

टिब्बी तहसील के राठीखेड़ा गांव में प्रस्तावित एथेनॉल फैक्ट्री के खिलाफ आंदोलन अभी शांत भी नहीं पड़ा है कि जिले के दूसरे छोर से एक और विरोध का धुआं उठने लगा है। राठीखेड़ा मामले में किसान संगठनों ने 7 जनवरी को संगरिया में महा पंचायत बुलाने का ऐलान कर रखा है, जिसे लेकर सरकार और प्रशासन हालात संभालने की कोशिशों में जुटे हैं लेकिन इन्हीं प्रयासों के बीच संगरिया तहसील में प्रस्तावित एक नई एथेनॉल फैक्ट्री के कारण ग्रामीण इलाकों में आक्रोश पैदा हो गया है।
यह फैक्ट्री संगरिया तहसील की ग्राम पंचायत सिंहपुरा के चक 27 एएमपी में प्रस्तावित है। बरनाला (पंजाब) की भारत बायो एथेनॉल प्रा. लि. वहां अनाज आधारित एथेनॉल संयंत्र स्थापित करना चाहती है। यह परियोजना इथेनॉल ब्लेंडिंग कार्यक्रम के तहत लाई जा रही है, जिसकी क्षमता 200 केएलडीपी होगी। इसके साथ ही संयंत्र परिसर में 5.0 मेगावाट क्षमता का सह उत्पादन विद्युत संयंत्र भी लगाया जाना प्रस्तावित है।
ग्रामीणों का कहना है कि कंपनी ने इस प्रोजेक्ट के लिए किसानों से करीब 42 बीघा जमीन खरीदी है। विभिन्न गांवों के किसानों ने कल हनुमानगढ़-अबोहर मार्ग पर खैरूवाला गांव के पास टोल प्लाजा पर सांकेतिक धरना दिया और सभा आयोजित कर फैक्ट्री के खिलाफ अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की। किसानों का कहना है कि इस तरह की फैक्ट्री से क्षेत्र की हवा, भूजल और मिट्टी पर गंभीर असर पड़ेगा। उनका साफ कहना है कि वे किसी भी कीमत पर इस कारखाने के काम को आगे नहीं बढऩे देंगे।
इस विरोध को संगठित रूप देने के लिए किसानों ने बैठक कर ‘फैक्ट्री हटाओ, क्षेत्र बचाओसंघर्ष समिति’ का गठन किया है। समिति में 42 सदस्यों को शामिल किया गया है, जिनमें इलाके के पूर्व सरपंच, किसान संगठनों के प्रतिनिधि और ग्रामीण शामिल हैं। संघर्ष समिति से जुड़े एडवोकेट प्रमेन्द्र खीचड़ बताते हैं कि कंपनी ने करीब तीन महीने पहले चुपचाप चारदीवारी का निर्माण शुरू किया और एक फ्लेक्स लगाकर प्रस्तावित एथेनॉल फैक्ट्री की जानकारी दी। इससे पहले ग्रामीणों को यही बताया गया था कि इस जगह सोलर प्लांट लगेगा।
खीचड़ के अनुसार जैसे ही एथेनॉल फैक्ट्री की जानकारी मिली, ग्रामीणों ने तीन महीने पहले ही जिला कलेक्टर को मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपकर विरोध दर्ज कराया था। इसके बाद भी कई बार प्रशासन को ज्ञापन दिए गए लेकिन किसी स्तर पर संवाद नहीं हुआ। कल धरने के दौरान प्रशासनिक अधिकारी मौके पर पहुंचे और सरकार तक मांग पहुंचाने का भरोसा दिलाया लेकिन ग्रामीण अभी भी आशंकित हैं। उनका कहना है कि जिस तरह से जमीन खरीद और औपचारिकताएं गुपचुप तरीके से पूरी की गईं उससे लोगों का भरोसा और कमजोर हुआ है।
