हिमाचल प्रदेश में वन अधिकारों पर काम करने वाली 24 समितियों ने जंगलों में पेड़ों की अवैध कटाई पर चिंता जाहिर करते हुए 26 अगस्त को 2024 के राज्य स्तरीय निगरानी समिति के अध्यक्ष मुख्य सचिव को पत्र लिखा है और इस मामले में दखल की मांग की है।
पत्र के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में अवैध रूप से हरे पेड़ों की कटाई के मामले सामने आ रहे हैं। साल 2014-15 में शिमला के पास स्थित मौजा जंगल में 477 पेड़ों की कटाई की गई। इसी तरह 2013-14 में चंबा के अहलामी बीट में 895 देवदार के हरे पेड़ों की कटाई की गई।
इसी तरह शिमला सर्कल के कोटी वन ब्लॉक में 2015-18 के दौरान 416 से अधिक पेड़ों की कटाई अवैध रूप से की गई। पत्र में कहा गया है कि 2022 में भी कांगड़ा जिले के डाडा सीबा वन रेंज के रेल बीट में अवैध रूप से खैर के पेड़ों की कटाई हुई है।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि ऐसे मामलों में ठेकेदारों और व्यापारियों के अलावा वन विभाग व वन निगम के अधिकारियों के भ्रष्टाचार के मामले अक्सर उजागर होते हैं।
अब हाल ही में बंजार क्षेत्र के सराज वन प्रभाग के अंतर्गत सामुदायिक सीएफआर वन में एक घटना घटी, जहां 400 हरे पेड़ों को अवैध रूप से गिराए जाने का दावा पत्र में किया गया है।
स्थानीय विधायक सुरेंद्र शौरी ने इस मामले में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आरोप लगाया था कि हिमाचल प्रदेश राज्य वन विकास निगम से जुड़े ठेकेदार ने अवैध रूप से हरे पेड़ों की कटाई की।
हिमालय नीति अभियान के संयोजक गुमान सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि वन विभाग सालवेज पेड़ों (सूखे और टूटे पेड़) को चिन्हित करके वन निगम को जानकारी देते हैं और फिर वन निगम इन पेड़ों की कटाई का ठेका देते हैं। ये ठेकेदार तय मात्रा में सूखे पेड़ न मिलने पर हरे पेड़ों की कटाई कर देते हैं।
पत्र में मांग की गई है कि सालवेज पेड़ों की कटाई प्रक्रिया वन अधिकार समितियों और पंचायत को शामिल किया जाए और पेड़ों की कटाई के वक्त वीडियोग्राफी कराई जाए। गुमान सिंह कहते हैं कि पेड़ों की कटाई में पारदर्शिता बहुत जरूरी है।
स्थानीय लोगों को प्रक्रिया में शामिल करके और वीडियोग्राफी के जरिए इसमें पारदर्शिता लाई जा सकती है। इसलिए वन अधिकार समितियों द्वारा मांग की गई है कि ठेकेदारों द्वारा अवैध कटान से बचने के लिए चिन्हित वृक्षों की नियमित निगरानी के लिए सामुदायिक वन अधिकार प्रबंधन समिति, ग्राम पंचायत, वन विभाग और वन निगम के अधिकारियों सहित संयुक्त समिति का गठन किया जाए।
साथ ही संयुक्त समिति के सत्यापन और एनओसी प्रमाण पत्र को अनिवार्य बनाया जाए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई अवैध कार्य न हो और गांव अपने वन संसाधनों की रक्षा कर सकें।