'उत्तरप्रदेश में कांवड़ मार्ग के लिए 33,776 पेड़ों को हटाए जाने की है जरूरत'

मामला हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक खबर के बाद प्रकाश में आया था, जिसके मुताबिक उत्तरप्रदेश में ऊपरी गंग नहर के किनारे सड़क निर्माण के लिए 112,000 पेड़ों को हटाए जाने की अनुमति दी है
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
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उत्तर प्रदेश लोक निर्माण विभाग ने अपनी एक रिपोर्ट में जानकारी दी है कि, ऊपरी गंग नहर के किनारे सड़क निर्माण के लिए 33,776 पेड़ों को हटाए जाने की जरूरत है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक हटाए जाने वाले पेड़ों की वास्तविक संख्या 33,776 से कम होगी, क्योंकि पेड़ों को केवल 15 मीटर की चौड़ाई के भीतर ही काटा जाएगा, जहां तटबंध की ऊंचाई कम है। इस 222.98 हेक्टेयर संरक्षित वन भूमि के उपयोग की भरपाई के लिए, 445.96 हेक्टेयर गैर-वन भूमि की आवश्यकता थी, लेकिन गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर के प्रभावित जिलों में यह उपलब्ध नहीं थी। इसलिए, तीन अन्य जिलों में इसके बदले वनरोपण किया जा रहा है।

गौरतलब है कि अदालत ने हिंदुस्तान टाइम्स में एक फरवरी, 2024 को छपी एक खबर के आधार पर यह मामला उठाया था। इस खबर के मुताबिक उत्तरप्रदेश में ऊपरी गंग नहर के किनारे सड़क निर्माण के लिए 112,000 पेड़ों को हटाए जाने की अनुमति दी गई है।

विशेष सचिव ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने मुजफ्फरनगर, मेरठ और गाजियाबाद में ऊपरी गंगा नहर के दाहिने किनारे चौधरी चरण सिंह कांवड़ मार्ग के निर्माण को मंजूरी दी है। जिस भूमि पर निर्माण किया जाना है वो उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के दायरे में आती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सिंचाई विभाग ने 21 दिसंबर, 2017 को इस बारे में लोक निर्माण विभाग को अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी कर दिया था।

साफ कर दिया गया है डासना में तालाब के पास फेंका 9,026 मीट्रिक टन कचरा

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) ने एनजीटी को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि डासना में तालाब के पास से सालों पुराने कचरे को हटा दिया गया है। इस कचरे की मात्रा करीब 9,026 मीट्रिक टन है। 28 मई, 2024 को सबमिट इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह भी जानकारी दी है कि इस कचरे को हटाने का काम 18 दिसंबर, 2023 तक पूरा हो गया था।

जांच के दौरान पाया गया कि तालाब के चारों ओर एक अस्थाई कच्चा नाला बनाया गया है, जो तालाब के आस-पास के क्षेत्र से आने वाले घरेलू अपशिष्ट को ले जाता है। यह नाला आगे डासना नाले की ओर जाता है।

रिपोर्ट में यह भी सिफारिश की गई है कि डासना नगर पंचायत को तालाब के आस-पास के क्षेत्र से आने वाले घरेलू सीवेज को ले जाने वाले इस अस्थाई कच्चे नाले को पक्के नाले में बदलना चाहिए, ताकि तालाब और आस-पास के क्षेत्र में जलभराव और प्रदूषण की आशंका न रहे।

चंडीगढ़ में पैदा हो रहे सीवेज से ज्यादा है उपचार क्षमता: रिपोर्ट

चंडीगढ़ में करीब 220 एमएलडी सीवेज उत्पन्न होता है, जबकि वहां इसकी उपचार क्षमता 250.7 एमएलडी है। इससे स्पष्ट होता है कि चंडीगढ़ में तरल अपशिष्ट प्रबंधन के लिए 100 फीसदी से अधिक की क्षमता मौजूद है। वहीं ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार और मौजूदा समस्याओं को दूर करने के लिए, दिसंबर 2025 तक एक एकीकृत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन (आईएसडब्ल्यूएम) सुविधा चालू हो जाएगी। यह शहर में कचरे को प्रोसेस करने की 15 वर्षों की जरूरतों को पूरा करेगी।

यह जानकारी चंडीगढ़ प्रशासन द्वारा एमएसडब्ल्यू प्रबंधन नियम, 2016 और अन्य पर्यावरणीय मुद्दों के पालन के संबंध में दायर एक रिपोर्ट में दी है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सैनिटरी कचरा, जिसमें डायपर, सैनिटरी टॉवल, नैपकिन शामिल हैं, उसे अधिकृत बायोमेडिकल अपशिष्ट उपचार सुविधा द्वारा प्रोसेस करने के लिए सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधा (एमआरएफ) से एकत्र किया जा रहा है। वहीं घरों में पैदा होने वाला हानिकारक कचरा जैसे फेंकें गए पेंट ड्रम, कीटनाशक के डिब्बे, सीएफएल बल्ब, ट्यूब लाइट, एक्सपायर हो चुकी दवाइयां, सुइयां और सीरिंजों को मेसर्स आरई-सस्टेनेबिलिटी लिमिटेड द्वारा एमआरएफ से एकत्र किया जाता है। इसे निम्बुआ ग्रीनफील्ड (पंजाब) लिमिटेड, डेराबस्सी में उचित तरीके से निपटाया जाता है।

रिपोर्ट ने आगे जानकारी दी है कि 20 एकड़ में फैले पुराने डंपसाइट का बायो-रीमेडिएशन 22 अक्टूबर, 2020 को शुरू हुआ था। वहां लम्बे समय से मौजूद पांच एलएमटी कचरे को प्रोसेस कर दिया गया है। किया गया। मौजूदा 8.28 एकड़ लैंडफिल का बायो-रिमेडिएशन 26 अगस्त, 2022 को शुरू हुआ था। वहां मौजूद आठ एलएमटी कचरे में से अब तक, 4.20 एलएमटी कचरे को अब तक प्रोसेस किया जा चुका है। इस काम के 31 दिसंबर, 2024 तक पूरा होने की उम्मीद है।

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