साक्षात्कार : “पंचायत कर्मियों की नियुक्ति के लिए बने एक अलग स्थानीय शासन सेवा”
इलस्ट्रेशन: योगेन्द्र आनंद / सीएसई

साक्षात्कार : “पंचायत कर्मियों की नियुक्ति के लिए बने एक अलग स्थानीय शासन सेवा”

भारतीय संविधान का 73वां संशोधन राज्यों से यह अपेक्षा करता है कि वे ऐसे कानून बनाएं जो पंचायती राज संस्थाओं को सही मायने में स्थानीय सरकारों के रूप में कार्य करने में सक्षम बनाएं। इन संस्थाओं को सौंपी गई शक्तियों के स्तर का आकलन करने के लिए पंचायती राज मंत्रालय 2004 से राज्यों का अध्ययन और रैंकिंग करता आ रहा है। सबसे ताजा रिपोर्ट फरवरी 2025 में “स्टेटस ऑफ डिवॉल्यूशन टू पंचायत्स इन स्टेट्स 2024” जारी की गई है। यह रिपोर्ट दिल्ली स्थित भारतीय लोक प्रशासन संस्थान द्वारा तैयार की गई है और इसमें राज्यों की रैंकिंग के लिए एक विकेंद्रीकरण सूचकांक का उपयोग किया गया है। इस रिपोर्ट के लेखक प्रोफेसर वीएन आलोक से राजू सजवान ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश
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Q

विकेंद्रीकरण सूचकांक की जरूरत कब और क्यों महसूस हुई?

A

1993 में 73वें संशोधन के लागू होने के लगभग दस साल बाद 2004 में अलग से पंचायती राज मंत्रालय का गठन किया गया। इसी साल पंचायतों के अधिकारों व शक्तियां को सौंपने की प्रक्रिया कहां तक पहुंची है, इसकी जानकारी इकट्ठा करने के लिए विकेंद्रीकण रिपोर्ट व सूचकांक तैयार करने का निर्णय लिया गया। उसके बाद 2015-16 तक विकेंद्रीकरण सूचकांक हर साल जारी हुआ। अब एक दशक बाद सूचकांक 2024 जारी किया गया है। सबसे पहले 73वें संशोधन के तहत पंचायतों के लिए संविधान में किए गए प्रावधानों को तीन हिस्सों में बांटा गया। इन्हें तीन एफ- फंक्शन, फाइनेंस एवं फंक्शनरीज नाम से जाना गया। साल 2008 में चौथा एफ यानी फ्रेमवर्क जोड़ा गया और मेरी सिफारिश पर 2012 में और दो आयाम- जवाबदेही व क्षमता निर्माण जोड़े गए।

Q

इन छह आयामों में से सबसे महत्वपूर्ण आयाम कौन सा है?

A

वैसे तो सभी बेहद महत्वपूर्ण हैं, लेकिन अगर इनमें से सबसे महत्वपूर्ण की बात की जाए तो वह फाइनेंस है। हमारे सूचकांक में भी फाइनेंस को 30 वेटेज दिया गया है। पंचायतों की वित्तीय शक्ति जितनी अधिक मजबूत होगी, वो अपने कार्यों को करने में उतने ही ज्यादा सक्षम होंगी। संविधान के अनुच्छेद 243आई के अनुसार, प्रत्येक 5 वर्ष में राज्य वित्त आयोग का गठन होता है, जो राज्य से पंचायतों को संसाधन स्थानांतरित करने जैसे कर या गैर-कर लगाने व वसूलने का अधिकार व अनुदान की सिफारिश करता है। चूंकि इससे राज्य के खजाने पर दबाव पड़ सकता है, इसलिए अनुच्छेद 280(3)(बी) के तहत केंद्रीय वित्त आयोग को राज्य का कोष बढ़ाने और पंचायतों को संसाधन पूरक बनाने का दायित्व सौंपा गया। अब तक 10वें केंद्रीय वित्त आयोग से लेकर 15वें आयोग ने पंचायतों को अनुदान आवंटित किए भी हैं।