खीचड़ सवाल उठाते हैं कि अगर एथेनॉल फैक्ट्री वास्तव में किसानों और क्षेत्र के हित में होती तो टिब्बी के किसान पहले से इसका विरोध क्यों कर रहे होते। उनका कहना है कि जिस तरह का प्लांट टिब्बी में लगाया जा रहा है, वैसा ही कारखाना यहां भी लाया जा रहा है। उन्हें आशंका है कि फैक्ट्री लगने से भूजल जहरीला हो सकता है, मिट्टी की उर्वर शक्ति खत्म हो जाएगी और जमीनें धीरे-धीरे बंजर होने लगेंगी। वायु प्रदूषण की स्थिति ऐसी हो सकती है कि सांस लेना तक मुश्किल हो जाए।
संघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं का तर्क है कि प्रस्तावित स्थल हनुमानगढ़ जिले के अंतिम छोर पर स्थित है। ऐसे में इसका असर केवल हनुमानगढ़ तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि पड़ोसी श्रीगंगानगर जिले के कई गांव भी इसकी चपेट में आएंगे। ग्रामीणों का कहना है कि यदि यहां चीनी मिल, खाद कारखाना या किसी अन्य अपेक्षाकृत कम प्रदूषणकारी उद्योग की स्थापना होती तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती। लेकिन एथेनॉल प्रोजेक्ट के नाम पर वे अपनी आने वाली पीढिय़ों को खतरे में नहीं डाल सकते।
इन्द्रपुरा गांव के अध्यापक सुभाष गोदारा कहते हैं कि पंजाब में एथेनॉल फैक्ट्रियों के कारण कई गांवों की हालत खराब हो चुकी है और वहां के अनुभव सबके सामने हैं। गोदारा कहते है कि ऐसे उद्योगों से जल स्रोत जहरीले होने और पर्यावरणीय क्षति का खतरा तय है। हमें विनाश के साथ विकास नहीं चाहिए। उन्होंने बताया कि इस मुद्दे पर 30 दिसंबर को महा पंचायत आयोजित करने का निर्णय लिया गया है जिसके लिए गांव-गांव जन संपर्क कर लोगों को बड़ी संख्या में पहुंचने का आह्वान किया जा रहा है।
किसान संगठनों भी इस फैक्ट्री के विरोध मेंं हैं अखिल भारतीय किसान सभा ने इस फैक्ट्री की स्थापना का खुलकर विरोध किया है। सभा के जिलाध्यक्ष संदीप सिंह का कहना है कि ऐसे प्रोजेक्ट उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने और खेती को धीरेधीरे बर्बाद करने की साजिश हैं, उन्होंने प्रश्न किया कि आम लोगों को इन फैक्ट्रियों की जानकारी तभी क्यों मिलती है, जब मौके पर निर्माण शुरू हो जाता है।
सिंहकहते हैं कि अगर सरकार और कंपनियों की नीयत साफ है तो फिर सब कुछ गुपचुप तरीके से क्यों किया जा रहा हैक्यों नहीं किसानों के बीच जाकर पारदर्शिता के साथ एथेनॉल फैक्ट्री के फायदे और नुकसान रखे जाते, ताकि लोग खुद फैसला कर सकें।
इस पूरे मामले में कंपनी का पक्ष जानने के लिए संवाददाता ने कंपनी की वेबसाइट पर उपलब्ध मोबाइल नंबर पर संपर्क किया।
कार्यालय से बताया गया कि कंपनी के सीएमडी विदेश दौरे पर हैं उनके निजी सहायक ने इस विषय पर कोई जानकारी साझा नहीं की।
बहरहाल, टिब्बी से लेकर सिंहपुरा तक फैलता यह विरोध संकेत दे रहा है कि राजस्थान में एथेनॉल फैक्ट्रियों को लेकर असंतोष केवल एक गांव या एक परियोजना तक सीमित नहीं है। इस तरह के आंदोलन नीति, पारदर्शिता और विकास के मॉडल पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं।