राजधानी दिल्ली में वनवासियों की धमक, कहा- वनाधिकार कानून लागू हो

सुप्रीम कोर्ट में 26 नवंबर को वन अधिकार कानून 2006 पर सुनवाई होनी है। उससे पहले देश के विभिन्न राज्यों से वनवासियों ने दिल्ली पहुंच कर प्रदर्शन किया
Protestors at the rally in Jantar Mantar, New Delhi on November 21. Photo: Ishan Kukreti
Protestors at the rally in Jantar Mantar, New Delhi on November 21. Photo: Ishan Kukreti
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देश के विभिन्न राज्यों से आए सैकड़ों वनवासियों ने 21 नवंबर, 2019 को राजधानी दिल्ली में जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। वे देश में वन अधिकार कानून (एफआरए) को उचित ढंग से लागू करने की मांग कर रहे थे। इसको लेकर 26 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है।

प्रदर्शनकारी हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु से आए थे।

इस मौके पर ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फॉरेस्ट वर्किंग पीपुल के महासचिव अशोक चौधरी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से पहले यह लामबंदी महत्वपूर्ण है। यह संदेश कानून निर्माताओं को जाना चाहिए कि वन निवासी अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेंगे।

शीर्ष अदालत में चल रही सुनवाई में आठ राज्यों ने अपने हलफनामे में कहा है कि उन्होंने वनवासियों के क्लेम को खारिज करते समय एफआरए के तहत निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया।

प्रदर्शन में शामिल मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के बोमनाली गाँव की कंजिरी सोलंकी ने कहा, "मैंने 2008 में क्लेम दायर किया था, लेकिन अब तक मुझे नहीं बताया गया है कि मेरे क्लेम का क्या हुआ? जब भी मैंने अधिकारियों से पूछा, उन्होंने मुझे इंतजार करने के लिए कहा। 2019 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही मुझे बताया गया कि मेरा क्लेम खारिज कर दिया गया है।”

गौरतलब है कि एफआरए के तहत ग्राम सभा स्तर समिति में क्लेम दायर किया जाता है। इसके बाद, दावा उप-मंडल स्तरीय समिति के पास जाता है और अंत में जिला स्तरीय समिति द्वारा अनुमोदित या अस्वीकृत कर दिया जाता है।

यदि किसी दावे को जिला स्तरीय समिति से नीचे किसी भी स्तर पर खारिज कर दिया जाता है, तो अधिकारियों को दावेदार को उसी की लिखित सूचना भेजनी होती है। इस सूचना के आधार पर दावेदार को अस्वीकृति के खिलाफ अपील करने का अधिकार है।

हिमाचल प्रदेश में एफआरए के मुद्दे पर काम कर रही संस्था हिम धारा की मंशी आशेर ने कहा, "एफआरए के प्रावधान के तहत लोगों को अस्वीकृति के खिलाफ अपील करने का अधिकार है, लेकिन राज्य सरकारें इसे लागू नहीं करती। अधिकारी कानून को लागू करने में दिलचस्पी नहीं दिखाते।"

इससे पहले वन वासियों ने अपने-अपने राज्यों में विरोध प्रदर्शन किया और 21 नवंबर को दिल्ली में सभी राज्यों के वन वासियों ने मिलजुल कर प्रदर्शन किया।

वन वासियों के लिए काम कर रही और वन अधिकार कानून बनाने में अहम भूमिका अदा कर चुकी संस्था कंपेन फॉर सर्ववाइवल एंड डिगनिटी के सीआर बिजॉय ने कहा, "पिछले हफ्ते छत्तीसगढ़, तमिलनाडु आदि में विरोध प्रदर्शन किए गए। अगले कुछ दिनों में झारखंड में चुनाव होने वाला है। इसे देखते हुए आयोजित सरकार को भारतीय वन अधिनियम, 1927 में प्रस्तावित संशोधनों को वापस लेना पड़ा।" उन्होंने कहा कि दिल्ली का विरोध प्रतीकात्मक है, जिसका मकसद केंद्र सरकार को यह बताना था कि कानून को सही मायने में लागू किया जाए।

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