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात है पंचायतों की अपनी आय। 73वें संशोधन के अनुच्छेद 243एच में राज्य विधानसभाओं को यह अधिकार दिया गया है कि वे पंचायतों को कर, शुल्क, टोल और फीस लगाने और वसूलने का प्राधिकार प्रदान करने वाले कानून बना सकें। हालांकि राज्यों का विषय होने के कारण हर राज्य में अलग-अलग व्यवस्था है। ज्यादातर राज्यों में संपति शुल्क वसूलने का काम पंचायतों को दिया गया है, लेकिन कर संग्रहण की व्यवस्था बहुत कमजोर होने के कारण यह राशि पंचायतों के लिए पर्याप्त नहीं है। हमारी रिपोर्ट में राज्य की आय में पंचायतों की हिस्सेदारी का आकलन किया गया है और केरल की पंचायतों का हिस्सा (कर और गैर-कर दोनों मिलाकर) सबसे अधिक है। लेकिन यह केवल 2.84 प्रतिशत है। बहुत से राज्यों में यह एक प्रतिशत से भी कम है। इस वजह से पंचायतों को राज्य व केंद्र की मदद पर निर्भर रहना पड़ता है, यही वजह है कि ग्राम पंचायतें अपना काम सही ढंग से नहीं कर पा रही हैं।

Q

आपने अपनी रिपोर्ट में स्थानीय सरकारों के लिए समेकित निधि की सिफारिश की है, उसके बारे में समझाएं ?

A

वर्तमान में राज्य की समेकित निधि (कंसोलिडेटेड फंड) में पंचायतों और नगरपालिकाओं के लिए पहले से कोई स्पष्ट कटौती नहीं होती। हमारा सुझाव है कि जैसे भारत की समेकित निधि को परिभाषित किया गया है, उसी तरह राज्य की समेकित निधि को भी परिभाषित किया जाए और इसमें पंचायतों और नगरपालिकाओं को दिए जाने वाले वैधानिक हस्तांतरण पहले से ही घटा दिए जाएं। यह सुझाव पंचायतों की वित्तीय आत्मनिर्भरता और पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए दिए गए हैं। इसमें संविधान के दो अनुच्छेदों में बदलाव की सिफारिश की गई है। अनुच्छेद 266 में समेकित निधि में पंचायतों को वैधानिक रूप से स्थान देने के लिए और अनुच्छेद 243 आई में राज्य वित्त आयोग के गठन को समयबद्ध और बाध्यकारी बनाने का प्रावधान किया गया है। मेरा मानना है कि केंद्रीय वित्त आयोग से पैसा सीधे राज्य वित्त आयोग और वहां से सीधे पंचायतों तक पहुंचना चाहिए।

Q

पंचायतों में कामकाज की स्थिति कैसी है?

A

(मुंह बनाते हुए) बहुत खराब। अनुच्छेद 243जी और 243एच के तहत पंचायतों से यह अपेक्षाएं की गई हैं कि वे (क) स्व-शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करें और अपने निवासियों को स्थानीय सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करें और (ख) राज्य सरकार द्वारा सौंपे गए कर और गैर-कर एकत्रित करें। इन दोनों ही मामलों में पंचायतों को उनके संवैधानिक कर्तव्यों को पूरा करने के लिए कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। हमारे फील्ड सर्वेक्षण में यह पाया गया कि ज्यादातर पंचायतों में स्थायी कर्मचारी नहीं हैं। ग्राम सचिव, लेखाकार, ग्राम रोजगार सेवक जैसी नियुक्तियां या तो अस्थायी हैं या पर्याप्त नहीं हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तराखंड ले लीजिए। उत्तराखंड में औसतन 17 पंचायतों पर एक ग्राम सचिव तैनात है। ऐसे में पंचायतें योजनाओं को अच्छे से लागू नहीं कर पातीं।

