मध्य प्रदेश के साल वन पर मंडराया खतरा, बोरर संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं 1,00,000 से अधिक पेड़

1995 में एक बड़े प्रकोप के चलते शुरुआती चेतावनियों की अनदेखी के बाद 5 लाख से अधिक साल के पेड़ काटे गए थे, जिनमें स्वस्थ पेड़ भी शामिल थे
मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले में साल के पेड़ों पर साल बोरर का हमला हुआ है। फोटो: भागीरथ
मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले में साल के पेड़ों पर साल बोरर का हमला हुआ है। फोटो: भागीरथ
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सारांश
  • मध्य प्रदेश के डिंडोरी में वन कर्मचारी एक आक्रामक बोरर संक्रमण से प्रभावित साल के पेड़ों को चिह्नित कर रहे हैं

  • स्थानीय आकलन है कि प्रभावित पेड़ों की संख्या 1,00,000 तक पहुंच सकती है, जो आधिकारिक अनुमानों से कहीं अधिक है।

  • वैज्ञानिकों का कहना है कि जिले के कुछ हिस्सों में 30–35 प्रतिशत साल के पेड़ पहले ही संक्रमित हो सकते हैं।

  • ग्रामीणों का कहना है कि साल की घनी छतरी तेजी से घट रही है, जिससे तापमान बढ़ रहा है और स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र खतरे में पड़ रहे हैं।

  • शोधकर्ता कहते हैं कि भारी वर्षा और बढ़ी हुई नमी ने संभवतः कीट के फैलाव को तेज कर दिया है।

मध्य प्रदेश के डिंडोरी जिले के सोनतीरथ गांव में शाम के चार बज रहे हैं। गांव के जंगल में लोगों की चहल–कदमी कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रही है। अचानक कुल्हाड़ी चलने की आवाज आने लगी। एक पल को लगा कि लोग पेड़ों की अवैध कटाई कर रहे हैं। उनके पास जाकर पूछताछ करने पर पता चला कि वे मजदूर हैं और साल (वैज्ञानिक नाम शोरिया रोबस्टा) के पेड़ों पर मार्किंग (निशान लगाने) का काम कर रहे हैं।

इन्हीं में से 70 साल के एक मजदूर सुकाल ने निराशा भरी आवाज में अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि “पूरा जंगल रो रहा है। जंगल बहुत तेजी से सूख रहा है। इस साल बोरर (कीट) ने जंगल को काफी नुकसान पहुंचाया है।” उन्होंने बताया कि पिछले 4–5 वर्षों से साल बोरर का हल्का असर दिखता था, लेकिन इस वर्ष नुकसान इतना ज्यादा है कि उन्हें पेड़ों की मार्किंग का निर्देश दिया गया है। मार्किंग किए गए पेड़ों को काटा जा सकता है।

सोनतीरथ गांव में पिछले चार दिनों से करीब 35 मजदूर साल बोरर प्रभावित पेड़ों की मार्किंग में जुटे हुए हैं। गांव के जंगल में कूप संख्या 776 में 119.25 हेक्टेयर का साल का वन क्षेत्र है। अभी तक इस 119.25 हेक्टेयर में से केवल 3 हेक्टेयर में ही मार्किंग का काम हुआ है और अब तक 3113 पेड़ों को गिना गया है जिन पर साल बोरर का प्रभाव है। मजदूरों के अनुसार पूरे 119.25 हेक्टेयर जंगल की मार्किंग में एक महीना लग सकता है और प्रभावित पेड़ों की संख्या 1 लाख तक भी पहुंच सकती है।

इससे पहले 1995 में मध्य प्रदेश में साल के पेड़ों को नष्ट करने वाला हार्टवुड बोरर का बड़ा प्रकोप हुआ था, जिसने एक गंभीर पारिस्थितिक संकट पैदा कर दिया था। डाउन टू अर्थ ने रिपोर्ट किया था कि यद्यपि यह कीट स्थानीय स्तर पर पाया जाता है और नियंत्रण योग्य है, लेकिन शुरुआती चेतावनियों को वर्षों तक नजरअंदाज किया गया। स्थानीय लोगों का आरोप था कि प्रकोप की शुरुआत 1992 से पहले भी हो गई थी। जब संक्रमण तेजी से फैला, तो समाधान के तौर पर बड़े पैमाने पर साल के पेड़ों की कटाई की गई, जिसके परिणामस्वरूप पांच लाख से अधिक पेड़ काट दिए गए, जिनमें कई स्वस्थ पेड़ भी शामिल थे।

इस प्रकोप में 2,00,000 से अधिक साल के पेड़ संक्रमित हुए और केवल मध्य प्रदेश में ही 1,200 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। यह देश में 100 वर्षों से अधिक समय में देखा गया सबसे भयावह साल बोरर प्रकोप था।

2015 में डाउन टू अर्थ ने रिपोर्ट किया था कि मध्य प्रदेश के मंडला और सीधी वनमंडलों में साल बोरर संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे थे। भारत में कुल वन क्षेत्र का 25 प्रतिशत हिस्सा साल के जंगलों का है। वैज्ञानिकों का कहना था कि यद्यपि बोरर का छिटपुट प्रकोप साधारण बात है, लेकिन वन विभागों को इसकी जनसंख्या पर करीबी निगरानी रखनी चाहिए, क्योंकि हर 20 साल में एक बड़ी लहर दर्ज की जाती है।

साल बोरर से संक्रमित एक पेड़। फोटो: भागीरथ
साल बोरर से संक्रमित एक पेड़। फोटो: भागीरथ

