आने वाले पर्यटकों के लिए दिशानिर्देश भी निर्धारित किये थे। लेकिन इस जिले में, जहां दिसंबर 2020 के बाद कोविड संबंधी कोई मौत नहीं हुई थी और संक्रमण के मामले भी मुट्ठी भर थे, जल्दी ही हालात बिगड़ गए। 6 मई को प्रशासन ने कर्फ्यू लगा दिया और पर्यटकों के लिए घाटी को बंद कर दिया।

लाहौल के एक सामाजिक कार्यकर्ता शाम आजाद कहते हैं कि घाटी के ज्यादातर लोग विशेष रूप से स्पीति से कठोर सर्दियों के महीनों के दौरान मैदानी इलाकों में चले जाते हैं और मार्च के आसपास लौटना शुरू कर देते हैं। यह संभव है कि वायरस उनके साथ घाटी तक आया हो। महामारी के दौरान घाटी में कल्याणकारी गतिविधियों में लगे एक गैर-लाभकारी संगठन, यंग ड्रुकपा एसोसिएशन गरशा के कार्यवाहक अध्यक्ष सुशील कहते हैं,“चूंकि जिले में टेस्ट के लिए कोई  प्रयोगशाला नहीं है, इसलिए संक्रमण का कई दिनों तक पता ही नहीं चलता है। वायरस को फैलने में इसलिए भी आसानी होती है क्योंकि मास्क पहनना और सामाजिक दूरी बनाए रखना जैसे कोविड प्रोटोकॉल का पालन काफी कम लोग करते हैं।” 

लाहौल और स्पीति के मुख्य चिकित्सा अधिकारी रंजीत वैद्य पिछले दो महीनों में घाटी में वायरस के संक्रमण में हुई बेतहाशा वृद्धि का एक और कारण बताते हैं। जैसे ही अप्रैल के मध्य में बर्फ पिघलना शुरू होती है वैसे ही ठंडे रेगिस्तान सब्जियों से भर जाते हैं, खासकर ब्रोकोली, लेटस, सेलरी और रंगीन शिमला मिर्च जैसी विदेशी सब्जियों से। चूंकि इस दौरान जिले में खेती का काम जोरों पर रहता है, इसलिए कुछ लोग काम छूटने के डर से जांच कराने से बचते हैं। इन फसलों से होने वाली कमाई लोगों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस क्षेत्र की कठिन जलवायु में केवल एक ही मौसम में खेती हो पाती है। 

टीकाकरण के लिए कोविन पोर्टल पर पंजीकरण करना जरूरी है और यह अपने आप में एक चुनौती है क्योंकि घाटी के लोगों के पास या तो फोन नहीं हैं या फिर इंटरनेट तक उनकी पहुंच नहीं है। प्रशासन ने टीकाकरण के लिए कोविन  पोर्टल में कुछ बदलाव की मांग की है और अब 80 फीसदी लोगों का ऑफलाइन टीकाकरण किया जाएगा और ऑनलाइन पोर्टल के जरिए 20 फीसदी युवाओं का ही टीकाकरण किया जाएगा।  

जिला प्रशासन ने हर गांव में रैंडम सैंपलिंग के लिए रैपिड एक्शन टीम का गठन किया। हल्के लक्षणों वाले कोविड पॉजिटिव लोगों को  को होम आइसोलेशन की सलाह दी जाती है और उन्हें प्रशासन की ओर से आइसोलेशन गाइड, पैरासिटामोल, सैनिटाइजर, मल्टीविटामिन, कैल्शियम, जिंक और विटामिन सी दिया जाता है। जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत है उन्हें अस्पतालों में भर्ती कराया जा रहा है। चूंकि जिले में सर्जन, विशेषज्ञ डॉक्टरों और आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है, इसलिए जिला प्रशासन की योजना गंभीर मरीजों को एयरलिफ्ट करने की है। हालांकि 22 मई को मुख्यमंत्री द्वारा मरीजों को बांटी गई किट में एक मास्क, थर्मामीटर, च्यवनप्राश और कुछ आयुर्वेदिक दवा शामिल थी।

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