900 परिवारों के लिए आफत बना उत्तराखंड सरकार का एक फैसला

राज्य सरकार ने ़एंबुलैंस सेवा 108 का ठेका दूसरी कंपनी को दे दिया है, जिससे 900 कर्मचारियों और उनके परिवारों पर संकट आ गया है।
900 परिवारों के लिए आफत बना उत्तराखंड सरकार का एक फैसला
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नैनीताल के ओखलाकांडा ब्लॉक की दुर्गम ग्राम सभा गौनियारों तल्ला में रहने वाली कुशुमा देवी को शनिवार सुबह तीन बजे प्रसव पीड़ा हुई। परिवारवालों ने 108 एंबुलेंस सेवा को फ़ोन लगाने की कोशिश की। नेटवर्क नहीं होने के कारण फ़ोन नहीं लगा, तो उसके परिजन सात किलोमीटर ऊंची चोटी पर पहुंचे और फिर 108 एंबुलेंस को फ़ोन लगाया। लेकिन 108 एंबुलेंस ने सेवा देने में असमर्थता जता दी। फिर ग्रामीणों की मदद से परिजन कुशुमा को डोली में बिठा कर, करीब चार किलोमीटर पैदल चलकर मोटर मार्ग पर लाए और फिर एक टैक्सी में अस्पताल ले जाने लगे। इस दौरान कुशुमा को प्रसव पीड़ा उठी और उसने टैक्सी में ही एक बच्ची को जन्म दिया।

अखबार के अंदर के पन्नों में छपनेवाली ये छोटी सी ख़बर बताती है कि पहाड़ों में 108 एंबुलेंस सेवा को लाइफ लाइन क्यों कहा जाता है। यहां 108 एंबुलेंस ने अपनी सेवाएं देने में असमर्थता जता दी। लेकिन दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में इस सेवा पर बहुत सारी ज़िंदगियां टिकी हुई हैं। इस सेवा के ज़रिये मरीजों को अस्पताल पहुंचाने वाले कर्मचारी कुशुमा जैसी किसी महिला के लिए देवदूत से कम नहीं होते। पहाड़ की घुमावदार सड़कों पर एंबुलेंस दौड़ाने वाले और सेवा से जुड़े अन्य करीब 900 कर्मचारियों के सामने पहाड़ सी चुनौती आ खड़ी हुई है। अब तक जिस कंपनी (जीवीके-ईएमआरआई) के लिए वे इस कार्य को कर रह थे, राज्य सरकार के साथ उनका करार इस वर्ष मार्च महीने में समाप्त हो गया। कैंप- कम्यूनिटी एक्शन थ्रू मोटिवेशन नाम की मध्यप्रदेश की गैर-सरकारी संस्था ये महत्वपूर्ण ज़िम्मा संभालने के लिए तैयार नहीं थी, तो कंपनी अप्रैल महीने में भी अपनी सेवाएं दे रही है। मई से नई कंपनी ये ज़िम्मा संभालेगी। यानी मई महीने में कई कर्मचारियों का रोज़गार छिन जाएगा और वे सड़क पर आ जाएंगे।

