डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट का असर, केंद्र ने कर्नाटक से वन भूमि के उपयोग पर मांगी स्पष्टता

सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति के लिए बनाई गई परियोजना पर पर्यावरण और प्रक्रियागत चिंताओं के कारण कड़ी निगरानी रखी जा रही है
येट्टीनाहोल परियोजना।
येट्टीनाहोल परियोजना।
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केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कर्नाटक सरकार को विवादास्पद येत्तिनाहोल अंतर-बेसिन जल अंतरण परियोजना के विभिन्न पहलुओं पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है, जिसमें वन भूमि का परिवर्तन (डायवर्सन) और क्षेत्र की पारिस्थितिकी और पर्यावरण पर इसका प्रभाव शामिल है। वन उप महानिरीक्षक प्रणीता पॉल द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में डाउन टू अर्थ द्वारा मार्च 2022 में प्रकाशित एक लेख का संदर्भ दिया गया है।

केंद्रीय मंत्रालय का यह निर्देश कर्नाटक सरकार द्वारा 19 जून, 2024 को येत्तिनाहोल पेयजल परियोजना के संबंध में लिखे गए पत्र के बाद आया है। राज्य सरकार से वन भूमि हस्तांतरण (डायवर्सन) और उससे संबंधित पर्यावरणीय चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अतिरिक्त जानकारी प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है।

सूखा प्रभावित क्षेत्रों को पेयजल आपूर्ति करने के उद्देश्य से बनाई गई इस परियोजना पर पर्यावरणीय और प्रक्रियात्मक चिंताओं के कारण कड़ी निगरानी रखी जा रही है। परियोजना के पहले चरण का उद्घाटन 6 सितंबर, 2024 को किया गया।

वन भूमि उपयोग पर चिंता

येत्तिनाहोल परियोजना का उद्देश्य कोलार, चिक्काबल्लापुरा, रामनगर, बैंगलोर ग्रामीण, देवनहल्ली औद्योगिक क्षेत्र और हसन के कुछ हिस्सों को पानी उपलब्ध कराना है। इसकी योजना 1,200 हेक्टेयर भूमि पर बनाई गई है, जिसमें से आधी जमीन वन क्षेत्रों में आती है।

वर्तमान प्रस्ताव में 10.13 हेक्टेयर वन भूमि को डायवर्ट करने का प्रयास किया गया है। हालांकि, केंद्रीय मंत्रालय ने जमीन को टुकड़ों में विभाजित करने के अनुरोधों के बारे में चिंता जताई है और राज्य सरकार से आग्रह किया है कि यदि अधिक वन भूमि की आवश्यकता है तो वह एक समेकित योजना प्रस्तुत करे।

टुकड़ों में विभाजित किए जाने वाले इस नजरिए ने पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (ईआईए) की निरीक्षण की क्षमता के बारे में सवाल उठाए हैं।

मौजूदा चिंताएं 2016 के प्रस्ताव में उठाई गई चिंताओं से मिलती-जुलती हैं, जिसमें हसन जिले के सकलेशपुरा तालुक में 18.32 हेक्टेयर से संशोधित 13.93 हेक्टेयर वन भूमि को डायवर्ट करने की मांग की गई थी।

यह जमीन प्रोजेेक्ट के लिए निर्धारित की गई थी, लेकिन 2019 की सैटेलाइट इमेजरी समीक्षा से पता चला कि स्वीकृत सीमाओं के बाहर वन भूमि का उपयोग किया गया था। दोबारा से सर्वेक्षण करने के लिए कई बार अनुरोध किया गया, लेकिन राज्य सरकार ने अभी तक अनुपालन रिपोर्ट प्रदान नहीं की है, जिससे प्रोजेक्ट के प्रबंधन के बारे में और सवाल उठ रहे हैं।

एक और प्रमुख मुद्दा भूमि मानचित्रण का है, जो राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत की गई फाइलों से संबंधित है। अधिकारियों ने फाइलों में विसंगतियों को नोट किया है, जिसमें वन और गैर-वन भूमि के बीच की सीमाएं अस्पष्ट हैं। केंद्रीय मंत्रालय ने इस पर स्पष्टीकरण मांगा है और वैकल्पिक साइट के विश्लेषण का अनुरोध किया है ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि अन्य संभावित स्थानों की तुलना में वन भूमि को क्यों चुना गया?

वनीकरण और वन्यजीवों की चिंताएं

राज्य सरकार को वनीकरण के लिए पहचानी गई भूमि की उपयुक्तता की पुष्टि करने वाली प्रतिपूरक वनीकरण (सीए) योजना और एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए भी कहा गया है। प्रस्तावित वनीकरण स्थलों में से कुछ से गुजरने वाली सड़कों के चलते इस भूमि का उपयोग बहाली के लिए करने की व्यवहार्यता के बारे में चिंताएं जताई गई हैं। इसके अलावा प्रतिपूरक वनीकरण की भूमि और तीर्थरामपुरा आरक्षित वन के बीच एक ओवरलैप दिखाई दिया, जिसे स्पष्ट करने को कहा गया है।

दिसंबर 2023 में प्रधान मुख्य वन संरक्षक द्वारा एक सिफारिश के बावजूद वन्यजीव शमन योजना की अनुपस्थिति पर भी चिंता जताई गई है। केंद्रीय मंत्रालय ने राज्य सरकार से इस चूक को स्पष्ट करने के लिए कहा है।

2022 की डाउन टू अर्थ की रिपोर्ट में येत्तिनाहोल परियोजना के कारण होने वाले पर्यावरणीय विनाश को उजागर किया गया था, जिसमें भूस्खलन और पश्चिमी घाट को व्यापक नुकसान की बात कही गई है, जो कि एक नाजुक पारिस्थितिक क्षेत्र है। रिपोर्ट में 22,000 करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद पेयजल उपलब्ध कराने के अपने वादे को पूरा करने में परियोजना की विफलता की भी आलोचना की गई।

इन चिंताओं के मद्देनजर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने लेख में उठाए गए मुद्दों को संबोधित करते हुए एक तथ्यात्मक रिपोर्ट और परियोजना की व्यवहार्यता और स्थिरता का समग्र मूल्यांकन करने के लिए कहा है।

येत्तिनाहोल परियोजना को कर्नाटक के कई जिलों में पानी की गंभीर कमी को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। हालांकि, इसे पर्यावरण अनुपालन और नियामक अनुमोदन से संबंधित बढ़ती चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

परियोजना का भविष्य राज्य सरकार की इन चिंताओं के लिए पारदर्शी और व्यापक प्रतिक्रिया प्रदान करने और मजबूत पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को लागू करने की क्षमता पर निर्भर करता है।

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