वनाधिकार 133 निर्वाचन क्षेत्रों में निर्णायक भूमिका निभाएगा

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में इन 133 निर्वाचन क्षेत्रों में से 79 में जीत हासिल की और कांग्रेस के खाते में सिर्फ पांच सीटें गईं थीं
Credit: Vikas Choudhary
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आम चुनावों की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। इन चुनावों में वनाधिकार अधिनियम (एफआरए) का कार्यान्वयन एक-चौथाई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभा सकता है। एक गैर लाभकारी संगठन कम्यूनिटी फॉरेस्ट रिसोर्स-लर्निंग एंड एडवोकेसी (सीएफआर-एलए) के अध्ययन में यह बात निकलकर आई है।

रिपोर्ट बताती है कि भारत के मुख्य भूभाग के 517 निर्वाचन क्षेत्रों (पूर्वोत्तर, जम्मू एवं कश्मीर, अंडमान निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप को छोड़कर) में से 133 निर्वाचन क्षेत्रों में वनाधिकार मुख्य मुद्दा है जो चुनाव में हार-जीत को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है। वहीं 124 निर्वाचन क्षेत्रों में 10-20 प्रतिशत मतदाता वन अधिकार से प्रभावित हैं।

भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में इन 133 निर्वाचन क्षेत्रों में से 79 में जीत हासिल की और कांग्रेस के खाते में सिर्फ पांच सीटें गईं। लेकिन कांग्रेस 83 क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रही। अन्य दलों ने 49 सीटों पर जीत हासिल की।

अध्ययन के मुताबिक, “एफआरए लागू करने वाली कांग्रेस ने इन मुख्य निर्वाचन क्षेत्रों में बेहद बुरा प्रदर्शन किया। कुल 68 क्षेत्रों में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच सीधी लड़ाई थी लेकिन कांग्रेस केवल तीन जगह जीत पाई। अत: यह कहा जा सकता है कि 68 निर्वाचन क्षेत्र अगली सरकार के गठन में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।”  

अध्ययन के अनुसार, इन 68 निर्णायक निर्वाचन क्षेत्रों में से 16 मध्य प्रदेश, 11 राजस्थान, आठ छत्तीसगढ़, आठ महाराष्ट्र, सात गुजरात, सात कर्नाटक, चार हिमाचल प्रदेश, चार झारखंड और तीन उत्तराखंड में हैं।

एफआरए प्रभावित अधिकांश राज्यों में राजनीतिक इच्छाशक्ति में कमी के कारण कानून का ठीक से क्रियान्वयन नहीं हुआ है। यहां वन नौकरशाही चरम पर है। यही वजह रही कि 2018 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी चार राज्यों में सत्ता हासिल नहीं कर सकी।

अध्ययन में कहा गया है कि एफआरए के उचित क्रियान्वयन का फायदा लेना बेहद अहम है। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस ने एफआरए के खराब क्रियान्वयन को अहम मुद्दा बनाया था और इस मुद्दे ने कांग्रेस की शानदार सफलता में अहम भूमिका निभाई थी।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के घोषणापत्र में एफआरए को खास तवज्जो नहीं दी गई थी। इसका असर चुनाव के नतीजों और हार जीत के अंतर पर पड़ा।

महाराष्ट्र और कुछ हद तक गुजरात को छोड़ दिया जाए तो झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे बीजेपी शासित राज्यों ने एफआरए पर ठीक से अमल नहीं किया और इसे कमजोर करने की पुरजोर कोशिश की गई। बीजेपी को एफआरए प्रभावित ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों में भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

सीएफआर-एलए ने ऐसे नौ सुझावों को सूचीबद्ध किया है जिन पर अमल करके राजनीतिक दल चुनाव में लाभ ले सकते हैं। कुछ सुझाव जनजातीय मामलों के मंत्रालय को मजबूत करने से संबंधित हैं ताकि एफआरए पर ठीक से अमल किया जा सके। साथ ही यह सुझाव भी दिया गया है कि पीएमओ को नियमित रूप से एफआरए की निगरानी करनी चाहिए। साथ ही आदिवासियों और वनवासियों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेकर वनाधिकारों को मान्यता प्रदान करनी चाहिए।

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