उत्तराखंड में 108 एंबुलेंस सेवा का संचालन जीवीके ईएमआरआई कंपनी ने शुरू किया था। वर्ष 2018 में राज्य में ये एंबुलेंस सेवा शुरू हुई। कंपनी को दस वर्ष का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था। जो वर्ष 2018 में पूरा हो गया। उसके बाद कंपनी को छह-छह महीने के दो एक्सटेंशन दिये गये। 108 एंबुलेंस सेवा के उत्तराखंड के ऑपरेशनल हेड मनीष टिंकू बताते हैं कि उनका कॉन्ट्रैक्ट समाप्त होने के बाद इस सेवा से जुड़े 900 कर्मचारियों पर मुश्किल आ गई। इनमें सीनियर और मिड-मैनेजमेंट लेवल के कोई 50-55 कर्मचारियों को उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश भेज दिया गया है। अन्य कर्मचारियों को भी दूसरे राज्यों में जाने का ऑफर दिया गया। मनीष कहते हैं कि ज्यादातर कर्मचारी अपने घरों को छोड़ कर 17-18 हज़ार रुपये के लिए दूसरे राज्य में जाने को तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि कैंप संस्था को उन्होंने इन्हीं कर्मचारियों को समाहित करने के लिए कहा है। लेकिन उन्हें ये कर्मचारी महंगे लग रहे हैं, इसलिए वे इन्हें नहीं लेना चाहते। मनीष टिंकू कहते हैं चूंकि हमारे कर्मचारियों की तनख्वाह थोड़ी ज्यादा है। नई संस्था को पता है कि कम पैसे में उन्हें दूसरे लोग आसानी से मिल जाएंगे। इसलिए वे ज्यादा पैसे देने को तैयार नहीं हैं।

मनीष टिंकू बताते हैं कि उत्तराखंड में 108 एंबुलेंस के लिए जारी किए गए टेंडर में तीन कंपनियों ने हिस्सा लिया। जीवीके ने 1.66 लाख प्रति एंबुलेंस प्रति माह कोट किया। एक अन्य कंपनी ने 1.44 लाख रुपये प्रति एंबुलेंस प्रति माह कोट किया और कैंप ने 1.18 लाख रुपये प्रति एंबुलेंस प्रति माह कोट किया। कैंप को ये टेंडर मिल गया। चूंकि उन्होंने अपेक्षाकृत कम बजट में ये टेंडर लिया है तो वे नए कर्मचारियों को वेतन भी कम देंगे। यानी कम बजट का खामियाजा कर्मचारी उठाएंगे।

पहाड़ की लाइफ़ लाइन का जिम्मा संभालने वाली कैंप संस्था के उत्तराखंड में ऑपरेशनल हेड प्रदीप राय कहते हैं कि 108 एंबुलेंस सेवा से जुड़े पुराने कर्मचारी जीवीके कंपनी के थे। हमने अखबारों में विज्ञापन दिया और कहा कि जो लोग पहले से इसमें कार्य कर रहे हैं उन्हें वरीयता दी जाएगी। प्रदीप कहते हैं कि जिन लोगों ने नौकरी के लिए आवेदन किया, उन्हें दस-साढ़े दस हजार के वेतन पर ले लिया गया है। वो बताते हैं कि ज्यादातर पुराने कर्मचारियों ने ही आवेदन किया। प्रदीप राय का कहना है कि जीवीके के पुराने कर्मचारी जो वर्ष 2008 से कार्य कर रहे थे, उनका वेतन ही 17-18 हज़ार रुपये था। उस कंपनी में काफी सारे नए लोग भी थे, जो कम वेतन पर कार्य कर रहे थे। वे अब हमारे पास आ गए हैं। ज्यादा वेतन वाले कर्मचारियों ने आवेदन नहीं किया।

इसके उलट, 108 एंबुलेंस कर्मचारी एसोसिएशन के सचिव विपिन जमलोकी कहते हैं नई संस्था कैंप ने जीवीके के कर्मचारियों को कोई ऑफर नहीं दिया है। उलटा, उन लोगों ने कैंप से संपर्क किया, अपने रेज्यूमी जमा किए, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। विपिन जमलोकी 60 फीसदी कर्मचारियों को समाहित करने की बात का भी खंडन करते हैं। वे कहते हैं कि 900 कर्मचारियों में से 717 फील्ड कर्मचारी हैं। यदि कैंप संस्था ने 60 फीसदी कर्मचारियों को ले लिया है तो वे उसकी लिस्ट जारी क्यों नहीं करते। जमलोकी कहते हैं कि यदि ऐसा हुआ होता तो कर्मचारियों के अभाव में कैंप संस्था दो महीने का एक्सटेंशन और नहीं लेती। इसलिए जीवीके कंपनी को मार्च और अप्रैल का एक्सटेंशन दिलवाया गया है।

