महुआ का मौसम : जहां रहता है महुआ, वहां नहीं रहती भुखमरी

राशन की उपलब्धता ने महुआ पर निर्भरता काफी हद तक कम कर दी है, नतीजतन बीमारियां आदिवासियों को घेरने लगी हैं
मार्च-अप्रैल में अमाड़ गांव की जीवनरेखा बन जाता है महुआ का संग्रहण। सभी फोटो : भागीरथ/सीएसई
मार्च-अप्रैल में अमाड़ गांव की जीवनरेखा बन जाता है महुआ का संग्रहण। सभी फोटो : भागीरथ/सीएसई
Published on

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में बसे अमाड़ गांव के आदिवासियों को महुआ का मौसम लखपति बनने का पूरा अवसर देता है। गांव में जिसके पास जितने ज्यादा महुआ के पेड़ हैं, वह उतना ही अमीर है। उदाहरण के लिए अपने 60 महुआ के पेड़ों से करीब 20-25 क्विंटल महुआ हासिल करने वाले धनेश्वर इस मौसम में लखपति बन जाते हैं।

करीब 240 परिवारों वाले इस गांव में हर परिवार में औसतन 5-6 सदस्य हैं। कुछ परिवारों में 20 सदस्य भी हैं। गांव में बड़े परिवार का अर्थ है, महुआ संग्रहण के लिए अधिक हाथ और ज्यादा आय।

अमाड़ गांव में बड़ी संख्या में है महुआ के पेड़। हर परिवार कम से कम 5 क्विंटल महुआ इकट्ठा कर लेता है
अमाड़ गांव में बड़ी संख्या में है महुआ के पेड़। हर परिवार कम से कम 5 क्विंटल महुआ इकट्ठा कर लेता है

गांव की वन संसाधन प्रबंधन समिति के अध्यक्ष गणेश राम यादव बताते हैं कि 70-75 प्रतिशत परिवारों के पास महुआ के पेड़ हैं। गांव के अधिकार क्षेत्र में करीब 1,517 हेक्टेयर का जंगल है, जहां महुआ के पेड़ बहुतायत में हैं। जिन 20-25 प्रतिशत परिवारों के पास महुआ के पेड़ नहीं हैं, वे इस मौसम में जंगल पर पूरी तरह आश्रित हो जाते हैं।

उनका कहता है कि इसके अतिरिक्त जिन लोगों के पास अधिक पेड़ हैं और वे पूरा महुआ बीनने में सक्षम नहीं हैं, वे भी महुआ के पेड़ों से वंचित परिवारों को महुआ बीनने की इजाजत दे देते हैं।   

इस तरह गांव का प्रत्येक परिवार इस सीजन में कम से कम पांच क्विंटल महुआ इकट्ठा कर ही लेता है। यादव के अनुसार, अधिकतम संग्रहण की कोई सीमा नहीं हैं। 15-20 सदस्यीय परिवार जंगल और निजी पेड़ों से आसानी से 20 क्विंटल तक महुआ संग्रहित कर करीब एक लाख रुपए तक की आय सृजित कर सकता है।

करलाझर गांव के एक घर में सुखता महुआ
करलाझर गांव के एक घर में सुखता महुआ

कोर क्षेत्र का गांव होने के कारण अमाड़ में तेंदु पत्ते को तोड़ना और उसका विक्रय प्रतिबंधित है, इसलिए यहां महुआ का महत्व और बढ़ जाता है। यादव बताते हैं कि कोई भी वनोपज लाभप्रदता के मामले में महुआ को टक्कर नहीं दे पाती। पूरे गांव की आजीविका इस मौसम में पूरी तरह महुआ पर केंद्रित रहती है। उनका यह भी कहना है कि महुआ बेचकर ही आदिवासी खरीफ सीजन की तैयारी करने के साथ-साथ परिवार का खर्च चलाते हैं।

अमाड़ के निकटवर्ती एक अन्य कोर क्षेत्र के गांव करलाझर में रहने वाले करण सिंह नाग कहते हैं कि जिस घर में महुआ होता है, वहीं भुखमरी नहीं आती। यह महुआ दवा, भोजन और दारू तक में उपयोगी है। वह बताते हैं कि जिस वक्त भोजन की कमी होती थी, तब महुआ ही काम आता था। हालांकि अब राशन की उपलब्धता ने महुए पर निर्भरता काफी हद तक कम कर दी है। उनका यह भी मानना है कि ज्यों-ज्यों महुआ भोजन से दूर हुआ है, ज्यों-ज्यों बीमारियों ने आदिवासियों को घेरा है।  

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in