नहीं रहे शिबू सोरेन: कैसे याद करेंगे लोग?

आदिवासी अधिकारों पर काम करने वाले विशेषज्ञों ने शिबू सोरेन की विशेषताओं के बारे में बताया
शिबू सोरेन (दाएं), अपने बेटे हेमंत सोरेन के साथ
फोटो: @HemantSorenJMM/X
शिबू सोरेन (दाएं), अपने बेटे हेमंत सोरेन के साथ फोटो: @HemantSorenJMM/X
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झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापकों में शामिल और पूर्वी भारत के आदिवासी समुदाय के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर चलाए गए आंदोलन के प्रमुख नेता शिबू सोरेन का आज राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे।

सोरेन पिछले एक महीने से दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में भर्ती थे और बीते कुछ दिनों से उनकी हालत बेहद नाजुक बनी हुई थी।

अपने 40 वर्षों के राजनीतिक जीवन में शिबू सोरेन आठ बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के सदस्य चुने गए।

एक मिश्रित विरासत

डाउन टू अर्थ ने आदिवासी अधिकारों के जानकारों से बातचीत की तो उन्होंने शिबू सोरेन की विरासत को "मिश्रित" बताया।

नई दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट में विजिटिंग प्रोफेसर प्रसिद्ध समाजशास्त्री विर्जिनियस खाखा ने कहा, “स्वतंत्र भारत के परिप्रेक्ष्य में उन्हें अवश्य ही याद किया जाएगा। उन्होंने 1970 के दशक से लोगों को संगठित करना शुरू किया तो वह आंदोलन केवल आदिवासी नहीं था। बल्कि उसमें अधिकतर हाशिए पर खड़े वर्ग शामिल थे। उस आंदोलन की विचारधारा यही थी कि समाज के किनारे छूटे लोगों की आवाज उठाई जाए। यह एक तरह से वामपंथी और आदिवासी आंदोलनों का संगम था। उन्होंने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। वे 'झारखंड' की बात एक मातृभूमि के तौर पर कर रहे थे, एक ऐसा भूखंड जहां हर झारखंडी को अपनी किस्मत खुद तय करने और स्वयं शासन करने का अधिकार हो। जब शिबू सोरेन अपने राजनीतिक जीवन के शीर्ष पर थे, तो यह उनकी पहचान थी। मेरे लिए, यह उनकी एक बेहद महत्वपूर्ण विरासत है।”

खाखा आगे कहते हैं, “भले ही शिबू सोरेन द्वारा स्थापित झामुमो आज कई गुटों में बंट चुका हो, लेकिन यह पार्टी आज भी क्षेत्रीय और आदिवासी राजनीति के लिहाज से बहुत अहम है।” उनके मुताबिक सोरेन की दूसरी बड़ी विरासत एक क्षेत्रीय नेता के तौर पर देखी जा सकती है। राज्यों और सीमांत क्षेत्रों के अधिकारों की रक्षा भारत के संघीय ढांचे की आत्मा है। क्षेत्रीय पार्टियां इसलिए जरूरी हैं, क्योंकि राष्ट्रीय पार्टियां हमेशा क्षेत्रीय मुद्दों को नहीं समझतीं। आप पूर्वोत्तर भारत को देखिए। वहां नागा, मिजो, खासी और अन्य समुदायों की अपनी-अपनी पार्टियां हैं, जिनके जरिए उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखी। इसी तरह झामुमो की स्थापना ने झारखंड की उपराष्ट्रीय आकांक्षाओं को स्वर देने का काम किया,जो सोरेन और उनके साथियों की एक बहुत महत्वपूर्ण विरासत है।”

झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के निदेशक संजय बसु मल्लिक ने कहा कि शिबू सोरेन का व्यक्तित्व आदिवासी अधिकारों के संदर्भ में हमेशा थोड़ा विवादास्पद रहा। उन्होंने समझौता और सहयोग का रास्ता चुना। इसके चलते कई बार आदिवासियों की अपेक्षाएं जमीन पर नहीं उतर सकीं। मसलन- जल, जंगल और जमीन पर अधिकारों की बहाली, आत्म-शासन की मांग… ये सब अब भी झारखंड में पूरी नहीं हो सकी हैं। लोग उन्हें कभी-कभी इसके लिए जिम्मेदार मानते हैं। लेकिन उनके व्यक्तित्व का दूसरा पक्ष भी है कि उन्होंने बिहार सरकार के दमनकारी शासन के खिलाफ झारखंड राज्य की मांग के लिए लंबा संघर्ष किया।

मल्लिक आगे जोड़ते हुए कहते हैं, “सोरेन की राजनीति की शुरुआत आंदोलन से हुई, लेकिन बाद में उन्होंने मध्यमार्गी या केंद्र-समर्थक नीति अपनाई। हो सकता है, कुछ लोगों के लिए उनकी रणनीति सही रही हो, क्योंकि राज्य से सीधे टकराकर आप सब कुछ हासिल नहीं कर सकते। कई लोगों का मानना है कि झारखंड राज्य का निर्माण अंततः उनके इसी रास्ते को अपनाने की वजह से हो पाया, जबकि इससे पहले के आंदोलन उस लक्ष्य को पाने में नाकाम रहे।”

जहां तक इस बात का सवाल है कि भविष्य में सोरेन को कैसे याद किया जाएगा, मल्लिक कहते हैं, “शिबू सोरेन के राजनीतिक जीवन का गहन अध्ययन भविष्य की आदिवासी पीढ़ियों को यह समझने में मदद कर सकता है कि उन्हें कैसी रणनीति अपनानी चाहिए, ताकि वे न केवल टिके रहें, बल्कि अपने कुछ अधिकारों को हासिल भी कर सकें।”

विवाद चाहे जो रहे हों, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि शिबू सोरेन ने आदिवासियों को एक मजबूत नेतृत्व दिया।

सांस्कृतिक कार्यकर्ता एवं विचारक गणेश नारायण देव्य ने डाउन टू अर्थ से कहा, “उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में याद किया जाएगा, जिन्होंने झारखंड की पहचान बनाई। वे मूल रूप से एक संघर्षशील योद्धा थे। वे आदिवासी समुदाय से निकलकर नेतृत्व की ऊंचाई तक पहुंचे। मैं उनके बाद के राजनीतिक जीवन पर टिप्पणी नहीं करूंगा, लेकिन झारखंड के आदिवासी समुदायों के नेता और एक क्षेत्रीय पहचान गढ़ने वाले शख्स के रूप में वह अद्वितीय थे।”

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