शिमला में एक शाम टहलते हुए मैं लक्कड़ बाजार जा पहुंचा। थोड़ी भूख सी महसूस हुई तो मैं पास ही के एक फल की दुकान की तरफ बढ़ गया। मंशा थी सेब या अमरूद खरीद कर खाने की। लेकिन दुकान पर पहुंचने पर मैंने पीले रंग का एक अलग तरह का फल देखा। दुकानदार से पूछने पर उसने बताया कि इसका नाम जापानी फल है। मैंने सेब या अमरूद के बदले जापानी फल का जायका लेना उचित समझा।
जापानी फल को अंग्रेजी में पर्सीमॉन कहते हैं और इसका वानस्पतिक नाम डायोसपायरोस काकी है। इसकी दुनियाभर में करीब 400 प्रजातियां उपलब्ध हैं। हालांकि इसकी दो प्रजातियां—हचिया और फूयू बेहद लोकप्रिय हैं। वर्ष 2006 में प्रकाशित सुसाना लाइल की किताब फ्रूट्स एंड नट्स के मुताबिक इसकी उत्पत्ति पूर्वी एशिया, विशेष तौर पर दक्षिण चीन में हुई थी। वर्ष 1780 में नोवा एक्टा रेजिया सोसाईटेटिस साइंटियारम उपसैलिएन्सिस नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, जापानी फल चीन में 2000 से भी अधिक वर्षों से उगाया जा रहा है।
जापानी फल के पेड़ सेब के पेड़ की तरह ही करीब 33 फीट तक ऊंचे होते हैं। इसके पत्ते गहरे हरे रंग के और कठोर होते हैं। अक्टूबर और नवम्बर में पेड़ से सभी पत्ते झड़ जाते हैं और यही समय पेड़ पर लगे फल के पकने का होता है।
जापानी फल का उत्पादन जापान, चीन और कोरिया में बड़े पैमाने पर होता है। फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (एफएओ) के मुताबिक वर्ष 2014 में 38 लाख टन उत्पादन के साथ चीन पहले स्थान पर था। सवा चार लाख टन और ढाई लाख टन उत्पादन के साथ कोरिया और जापान क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे।
टेम्परेट हॉर्टिकल्चर नामक किताब के अनुसार जापानी फल के पौधे भारत में यूरोपियन 1921 में लेकर आए। वर्ष 1941 में शिमला के किसानों ने अपने बागानों में सेब के पौधों के साथ ही जापानी फल के पौधे भी लगाए। भारतीय बागवानी विभाग के एक अनुमान के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में करीब 10,000 किसान लगभग 397 हेक्टेयर जमीन पर जापानी फल उगाते हैं।
जापानी फल को उत्तर भारत में तेंदू के नाम से जाना जाता है। इसके पत्तों का इस्तेमाल बीड़ी बनाने के लिए किया जाता है और यह उत्तर और मध्य भारत के जंगलों का प्रमुख लघु वनोपज है।
जापान में आठवीं शताब्दी में इस फल को शाही फल के तौर पर जाना जाता था। लेकिन 17वीं शताब्दी आते-आते जापान में इस फल का उत्पादन इतना बढ़ गया कि यह आमजन का फल बन गया। जापान में इस फल का इस्तेमाल सिर्फ खाद्य पदार्थ के तौर पर ही नहीं बल्कि परिरक्षक (प्रिजरवेटिव) के तौर पर भी किया जाता है। जापानी फल के पत्तों में अत्यधिक मात्रा में क्षार पाया जाता है जो बैक्टीरिया से बचाव में सक्षम है। जापान में मछलियों को सड़ने से बचाने के लिए उसे जापानी फल के पत्तों में लपेट कर रखा जाता है।
लोककथाएं और मान्यताएं
जापानी फल को लेकर कई लोककथाएं भी प्रचलित हैं। जैसे—जापान में बंदर, केकड़े और काकी (जापान में जापानी फल का नाम) की कहानी। इस कहानी में एक बंदर के पास काकी का एक बीज होता है। जब उसे भूख लगती है तो वह एक केकड़े को भात के गोले के बदले वह बीज यह कहकर दे देता है कि इसके पेड़ पर कभी खत्म न होने वाले फल लगेंगे और फिर उसे भोजन के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। केकड़े ने वह बीज लेकर उसे जमीन में बो दिया। जब वह पेड़ बड़ा हो गया और फलों से लद गया, तो केकड़ा पेड़ के नीचे खड़े होकर उन फलों को देखने लगा।
