योगेन्द्र आनंद / सीएसई
योगेन्द्र आनंद / सीएसई

चुनावों में अपनी भूमिका को लेकर विरोधाभासी रुख क्यों अपना रहे हैं यूरोप के युवा?

हाल के चुनाव बताते हैं कि यूरोप के युवाओं में दक्षिणपंथी पार्टिेंयों के प्रति रुझान बढ़ा है, इसके मायने की तलाश करता सुनीता नारायण का संपादकीय लेख
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यूरोप के युवा मतदाता दक्षिणपंथी पार्टियों की तरफ क्यों जा रहे हैं? मैं यह इसलिए पूछ रही हूं क्योंकि युवा ही हैं जो जलवायु परिवर्तन पर निष्क्रियता से नाराज हैं, फिर भी वे उन पार्टियों को वोट दे रहे हैं जो इस कार्रवाई को सबसे अधिक नकारती हैं। यह विरोधाभास क्यों है? लगातार गर्म होते और जोखिम से भरे हमारे ग्रह के लिए इसका क्या मतलब है?

जून, 2024 में यूरोपीय संसद के चुनाव में 30 वर्ष से कम उम्र के मतदाताओं ने दक्षिणपंथी पार्टियों को खुलकर अपना समर्थन दिया, जिनमें जर्मनी की अलट्रानेटिव फर डॉइशलैंड (एएफडी), फ्रांस में नेशनल रैली, स्पेन में वॉक्स, ब्रदर्स ऑफ इटली, पुर्तगाल में इनफ, बेल्जियम में व्लाम्स बेलांग, फिनलैंड में फिन्स और अन्य प्रमुख पार्टियां रहीं।

कई मामलों में यह 2019 के चुनावों में हरित वोट से 2024 में अति-दक्षिणपंथी वोट की ओर झुकाव था। क्या इसका मतलब यह है कि यूरोपीय युवाओं में जलवायु कार्रवाई के लिए इच्छा कम हुई है? या इसका मतलब यह है कि बेरोजगारी और पलायन जैसी अन्य चिंताएं प्राथमिकता ले रही हैं? या फिर क्या ऐसा इसलिए है क्योंकि यूरोप के युवाओं का मानना है कि दक्षिणपंथी पार्टियां भी जलवायु कार्रवाई के मामले में लचर रुख नहीं अपनाएंगी?

सच तो यह है कि यूरोप भी चरम मौसम की घटनाओं से समान रूप से प्रभावित है। साथ ही इसकी कार्रवाई उत्सर्जन को कम करने और वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ऊपर 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए सही दिशा में नहीं है। इसलिए युवा, जिन्हें यह तेजी से गर्म होती और विनाशकारी दुनिया विरासत में मिलेगी, चिंतित होने के लिए बाध्य हैं। वे वास्तव में अपने भविष्य के बारे में दुखी और चिंतित हैं।

जलवायु परिवर्तन अब केवल हरित और वामपंथी दलों का क्षेत्र नहीं रह गया है। लेकिन जब आप जलवायु परिवर्तन पर दक्षिणपंथी दलों के रुख पर विचार करते हैं तो वे साफ-साफ यह कहते हैं कि इससे उनका इनकार नहीं है। इससे पता चलता है कि ऐसे उपायों के खिलाफ अधिक प्रतिरोध होगा जो असुविधाजनक और कठोर हैं। और ये ऐसे उपाय हैं जो ग्रह को नष्ट करने वाले उत्सर्जन के वक्र को मोड़ने के लिए आवश्यक हैं।

डच पार्टी फॉर फ्रीडम ने अपने घोषणापत्र में कहा है कि मांस खाना, विमान लेना या पेट्रोल या डीजल कार चलाना लोगों की पसंद होनी चाहिए न कि यह ब्रुसेल्स (जहां यूरोपीय संघ का मुख्यालय स्थित है) के अधिकारियों की। इसमें आगे कहा गया है कि लोग ऊर्जा की उच्च कीमतों से परेशान हैं, इसलिए जीवाश्म ईंधनों पर लगे कर में कटौती का सुझाव दे रहे हैं। वहीं, अन्य दक्षिणपंथी दल कंबस्टन इंजन में बदलाव या नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर जाने के खिलाफ मुखर रहे हैं, यहां तक कि यह तर्क भी देते हैं कि यह महंगी सनक है।