लगभग तीन दशक बाद हुए नए हमले के बारे में अब तक वन विभाग के अधिकारी खुलकर बोल नहीं रहे हैं। वे ऊपर से आदेश आने का इंतजार कर रहे हैं। करंजिया की रेंजर कौशांबी झा ने डाउन टू अर्थ को इतना ही बताया कि वह इस विषय पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं हैं। उनका कहना है कि वैज्ञानिकों की एक टीम क्षेत्र का दौरा कर चुकी है और उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार की है, जो उन्हें अभी प्राप्त नहीं हुई है।

स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार वन विभाग के अधिकारी डिंडोरी में प्रभावित पेड़ों की संख्या मात्र 5,000 बता रहे हैं, लेकिन इस आंकड़े पर भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि जिस पैमाने पर डाउन टू अर्थ ने पेड़ों को देखा और सोनतीरथ गांव में हालात समझे, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि यह संख्या कम आंकी गई है। स्थानीय लोग भी इस आंकड़े को वास्तविक स्थिति से बहुत कम बता रहे हैं।

करंजिया का दौरा करने वाले जबलपुर स्थित ट्रॉपिकल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक वैज्ञानिक ने डाउन टू अर्थ को बताया कि स्थिति ‘अलार्मिंग’ है। उनके अनुसार करीब 30–35 प्रतशित साल के पेड़ों पर साल बोरर का असर पाया गया है।

डिंडोरी के एक अन्य गांव चौड़ाददर के ग्रामीणों ने भी बताया कि इस साल साल के बहुत से पेड़ सूख चुके हैं। 4000 की आबादी वाले इस गांव में रहने वाले भारत पदवार कहते हैं कि उनके यहां लगभग 95 प्रतिशत पेड़ साल के हैं। उनका कहना है कि अगर साल बोरर का प्रकोप इसी तरह रहा, तो आने वाले 4–5 वर्षों में साल का पूरा जंगल ख़त्म हो जाएगा। वह बताते हैं कि गांव में हमेशा ठंडक रहती थी, कभी कूलर–पंखे की जरूरत महसूस नहीं होती थी, लेकिन साल के पेड़ खत्म होने से अब पहले से ज़्यादा गर्मी महसूस होती है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि इस साल साल बोरर के पनपने की बड़ी वजह अधिक बारिश के कारण बढ़ी नमी हो सकती है। स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों ने बताया है कि मानसून 2025 में क्षेत्र में अत्यधिक वर्षा हुई है।

डिंडोरी का साल का जंगल अनूपपुर में स्थित अमरकंटक से लगा हुआ है। अमरकंटक में भी साल बोरर का प्रकोप पाया गया है। अमरकंटक के रेंजर वीरेंद्र कुमार श्रीवास्तव ने डाउन टू अर्थ को बताया कि उनके शुरुआती सर्वे में 6 प्रतिशत पेड़ साल बोरर प्रभावित मिले हैं। 8525 हेक्टेयर के जंगल वाले इस क्षेत्र में लगभग 40 लाख साल के पेड़ हैं। उन्होंने बताया कि शुरुआती सर्वे में जंगल के सभी 47 कंपार्टमेंट्स में 1 हेक्टेयर के सैंपल प्लॉट पर सर्वे किया गया था। हाल ही में हर कंपार्टमेंट में 5 प्लॉट का दोबारा सर्वे किया गया है ताकि वास्तविक स्थिति और स्पष्ट हो सके।

साल के पेड़ों पर साल बोरर अभी लार्वा अवस्था में हैं और सर्दियों में सुप्तावस्था में रहेंगे। गर्मी का मौसम शुरू होते ही ये बाहर निकलकर फैलना शुरू करेंगे। ट्रॉपिकल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक सी. मोहन बताते हैं कि साल बोरर की मादा कीट एक दिन में 250 अंडे देने की क्षमता रखती है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इनका फैलाव कितना तेज होता है। यह कीट पूरे जंगल को नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखता है। उनका कहना है कि अभी इनकी इल्लियां पेड़ के तने के अंदर हैं, वे कितनी संख्या में हैं, यह कहना मुश्किल है। इस साल इनके फैलाव के पीछे कौन–कौन से जलवायु कारक ज़िम्मेदार हैं, इसका अध्ययन किया जाना चाहिए।

डाउन टू अर्थ की 1998 में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक साल बोरर का जीवनचक्र मानसून से गहराई से जुड़ा हुआ है। वयस्क भृंग बारिश के साथ बाहर निकलते हैं और मादा लगभग 250 अंडे पेड़ की छाल में देती है। एक सप्ताह के भीतर लार्वा निकल आते हैं और छह से सात महीने तक सक्रिय रहते हुए पेड़ के सैपवुड और हार्टवुड में गहराई तक छेद करते हुए तने के भीतर विस्तृत सुरंगें बना देते हैं। वे पेड़ के अंदर ही प्यूपा अवस्था में जाते हैं और अगले मानसून में दोबारा बाहर निकलते हैं।

वयस्क बोरर ताजे चिपचिपे रस की ओर अत्यधिक आकर्षित होते हैं। वे इसे दो किलोमीटर दूर से भी भांप सकते हैं और नई कटी हुई लकड़ी तक मिनटों में पहुंच सकते हैं।

साल का पेड़ अपने बचाव के लिए रेजिन (गोंद) निकालता है, जो सीमित हमलों के दौरान 85–100 प्रतिशत तक लार्वा को डुबो कर मार देता है, लेकिन यह प्रतिक्रिया पेड़ को कमजोर कर देती है और संक्रमण अधिक होने पर पेड़ पर्याप्त रेजिन नहीं बना पाता। इसका परिणाम प्रभावित जंगलों में दिखने वाली विशिष्ट पीली लकीरों के रूप में सामने आता है।

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