पिछले कुछ सालों से पंचायतों का डिजिटलीकरण किया जा रहा है, लेकिन तकनीकी स्टाफ की भारी कमी के कारण डिजिटलीकरण का मकसद भी पूरा होता नहीं दिख रहा है। हमारी सिफारिश है कि प्रत्येक ग्राम पंचायत में कम से कम एक पंचायत लिपिक या सहायक होना चाहिए, जो ग्राम पंचायत सचिव की सहायता कर सके।

साथ ही, वरिष्ठ स्तर पर पंचायत कर्मचारियों की भर्ती का कार्य प्रत्येक राज्य में राज्य लोक सेवा आयोग के अधीन होना चाहिए। हमने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि पंचायत के अन्य स्तरों के कर्मचारियों की भर्ती के लिए स्थानीय सरकार सेवा आयोग नामक एक अलग निकाय स्थापित किया जा सकता है। इस आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाए, जो एक समिति की सिफारिश पर आधारित हो। समिति के अध्यक्ष राज्य के मुख्यमंत्री हों। मेरा मानना है कि इससे पंचायत के कामकाज में काफी हद तक सुधार होगा और जवाबदेही भी बढ़ेगी।

Q

डिजिटल इंडिया पहल के अंतर्गत “ई-ग्राम स्वराज” पोर्टल की क्या भूमिका रही?

A

यह पहल एक क्रांतिकारी कदम रही है। ई-ग्राम स्वराज पोर्टल ने पंचायतों को योजना बनाने, बजट बनाने, लेखा-जोखा रखने और विकास परियोजनाओं की निगरानी करने में तकनीकी सक्षम बनाया है। इस डिजिटल परिवर्तन ने ग्रामीण शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता को बढ़ाया है। राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के डिजिटलीकरण ने लाभ वितरण की पारदर्शिता और दक्षता में सुधार किया है। हालांकि, कई राज्यों में डिजिटल साक्षरता की कमी और इंटरनेट कनेक्टिविटी बाधा बनी हुई है। कई बड़े राज्यों की पंचायतों में इंटरनेट कनेक्टिविटी तक नहीं है, जैसे ओडिशा की 7,142 पंचायतों में से 914 पंचायतों में ही इंटरनेट कनेक्टिविटी थी, लेकिन सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में 59,090 में मात्र एक पंचायत में इंटरनेट की पहुंच नहीं थी। लेकिन सवाल यह भी है कि इंटरनेट और कंप्यूटर होने के बावजूद तकनीक रूप से दक्ष कर्मचारी नहीं होंगे तो इसका लाभ पाना आसान नहीं होगा।

Q

प्रशासनिक अधिकारी पंचायतों को तवज्जो नहीं देते, क्यों?

A

दरअसल 73वें व 74वें संशोधन के बाद पंचायतों व नगर निगमों को सरकारी भाषा में लोकल बॉडी यानी स्थानीय निकाय कहा जाता है। मैं इन्हें लोकल बॉडी नहीं बोलता। मैं लोकल गवर्नमेंट यानी स्थानीय सरकार बोलता हूं। ये पंचायतें सरकार हैं। 73वें संशोधन में उन्हें सरकार का दर्जा दिया गया है, लेकिन लोकल बॉडी बोलने की मानसिकता यह है कि केंद्र या राज्य सरकारों के नुमाइंदे इसे राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के तौर पर देखते हैं, जबकि ब्यूरोक्रेट पंचायतों को तीसरी सरकार इसलिए नहीं मानना चाहते, क्योंकि ऐसा करने से उन्हें पंचायतों के सामने नतमस्तक होना पड़ेगा। यह सब मानसिकता का दोष है। जब तक अफसर व सरकारी नुमाइंदे इस मानसिकता से बाहर नहीं आएंगे, संपूर्ण विकेंद्रीकरण संभव नहीं है। यही वजह है कि पंचायत प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण देने की सख्त आवश्यकता है।

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