जीवीके-ईएमआरआई के दूसरे राज्यों में ज्वाइन करने की बात का भी विपिन जमलोकी खंडन करते हैं। वे बताते हैं कि न तो उन्हें, न उनकी जानकारी में किसी कर्मचारी को ऑफर लेटर या ज्वाइनिंग लेटर मिला है। हो सकता है कि कुछ लोगों को मौखिक रूप से कहा गया हो लेकिन लिखित रूप में ऐसा कुछ भी नहीं है। जीवीके ने उन्हें उनकी सेवाएं समाप्त करने का नोटिस दिया है।

जीवीएक-ईएमआरआई 17 राज्यों और केंद्रशासित राज्यों में 108 एंबुलेंस सेवाएं दे रही है। उत्तराखंड में उनकी 250 एंबुलेंस थीं। उत्तर प्रदेश में 7500 एंबुलेंस चलती हैं और 5000 नई एंबुलेंस लॉन्च की जा रही हैं। यानी कंपनी चाहे तो उत्तराखंड के कर्मचारियों को अन्य राज्यों में आसानी से समाहित कर सकती है। साथ ही उनके वेतन में इज़ाफ़ा भी किया जा सकता है, ताकि वे दूसरे राज्य में जा सकें।

इस मामले को लेकर 108 एंबुलेंस कर्मचारी एसोसिएशन ने भारतीय मजदूर संघ से संपर्क किया है। साथ ही डिस्ट्रिक्ट लेबर कमिश्नर के यहां भी प्रार्थना पत्र दिया है। इसके साथ ही श्रम विभाग को भी पत्र लिखा है।

चूंकि 108 एंबुलेंस सेवा स्वास्थ्य विभाग की है। ये सर्विस अभी ठेका प्रथा पर चल रही है। इससे पहले पीपीपी(पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड में चल रही थी। श्रम विभाग के नियम के मुताबिक स्वास्थ्य विभाग यदि किसी ठेकेदार को बदलता है, तो कर्मचारी वही रहते हैं। नियामानुसार और मानवता के हिसाब से भी, ठेकेदार बदलने पर पहला अधिकार मौजूदा कर्मचारियों का ही बनता है। 11 साल से इस सेवा से जुड़े कर्मचारी ठेकेदार बदलने पर नहीं हटाए जा सकते। न ही कर्मचारियों के वेतन में नए ठेकेदार द्वारा कटौती की जा सकती है।

कर्मचारी एसोसिएशन के विपिन जमलोकी कहते हैं कि 11 साल बाद वे इस वेतन पर पहुंचे हैं, जो अपने आप में औसत भी नहीं है। फिर नियम के मुताबिक नया ठेकेदार पुराने कर्मचारियों के वेतन में कटौती नहीं कर सकता है।

इस मामले को लेकर राज्य सरकार के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक कहते हैं कि हमारा ये प्रयास रहता है कि जो कर्मचारी कार्य कर रहे हैं उन्हीं को प्राथमिकता के आधार पर नई संस्था में लिया जाए। उनका कहना है कि हमारा ये प्रयास रहेगा कि उनमें से कोई कर्मचारी बेरोज़गार न हो। ये पूछने पर कि नई कंपनी कम पैसों पर नियुक्ति कर रही है, मदन कौशिक का कहना है कि एक निश्चित स्किल के लिए निश्चित वेतन होता है। उससे कम वेतन संभव नहीं है।

लेकिन निश्चित स्किल पर कार्य करते हुए निर्धारित वेतन से 11 वर्षों में यदि वेतन में इजाफा होता है, तो श्रम विभाग के नियम के मुताबिक वो वेतन कम नहीं किया जा सकता। फिलहाल 108 एंबुलेंस सेवा से जुड़े सैंकड़ों कर्मचारी अनिश्चितता के भंवर में फंसे हैं।

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