इसके अलावा, कीटनाशकों के उपयोग या पशु धन में कमी या मांस की खपत के भावनात्मक मुद्दे के खिलाफ यूरोपीय किसानों का आंदोलन भी है जो इन दलों को एक साथ ला रहा है। पहले से ही, महत्वाकांक्षी ग्रीन डील कमजोर हो गई है। जलवायु कार्रवाई नहीं बल्कि राष्ट्रीय औद्योगिक हितों को बढ़ावा देने वाली नीतियां जोर पकड़ रही हैं।

तो, सवाल यह है कि क्या युवा मतदाता जलवायु परिवर्तन पर सख्त कार्रवाई का समर्थन करेंगे या सबको खुश रखने वाले विकल्प चुनेंगे जो जीवन के आनंद या यात्रा के अपने पसंदीदा तरीके से चुनाव को नहीं छीनते। दुख की बात है कि जलवायु संकट की गंभीरता और इस तथ्य को देखते हुए कि यूरोप सहित अमीर देशों ने उत्सर्जन की गति में कमी नहीं की है, झिझक भरे जवाब काम नहीं करेंगे। हमारे गर्म होते विश्व के लिए इसका क्या मतलब है?

आज के यूरोप में एक और विरोधाभास है, जो पुरानी औद्योगिक दुनिया में गूंज रहा है। यह तर्क दिया जाता है कि युवा लोग अप्रवासियों द्वारा स्थानीय नौकरियों और संस्कृति पर कब्जा करने की संभावना से चिंतित हैं। वे दक्षिणपंथी दलों की ओर जा रहे हैं क्योंकि ये पार्टियां कहती हैं कि वे अप्रवासियों को सीमा पार करने से रोकेंगी।

वे कुछ मामलों में खुले तौर पर नस्लवादी हैं और अपने देशों की “श्वेत” सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बनाए रखना चाहते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि यूरोप अपनी अर्थव्यवस्था की सेवा करने वाले अप्रवासियों के बिना नहीं चल सकता। इसे अपनी फसलों की कटाई, अपनी ट्रेनों और कारखानों को चलाने और अपने शहरों को साफ करने के लिए “दूसरी” दुनिया से आने वाले श्रमिकों की आवश्यकता है।

वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2024 में पाया गया है कि 2020 में यूरोप में लगभग 8.7 करोड़ अंतर्राष्ट्रीय प्रवासी रहते थे जिन्होंने 2015 की तुलना में 16 प्रतिशत की वृद्धि की है। इसमें कहा गया है कि हमारी दुनिया में कई युद्ध मानव जाति के इस पलायन को बढ़ा रहे हैं। 2022 के अंत तक यूरोप में प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या युद्धग्रस्त सीरिया और यूक्रेन से थी।

इसके बाद अवैध प्रवासी हैं, जिनकी संख्या का अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन वे मूल निवासियों को विस्थापित करने के लिए आने वाली भीड़ के प्रतीक बन गए हैं। रिपोर्ट बताती है कि जलवायु परिवर्तन के कारण धीमी गति से होने वाली घटनाएं विस्थापन का कारण बनती हैं, जो लोगों के पलायन में बड़ी भूमिका निभाती हैं।

दूसरे शब्दों में, यदि यूरोप जलवायु कार्रवाई करने के अपने संकल्प को कमजोर करता है, तो यह पहले से ही चरम घटनाओं से शिकार लोगों की दरिद्रता को बढ़ाएगा और इनका सामना करने की क्षमता खो देगा।

याद रखें, यह केवल यूरोप के सामने आने वाली पहेली नहीं है। डोनाल्ड ट्रम्प के आगामी नवंबर में होने वाले अमेरिकी चुनाव जीतने की संभावना है। जलवायु कार्रवाई और अप्रवासन उनके लिए हिकारत भरे लक्ष्य हैं। ऐसे में हमारी दुनिया बहुतरफा संकट में है।

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