कोरोनावायरस को लेकर भारत की तैयारी को समझने के लिए डाउन टू अर्थ ने सूक्ष्म जीव विज्ञान और विषाणु विज्ञान में 25 साल से ज्यादा का विस्तृत अनुभव रखने वाले बाल रोग विशेषज्ञ टी जैकब जॉन से बात की। पेश हैं इसके अंश:
प्रश्न: भारत ने विदेशी नागरिकों के आने पर पाबंदी लगा दी है। क्या इससे रोकथाम में मदद मिलेगी?
टी जैकब जॉन: विज्ञान सबूत मांगता है। अगर इस बात के सबूत हैं कि ईरान, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान और चीन जैसे देशों के ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोग संक्रमण फैला रहे हैं, तो यह सही है। लेकिन मुझे अफसोस है कि ऐसा कोई सबूत मौजूद नहीं है। मेरे ख्याल में, यह सरकार की एक दहशतभरी प्रतिक्रिया है, भले ही खुद लोगों से दहशत नहीं फैलाने की अपील कर रही है।
प्रश्न: भारत में एक के बाद दूसरे राज्य स्कूल, पार्क और साथ ही बड़े सामाजिक जमावड़े बंद कर रहे हैं। क्या लोगों के जमावड़े रोकने के ये उपाय जरूरी थे?
टी जैकब जॉन: क्या किसी राज्य सरकार ने आपको बताया कि उनके राज्य में जोखिम का आकलन क्या है? अगर नहीं, तो वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? बिहार, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे कुछ राज्यों में, जहां एक भी पॉजिटिव मरीज नहीं मिला है, उन्होंने भी ऐसा कदम उठाया है; लेकिन किस आधार पर किया, हम नहीं जानते। अगर कुछ नहीं हुआ, तो भी इससे लोगों में घबराहट फैलेगी और इस तरह के कठोर कदम रोजमर्रा की जिंदगी पर बुरा असर डालेंगे।
प्रश्न: वायरस का पता लगाने के लिए अब तक 6,000 से ज्यादा सैंपल की जांच की गई है। क्या यह पर्याप्त है?
टी जैकब जॉन: मैं ऐसा नहीं मानता। लेकिन मेरा सुझाव है कि आप इस तथ्य को संबंधित परिप्रेक्ष्य में देखें। भारत में बीमारी की गंभीरता का आकलन क्या है? अगर आप एकमुश्त यात्रा प्रतिबंध को देखें, तो यह बताता है कि जोखिम मूल्यांकन बहुत, बहुत ज्यादा है। अगर ऐसा है, तो 6,000 सैंपल की जांच बहुत कम है। तो, ये दोनों उपाय एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं।
प्रश्न: सरकार का कहना है कि पूरे भारत में कोरोना मरीजों के संपर्क में आने वाले लोगों का पता लगाने की मुहिम में करीब 4,000 लोगों की पहचान की गई है। क्या यह पर्याप्त है?
टी जैकब जॉन: इसका मतलब है कि प्रति केस लगभग 50 संपर्कों की पहचान की जा रही है, जो बुरा नहीं है। लेकिन अगर मरीजों की गिनती बढ़ती है, तो उन्हें फिलहाल जितना कर रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा बड़े पैमाने पर मरीज के संपर्क में आने वालों का पता लगाना होगा। जितने ज्यादा संपर्क में आने वालों का पता लगाएंगे, उतने ज्यादा अस्पतालों को तैयार करना होगा।
प्रश्न: डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अस्पताल में भर्ती मरीजों में से 30-40 फीसद को आईसीयू में रखने की जरूरत है। क्या हम तैयार हैं?
टी जैकब जॉन: हमारी स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली इस तरह के किसी भी हालात का सामना करने के लिए तैयार नहीं है। हम अपने स्वास्थ्य प्रबंधन में सबसे निचले पायदान पर हैं। हमारे पास पर्याप्त वेंटिलेटर और मेडिकल ऑक्सीजन नहीं है। एच1एन1 महामारी से सबक मिला था कि सभी अस्पतालों को बड़ी संख्या में निमोनिया के मामलों के लिए तैयार रहना होगा। हमने सबक नहीं सीखा।
हमने स्वास्थ्य क्षेत्र व स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में निवेश और मानव संसाधन तैयार करने का मूल्य नहीं समझा। यह महामारी हमें बहुत कठोर बुनियादी सबक देने वाली है।
प्रश्न: भारत में इस वायरस का फैलाव कितना होगा?
टी जैकब जॉन: एक साल में कम से कम 60 फीसद भारतीय आबादी संक्रमित हो जाएगी, क्योंकि इस दौरान संक्रमण अच्छी तरह पांव जमा लेगा।मेरे इतनी बड़ी संख्या बताने का कारण यह है कि यह मच्छर या जल जनित संक्रमण नहीं है, बल्कि यह सांस से फैलने वाला संक्रमण है। वक्त के साथ, लोगों में इसे लेकर प्रतिरक्षा विकसित हो जाएगी और फिर यह समय-समय पर होने वाली एक बीमारी बन जाएगी। और फिर, हर साल, यह एक खास मौसम के साथ आएगी जैसे दूसरे सांस के संक्रमण आते हैं।