मददगार सीएफआरआर: 10 साल के संघर्ष का नतीजा है अमाड़ के वन संसाधनों पर सामुदायिक अधिकार

सीएफआरआर के बाद जंगल ज्यादा सुरक्षित हुआ और वनोपन की संग्रहण बढ़ा है। अवैध कटान और वनोपज की चोरी बंद होने से ग्रामीणों को इसका सीधा लाभ मिला है
सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र मिलने के बाद अमाड़ गांव ने जंगल में पेड़ों का गहन सर्वेक्षण किया। फोटो : भागीरथ
सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र मिलने के बाद अमाड़ गांव ने जंगल में पेड़ों का गहन सर्वेक्षण किया। फोटो : भागीरथ
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छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के जिन 134 गांवों को सामुदायिक वन संसाधन अधिकार मिले (सीएफआरआर) हैं, उनमें उदंती-सीतानदी टाइगर के कोर क्षेत्र में बसा अमाड़ गांव भी शामिल है। अमाड़ की ग्रामसभा को 1,517.49 हेक्टेयर के जंगल का सीएफआरआर 2023 में मिला है।

गांव की वन संसाधन प्रबंधन समिति के अध्यक्ष गणेश राम डाउन टू अर्थ को बताते हैं, “ग्रामीणों को काफी संघर्ष के बाद यह अधिकार मिला है। हम पिछले 8-10 वर्षों से इसकी मांग कर रहे थे। वन विभाग के अधिकारी इसके पक्ष में नहीं थे लेकिन प्रशासन पिछले 20-25 वर्षों से वन संरक्षण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को देखते हुए यह अधिकार देने को राजी हुआ।” 

गणेश राम के अनुसार, 11 सदस्यीय समिति वन का प्रबंधन करती है। समिति ने जंगल के अलग-अलग हिस्से में 3 फायरवाचर रखे हैं, जो आग की सूचना तुरंत समिति को देते हैं। गणेश राम दावे के साथ कहते हैं कि समिति बनने के बाद से जंगल में आग की घटना नहीं हुई है।

अमाड़ की वन संसाधन प्रबंधन समिति ने जंगल में जल संरक्षण के लिए 20-22 बोल्डर चेकडैम का निर्माण कराया है। साथ ही ठेंगापाली की मजबूत व्यवस्था भी बनाई है। इस व्यवस्था के तहत चार लोग जंगल का चक्कर लगाते हैं। ये लोग शिकार, कटान और जंगल की आग पर नजर रखते हैं और किसी भी तरह की गड़बड़ी होने समिति को सूचित करते हैं। समिति में कुल 11 सदस्य हैं जो महीने में दो बार मीटिंग कर वन प्रबंधन की रूपरेखा बनाते हैं।

अमाड़ के जंगल का सीएफआरआर मिलने के बाद समिति ने 2023 में ही जंगल के पेड़ों का सर्वेक्षण कर पता लगाया कि किस प्रजाति के कितने पेड़ हैं। सर्वेक्षण में महुआ, साल, सागौन के पेड़ों की कर्रा बहुलता मिली।

वन संसाधन प्रबंधन समिति ने अपने वनों को नौ खंडों में बांटकर उनका नामकरण किया है जैसे, बागडूमा, बनडबरी, बस्कासील, भलका, भालू डोंगरी, गाड़ाघाट, गायझर्रा, नगरीकटेल और लोहारीन। हर वनखंड के क्षेत्रफल के साथ उनका घनत्व भी मापा गया है। जैसे गायझर्रा वन क्षेत्र का घनत्व सबसे अधिक 3,606 प्रति हेक्टेयर है। वहीं सबसे कम घनत्व वाला वनक्षेत्र नगरीकटेल है, जहां घनत्व 235 प्रति हेक्टेयर है। इस अभ्यास से ग्रामीणों को यह समझने में आसानी हुई है कि किस वनक्षेत्र में काम करने की जरूरत है।

गणेश राम मानते हैं कि सीएफआरआर के बाद जंगल ज्यादा सुरक्षित हुआ और वनोपन की संग्रहण बढ़ा है। अवैध कटान और वनोपज की चोरी बंद होने से ग्रामीणों को इसका सीधा लाभ मिला है। टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में होने के कारण गांव में तेंदू पत्ता की संग्रहण प्रतिबंधित है, लेकिन यहां महुआ के पेड़ों की बहुतायत है जो ग्रामीणों की आजीविका को मजबूत करता है। बहुत से ग्रामीण मार्च-अप्रैल में महुआ बेचकर ही अगली फसल की तैयारी करते हैं।

अमाड़ का प्रत्येक परिवार कम से कम पांच क्विंटल महुआ का संग्रहण कर लेता है। 239 परिवार वाले अमाड़ गांव में 70-75 प्रतिशत लोगों के पास निजी महुआ के पेड़ हैं लेकिन 25-30 प्रतिशत परिवार महुआ के लिए वन पर आश्रित हैं। निजी महुआ के पेड़ वाले परिवार भी जंगल जाकर महुआ संग्रहण करते हैं। सीतानदी उदंती टाइगर रिजर्व के कोर में 17 गांव हैं। इनमें से 11 गांवों की ग्राम सभाओं को अमाड़ की तरह सीएफआरआर हासिल हुआ है। 

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