तभी बंदर वहां आ गया और काकी फलों को खाने लगा। जब केकड़े ने उसे रोकने की कोशिश की, तो बंदर ने एक कच्चा काकी फल केकड़े की तरफ उछाल दिया। वह फल केकड़े के ऊपर आ गिरा और केकड़ा घायल हो गया। तब उस केकड़े ने अंडे, मधुमक्खियों, हथौड़े और कांटों के साथ मिलकर बंदर से बदला लेने की ठानी। सबने मिलकर बंदर को इतना परेशान किया कि अंत में उसकी मौत हो गई। यह कहानी जापानी फल के दीवाना बना लेने वाले स्वाद को रेखांकित करता है, जिसके लिए कोई कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाए।
कोरिया में ऐसी मान्यता है कि पर्सीमॉन बाघों से बचाता है। ओजार्क की पहाड़ियों में रहने वाले लोग मानते हैं कि पर्सीमॉन के बीज सर्दियों की प्रचण्डता को इंगित करते हैं। यदि बीज के अंदर का हिस्सा चम्मच के आकार का है, तो उस क्षेत्र को काफी बर्फबारी का सामना करना पड़ेगा। यदि इसका आकार एक फोर्क के जैसा है, तो सर्दी कम पड़ेगी। यदि बीज छुरी की तरह नुकीली है, तो सर्दी के दौरान बेहद ठंडी हवाएं चलेंगी।
औषधीय गुण
जापानी फल अपने अंदर औषधीय गुणों को भी समाहित करता है। इसमें प्रचुर मात्रा में मैंगनीज, विटामिन ए, सी, बी6 और फाइबर पाया जाता है जो मनुष्यों को कई बीमारियों से दूर रख सकता है। जापानी फल का नियमित सेवन मोटापे को दूर भागने में भी कारगर है। जापानी फल में पाए जाने वाले एंटीऑक्सिडेंट शरीर में कैन्सर पैदा करने वाले तत्वों को खत्म करता है।
जापानी फल के औषधीय गुणों की पुष्टि कई वैज्ञानिक अध्ययनों से भी होता है। वर्ष 2013 में फूड केमिस्ट्री नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार जापानी फल में कवकरोधी तत्व पाए गए हैं और रासायनिक कवकरोधी के बदले इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। वर्ष 2010 में ओंकोलोजी रिपोर्ट्स नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन बताते हैं कि जापानी फल घातक ल्यूकीमिया के उपचार में कारगर है।
जर्नल ऑफ चायनीज मेडिसिनल मटीरीयल्स में वर्ष 2007 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार जापानी फल के पत्तों में फ्लवोंस नामक एक रासायनिक यौगिक पाया जाता है जो कैन्सर के ट्यूमर के कारण मांसपेशियों को नष्ट होने से बचाता है। वहीं फायटोथेरपी रिसर्च नामक जर्नल के वर्ष 2010 अंक में प्रकाशित एक शोध बताता है कि जापानी फल बढ़े हुए कोलेस्ट्रोल को कम करने में कारगर है।
व्यंजन
पर्सीमॉन स्मूदीसामग्री:
विधि: जापानी फल को छीलकर उसके गूदे अलग कर लें। अब एक बड़े कटोरे में जापानी फल के गूदे, दही शहद, दालचीनी पाउडर, जायफल पाउडर पिसा हुआ अदरक डालकर अच्छी तरह से मिला लें। अब एक ब्लेंडर की मदद से मिश्रण को अच्छी तरह से स्मूथ होने तक ब्लेंड कर लें। तैयार स्मूदी को रेफ्रीजरेटर में एक घंटे के लिए ठंडा होने के लिए रख दें। अब सर्विंग ग्लास में मिश्रण को उड़ेलें। बची हुए दालचीनी पाउडर को स्मूदी पर छिड़कें। स्मूदी को काजू, किशमिश और चक्र फूल से सजाएं और परोसें। पुस्तक द पर्सीमॉन फ्रूटलेखक: नट उराजमेटोवा | प्रकाशक: सिग्नेट पृष्ठ: 120 | मूल्य: £25 |