क्यों डूबा उत्तराखंड का टाइटैनिक 

सवाल ये है कि जो सरकार एक मरीना नहीं संभाल पायी, वो उसी टिहरी झील में सी-प्लेन उतारने के सपने बेच रही है।
Photo Credit : Pioneer Edge
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टिहरी झील में डूबा मरीना उत्तराखंड में टाइटैनिक की तर्ज़ पर जल-पर्यटन की हसरतों की सवारी के लिए लाया गया था। राज्य में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए झील की लहरों पर तैरते रेस्तरां का कॉनसेप्ट तो शानदार था। लेकिन इसके अलावा बाकी सारी चीजों में पूरी ढिलाई बरती गई। लहरों और हवाओं के खाली थपेड़े खा रहे, आधे डूबे मरीना में, राज्य के जल-क्रीड़ा के सपने भी आधे डूब गए। सवाल ये है कि जो सरकार एक मरीना नहीं संभाल पायी, वो उसी टिहरी झील में सी-प्लेन उतारने के सपने बेच रही है।

जब डूबने लगा मरीना

7 मई की सुबह टिहरी झील का जलस्तर कम होने पर फ्लोटिंग मरीना झील में पूरी तरह समाने जैसी स्थिति में आ गया। मरीना का एक हिस्सा डेढ़ होकर झील में डूब गया। इससे पहले भी पिछले वर्ष  मरीना झील में एक पहाड़ी पर फंस गया था और उसे काफी नुकसान हुआ था, लेकिन तब उसकी मरम्मत कर ली गई थी। मरीन विशेषज्ञ के मुताबिक इस बार मरीना को दुरुस्त करना मुश्किल दिखाई देता है।

करीब चार करोड़ की लागत से वर्ष 2015 में फ्लोटिंग मरीना बनकर तैयार हुआ था। लेकिन पर्यटन विभाग मरीना का संचालन शुरू नहीं करा सका। जल पर्यटन को बढ़ावा देने के मकसद से पिछले वर्ष मई में फ्लोटिंग मरीना में राज्य सरकार ने कैबिनेट बैठक भी की। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत,पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज समेत अन्य मंत्रियों ने राज्य में पर्यटन को बढावा देने के लिए, यहां से 13 जिले, 13 डेस्टिनेशन योजना की नींव रखी थी।  

शुरू से सवालों के घेरे में था मरीना

भारत सरकार में मरीन सर्वेयर रह चुके, केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वाटर स्पोर्ट्स में विजिटिंग फैकेल्टी और उत्तराखंड पर्यटन विभाग की टेक्निकल कमेटी के सदस्य रह चुके विपुल धस्माना शुरू से ही मरीना पर सवाल उठाते रहे हैं।

वे मरीना की खरीद प्रक्रिया पर सवाल उठाते हैं। उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद ने मरीना और बार्ज (भारी सामान ले जाने वाली एक लंबी नाव) की खरीद के लिए उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम को आदेश दिया। विपुल सवाल उठाते हैं कि जो एजेंसी पानी की टंकी नहीं बनाती है,वो पानी के जहाज कैसे बना सकती है। इसके बाद राजकीय निर्माण निगम ने बिना टेंडर जारी किये मुंबई की कंपनी वेस्ट कोस्ट मरीन को इसके निर्माण का जिम्मा दे दिया। वेस्ट कोस्ट मरीन छोटी-बड़ी किसी भी तरह की नाव निर्माण नहीं करती है। बल्कि आयात करती है और उसे बेचती है। मुंबई की इस कंपनी ने किसी अन्य कंपनी को पानी में तैरते रेस्टोरेंट को बनाने का जिम्मा दे दिया।

विपुल धस्माना टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड यानी टीएचडीसी के आधिकारिक मरीन सर्वेयर भी हैं। वे कहते हैं कि इस मरीना का निर्माण टिहरी झील के किनारे रेत पर किया जा रहा था। जबकि ये काम किसी शिपयार्ड में होना चाहिए था। उन्होंने खुद रेत किनारे टुकड़ों में पड़े नाव के पुर्जों को जोड़ते हुए देखा। उनका कहना है कि इस तरह से किसी मरीना का निर्माण नहीं किया जा सकता।  

पर्यटन विभाग की तकनीकी समिति ने, जिसमें विपुल भी शामिल थे, मरीना बना रही कंपनी से पूछा भी कि किन मानकों के आधार पर इसका निर्माण किया जा रहा है। कंपनी से मरीना का नक्शा मांगा गया। विपुल कहते हैं कि हमारे बार-बार सवाल पूछने पर वे नाराज़ हो गए और हमें बुलाना बंद कर दिया। कंपनी ने मरीना का नक्शा भी नहीं दिखाया। उनका कहना है कि क्योंकि कंपनी के पास कोई नक्शा था ही नहीं।

मरीना की खरीद को लेकर आरटीआई

विपुल धस्माना ने इस संबंध में वर्ष 2017 में उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद में एक आरटीआई भी डाली। जिसमें परिषद द्वारा नाव और अन्य उपकरण खरीद के बारे में जानकारी मांगी। इसके जवाब में परिषद ने बताया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम लिमिटेड को नाव और अन्य उपकरण खरीदने के आदेश दिये थे। जो नावें और उपकरण खरीदे गये हैं उनमें सुरक्षा की दृष्टि से कई चीजों का ध्यान रखना पड़ता है। लेकिन इस संबंध में परिषद के पास जांच करने की क्षमता नहीं थी और उन्होंने इसकी जांच नहीं की। केवल खरीद कर पर्यटन विकास परिषद को उपलब्ध करा दी गई। साथ ही पर्यटन विकास परिषद के अधिकारियों ने उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम लिमिटेड से इन नावों और उपकरणों से जुड़ी जरूरी जानकारी और अभिलेख हासिल करने की कोशिश नहीं की।

आरटीआई का जवाब देते हुए तत्कालीन राज्य सूचना आयुक्त ने आठ जून 2017 को लिखा कि ऐसा लगता है कि खरीद में भारी अनियमितता और लोकधन का अपवंचन करने के लिए ऐसी कार्यवाही की गई है। उन्होंने कई करोड़ की इस खरीद के मामले में मुख्य सचिव को महालेखाकार को इसकी जानकारी देने और सतर्कता संगठन से जांच कर कार्रवाई कराने को कहा। साथ ही ये भी कहा कि जो खरीद उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद खुद कर सकती थी, उसके लिए राजकीय निर्माण निगम को क्यों कहा गया। या फिर पर्यटन विकास परिषद ने किसी विशेषज्ञ या विशेषज्ञ संस्था से खरीद के लिए क्यों नहीं कहा।

मरीना के डूबने की जांच के लिए कमेटी

पर्यटन सचिव दिलीप जावलकर इस मामले पर प्रतिक्रिया देने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने सिर्फ यही कहा कि मरीना को लेकर जांच शुरू की जा रही है। उन्होंने बताया कि इसके ए भारत सरकार के स्वतंत्र सर्वेयर से सलाह लेकर रिपोर्ट तैयार की जाएगी।

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