पुरुषोत्तम सिंह ठाकुर
कल 2 अक्टूबर2018 को गांधी जयंती पर यहां शांति का संदेश लेकर शुरु हो रही पदयात्रा तैयारी पूरी हो चुकी है। मध्य भारत, आध्र व छत्तीसगढ़ की सीमा से लगे चट्टी गांव में स्थित शबरी गांधी आश्रम में 6 राज्यों से करीब 125 पदयात्री इकट्ठा हो चुके हैं। इस पदयात्रा में करीब 200 लोग शामिल होने की संभावना है। आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी के इस छोटे से गांव चट्टी में स्थित शबरी गांधी सेवा आश्रम से कल 2 अक्टूबर,2018 को निकालकर 12 को को जगदलपुर(मध्य प्रदेश) पहुंचेंगे। प्रतिदिन यात्री 15 से 20 किमी पैदल चलेंगे और 11 गांव में रात को विश्राम करेंगे। इस शांति पदयात्रियों के दल में सामाजिक कार्यकर्ता, युवा छात्रों के अलावा शोधार्थी, पत्रकार, गांधीवादी और सबसे प्रमुख रूप से बड़ी संख्या में नक्सल प्रभावित राज्यों के आदिवासी शामिल होने वाले हैं।
मध्य भारत में माओदवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र में इस शांति यात्रा के आयोजन का मकसद के बारे में इस यात्रा के संयोजक शुभ्रांशु चौधरी ने इस यात्रा के मकसद के बारे में कहना है की– “सबसे महत्वपूर्ण बात है बस्तर के जंगलों में शांति कायम हो जहां देश के आदिवासियों की बड़ी आबादी रहती है। राज्य के सुरक्षाकर्मियों और नक्सल वादियों के बीच चल रही इस लड़ाई के चलते सबसे ज्यादा नुकसान कोई झेल रहा है तो वह है यहां के आदिवासी। इस लिए यह जरूरी है की यहां शांति हो जिससे आदिवासियों को उनका हक मिले। वह पहले की तरह से शांतिपूर्ण ढंग से जीवन गुजर बसर कर सकें।” उन्होने आगे कहा,“ शांति की बात होती रही है लेकिन यह बात कैसी हो किसके साथ हो, इस बारे में संवाद कायम करने के लिए पदयात्री सीधे इस से प्रभावित उन आदिवासियों के बीच जाने वाले हैं। यह विमर्श की रूप रेखा कैसी हो यह सब बातचीत होगी। यह शांति पदयात्रा के दौरान पदयात्री न तो कोई नारा देंगे और न कोई नारेबाजी करेंगे।”
पिछले 8 से 10 जून के बीच छत्तीसगढ़ के तिल्दा में देश के कई जाने माने सामाजिक कार्यकर्ताओं की बैठक हुई थी],जिसमें इस क्षेत्र में हो रही हिंसा को लेकर चिंता जाहिर की गई थी और इस शांति यात्रा की परिकल्पना बनी थी, ऐसी उन्होने जानकारी दी है।
इस शांति पदयात्रा में शबरी गांधी आश्रम के 80 वर्षीय गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता वि. बि. चन्द्रशेखरन प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं और इस यात्रा की अगुवाई कर रहे हैं। उनका कहना है की इस क्षेत्र में शांति कायम करने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण प्रयास है। “ मध्य भारत में इस हिंसा के चलते नक्सल प्रभावित राज्यों अब तक 12 हज़ार से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। इस लड़ाई में 2700 सुरक्षा कर्मी और 9300 के करीब आम लोग शामिल हैं जिनमें ज़्यादातर आदिवासी हैं।अहिंसा का कोई विकल्प नहीं है इसलिए शांति को एक अवसर मिलनी चाहिए।”
इस पदयात्रा के लिए आदिवासी नेता शेर सिंह आंचला का कहना है की इस हिंसा के चलते आदिवासियों के सांस्कृतिक विरासत को भी काफी नुकसान हुआ है। आज आदिवासी अपनी सांस्कृतिक पहचान को भी कायम नहीं रख पा रही है। इसलिए इस पदयात्रा की आवश्यकता अहम है। और हमें इस यात्रा से काफी उम्मीद है। यह यात्रा का अंतिम पड़ाव जगदलपुर होगा, जहां यात्री 12 को पहुंचेंगे। और वहां पर बस्तर डाइलाग-1 का आयोजन करेंगे।