“न केवल जमीन का बल्कि पूरे बगीचे के बदले मुआवजा मिले”

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने विकास परियोजनाओं के लिए उनके बगीचों का अधिग्रहण किए जाने पर चंदन के किसानों की उचित मुआवजे की मांग को बरकरार रखा है
“न केवल जमीन का बल्कि पूरे बगीचे के बदले मुआवजा मिले”
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चंदन के बगीचों की संख्या में वृद्धि के साथ ही एक गंभीर चुनौती सामने आई है। विकास परियोजनाओं के लिए भूमि का अधिग्रहण किए जाने पर चंदन के पेड़ों के लिए मुआवजे का निर्धारण कैसे किया जाना चाहिए? 29 जनवरी 2025 को कर्नाटक उच्च न्यायालय ने राज्य वन विभाग को उचित मुआवजा सुनिश्चित करने के लिए चंदन की कीमतों के मूल्यांकन हेतु विस्तृत दिशा-निर्देश स्थापित करने का निर्देश दिया।

यह आदेश बगीचा मालिकों द्वारा 2017 में दायर कई याचिकाओं के बाद आया। इन लोगों की चंदन के पेड़ों वाली भूमि को बिना मुआवजे के अधिग्रहित कर लिया गया था। ये जमीनें कर्नाटक के जिलों से ली गई थीं, चिकमंगलूर जिले से कदुर व तारिकेरे और कोलार जिले से श्रीनिवासपुरा।

राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग प्राधिकरणों ने केवल भूमि और पेड़ लगाने में आई लागत के लिए मुआवजा देने की पेशकश की थी लेकिन वृक्षारोपण के अनुमानित बाजार मूल्य का कोई हिसाब नहीं दिया था।

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“न केवल जमीन का बल्कि पूरे बगीचे के बदले मुआवजा मिले”

याचिकाकर्ता अपने चंदन के पेड़ों के लिए मुआवजे के हकदार हैं, यह फैसला सुनाते हुए उच्च न्यायालय ने कहा, “चंदन के पेड़ों को उगाने से होने वाली कमाई की संभावना की गणना और आकलन (वन) विभाग द्वारा स्वयं किया गया है जो पेड़ों विशेष रूप से चंदन के पेड़ों के मूल्यांकन के संबंध में डोमेन विशेषज्ञ है और इसलिए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि चंदन के पेड़ में उसकी खेती करने वाले व्यक्ति के लिए आकर्षक लाभ उत्पन्न करने की निश्चित क्षमता है।” लेकिन वन अधिकारियों का कहना है कि यह कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल।

एक वन अधिकारी ने कहा, “संभावित उपज के लिए मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है क्योंकि यह अनिश्चित है। लकड़ी या नीलगिरी जैसी प्रजातियों के लिए (जिनका एक स्थिर बाजार है) मुआवजा तय है। हालांकि चंदन या लाल चंदन के लिए ऐसा नहीं किया गया है।”

कर्नाटक के रामनगर जिले के गुडेमरनहल्ली गांव के चंदन उत्पादक पी. बायरप्पा की भूमि का अधिग्रहण किया गया है। वे उसी परियोजना से प्रभावित किसानों को दिए गए मुआवजे में विसंगतियों को उजागर करते हुए बताते हैं, “मेरे 115 चंदन के पेड़ों के लिए जिनकी उम्र 3.5 साल थी, मुझे कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड से 32,545 रुपए का मुआवजा मिला। हालांकि पड़ोसी जिले में उसी कंपनी द्वारा उतने ही पेड़ों वाले किसानों को 81,950 रुपए का मुआवजा दिया गया।”

बंगलुरु ग्रामीण जिले के रामपुरा गांव के वीरेन मेहता को डर है कि उनके 11.7 हेक्टेयर के बगीचे (जिसमें 8,000 चंदन और 9,000 लाल चंदन के पेड़ हैं) को राष्ट्रीय राजमार्ग 75 के साथ नेलमंगला-कुनिगल मार्ग पर प्रस्तावित दूसरे हवाई अड्डे के लिए अधिग्रहित किया जा सकता है। वह कहते हैं, “वयस्क चंदन के पेड़ों के लिए मुआवजे का कोई आकलन नहीं किया गया है। नतीजतन 2013 में लगाए गए मेरे बगीचे को भारी नुकसान होने वाला है।” हाल ही में उच्च न्यायालय के फैसले ने उन्हें और उनके ही जैसे अधर में लटके कई अन्य किसानों को उम्मीद दी है।

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