डीएमएफ का 72 फीसदी पैसा नहीं खर्च पाई झारखंड सरकार

झारखंड सरकार 6 माह का रोड मैप तैयार कर रही है, जिसमें डीएमएफ को प्रमुखता से शामिल करना चाहिए।
डीएमएफ का 72 फीसदी पैसा नहीं खर्च पाई झारखंड सरकार
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राजीव रंजन 

लोकसभा चुनाव के बाद और दिसंबर में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव को मद्देनज़र रखते हुए, झारखंड सरकार कुछ प्रमुख कार्यक्रमों और विकास योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए 6 महीने का रोड मैप तैयार करने जा रही है। सूत्रों का कहना है कि इससे सम्बंधित निर्देश देने के लिए राज्य के सभी उपायुक्त एवं सभी विभागों के प्रमुख की बैठक बुलाई है, जिसमें राज्य और जिलों की प्रमुख योजनाओं के क्रियान्वयन पर चर्चा की जायेगी।

सरकार के इस कदम और अवसर को देखते हुए यह जरुरी है कि सरकार जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) और प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (पीएमकेकेकेवाई) को भी राज्यस्तरीय एजेंडे में प्रमुखता से शामिल करेI साथ ही डीएमएफ के बेहतर कार्यान्वयन के लिए निर्देश दिए जाए, जो खनन प्रभावित लोगों और क्षेत्रों को लाभ पहुंचाने के लिए है।

पिछले 4 वर्षों में, झारखंड डीएमएफ फण्ड में लगभग 4,083 करोड़ रु विभिन्न जिलों को मिलाकर संग्रहित हुए है। पीएमकेकेकेवाई के केंद्र सरकार द्वारा बनाये पोर्टल से प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य में अब तक 1,165 करोड़ रुपए (28 फीसदी) डीएमएफ फण्ड का उपयोग हो पाया है। ग्रामीण पेयजल आपूर्ति बढ़ाने और शौचालय बनाने के लिए बड़े पैमाने पर पैसा खर्च किया जा रहा है। राज्य सरकार ने 2016 में इसके लिए एक निर्देश जारी किया था। हालाँकि साफ़ पानी की समस्या सभी खनन क्षेत्रों में है, लेकिन नीड-बेस्ड और बॉटम उप प्लानिंग न होने के कारण खनन प्रभावितों की बहुत और गहन समस्याओं, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है, के निवारण पर अभी तक ध्यान नहीं दिया गया है।

इनमें बच्चों के बीच पोषण की स्थिति में सुधार, स्वास्थ्य सेवा और संसाधनों को बेहतर बनाने और खनन प्रभावित लोगों के बीच गरीबी को दूर करने जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। लगभग सभी बड़े खनन जिले जैसे कि आदिवासी बहुल पश्चिम सिंहभूम, में बाल कुपोषण की समस्या है। पश्चिम सिंहभूम में बाल कुपोषण पांच साल से कम उम्र बच्चों की मृत्यु दर (यू5एमआर) 96 है, जो मानकों के हिसाब से देश में सबसे खराब है। इसके अलावा लगभग सभी प्रमुख खनन जिलों के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में, आबादी के हिसाब से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) की क्षमता आधे से भी कम है और वे उन पर लोगों का स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने का दोगुना से अधिक बोझ है। जिला और उप-जिला अस्पतालों में भी संसाधनों और कर्मचारियों की कमी है। यह बात दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की डीएमएफ रिपोर्ट में सामने आयी है। इतना ही नहीं, इन क्षेत्रों में आजीविका के अवसर की कमी एवं बेरोजगारी भी देखने को मिलती है।

सीएसई की श्रेष्ठा बनर्जी कहती हैं “डीएमएफ अब अपने कार्यान्वयन के चौथे वर्ष में है और अब इन समस्याओं के निवारण के लिए डीएमएफ का उपयोग होना चाहिए।  यह देखते हुए कि हर जिले में समस्याओं का स्तर अलग-अलग है, डीएमएफ के लिए ग्राम सभा की सहभागिता के साथ नीड-बेस्ड प्लानिंग की ज़रुरत है।  डीएमएफ कानून और प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना (पीएमकेकेकेवाई) में भी यह स्पष्ट रूप से लिखा गया है”।

सिविल सोसाइटी के कुछ प्रतिनिधियों के अनुसार, “यह जरुरी है कि डीएमएफ के बारे में लोगों तक अधिक से अधिक जानकारी पहुचें तथा सार्वजनिक डोमेन में जानकारी वेबसाइट के माध्यम से साझा हो।” ऐसा ना होना भी डीएमएफ कानून और पीएमकेकेकेवाई का उल्लंघन है।

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