उपेक्षित मछुआरों पर ध्यान लेकिन सवाल बाकी

केंद्र सरकार की योजना के तहत पिछले दो सालों में विभिन्न राज्यों के मछुआरों के लिए जारी होने वाली निधि में कमी आई है
Credit: Rustam Vania
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वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट में मत्स्य पालन विभाग बनाने की घोषणा की है। इसकी घोषणा करते हुए उन्होंने कहा कि भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है। वैश्विक उत्पादन में भारत की 6.3 प्रतिशत हिस्सेदारी है। मछली पालन में भारत ने हाल के दशकों में 7 प्रतिशत से अधिक की औसत वार्षिक वृद्धि दर्ज की है। यह सेक्टर प्राथमिक स्तर पर लगभग 1.45 करोड़ लोगों को आजीविका प्रदान करता है।

उन्होंने कहा कि पिछले बजट में हमारी सरकार ने पशुपालन और मछलीपालन में लगे किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा देने की घोषणा की थी। बजट में उन्होंने किसान क्रेडिट कार्ड से कर्ज लेने वाले किसानों को 2 प्रतिशत ब्याज सब्सिडी देने का प्रस्ताव रखा है। वित्त मंत्री ने कहा कि यदि किसान अपने कर्ज को समय पर चुका देंगे तो उन्हें 3 प्रतिशत अतिरिक्त ब्याज सब्सिडी भी मिलेगी।

मछली पालन से जुड़े लोगों पर अब तक सरकारों ने कम ही ध्यान दिया है। राज्य सरकारों के उनके लिए अलग से विभाग है लेकिन केंद्रीय स्तर पर कोई ठोस नहीं है। केंद्रीय स्तर पर मछुआरों के कल्याण के लिए एक योजना जरूर है लेकिन इस योजना के तहत पिछले दो सालों में विभिन्न राज्यों के मछुआरों के लिए जारी होने वाली निधि में कमी आई है। साल 2016-17 में 1,700 लाख रुपए की निधि जारी की गई जबकि साल 2017-18 में महज 1,121 लाख रुपए ही जारी हो गए। साल 2015-16 इस योजना के तहत 6,659 लाख रुपए और 2014-15 में 6,153 लाख की निधि जारी की गई थी। पिछले दो सालों में कम निधि के जारी होने से सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं। 

मछुआरों के कल्याण के लिए चलाई जा रही योजना मुख्य रूप से समुद्र और तालाओं व झीलों से मछली पकड़ने वालों के लिए है। केंद्र और राज्य स्तर पर चल रही योजनाओं में उन मछुआरों के लिए कोई जगह नहीं है जो परंपरागत रूप से नदियों से मछली पकड़ते हैं। मछुआरों का एक बड़ा वर्ग नदियों की मछली पर आश्रित है। अब देखने वाली बात यह है कि एक नई घोषणा मछुआरों का कितना कल्याण कर पाती है और क्या इसमें नदी के मछुआरों को जगह मिल पाती है। 

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