भारत में अगस्त के महीने में जन्माष्टमी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। इस दौरान हिंदू धर्मावलम्बी उपवास रखते हैं और रात को फलाहार करके व्रत तोड़ते हैं। फलाहार में फलों के अलावा मीठे पकवान भी शामिल होते हैं। उन्हीं पकवानों में से एक है तिखुर का हलवा(रेसिपी के लिए बॉक्स देखें)। तिखुर से बने पकवानों का इस्तेमाल तीज और एकादशी सहित अन्य उपवासों के दौरान भी व्रत तोड़ने के लिए किया जाता है। तिखुर का उपयोग सूप, चटनी और अन्य व्यंजनों को गाढ़ा बनाने के लिए भी किया जाता है।
तिखुर एक प्रकार का औषधीय पौधा है और दुनियाभर में इसकी कई प्रजातियां पाई जाती हैं। यह अदरख परिवार का पौधा है जिसकी जड़ से स्टार्च के रूप में तिखुर निकाला जाता है। भारत में इसकी मुख्यतः दो प्रजातियां पाई जाती हैं जिन्हें ईस्ट इंडियन एरोरूट (कुर्कुमा अन्गुस्तिफोलिया) और वेस्ट इंडियन एरोरूट (मरांता अरुन्दिनासा) के नाम से जाना जाता है। तिखुर का पौधा हल्दी या अदरख के पौधे के समान होता है। इसमें बरसात के मौसम में शंकु के आकार के पीले या गुलाबी रंग के फूल निकलते हैं। जब पत्ते सूखने लगते हैं, तब पौधे को उखाड़कर कंद के रूप में तिखुर प्राप्त किया जाता है।
तिखुर उन प्राचीन पौधों में से एक है, जिसे उत्तरी दक्षिण अमेरिका में खाद्य पदार्थों में शामिल किया गया और इसका उत्पादन घरेलू तौर पर किया जाने लगा। कोलंबिया के काउचा नदी घाटी में स्थित सैन इसिद्रो पुरातात्विक कार्यस्थल से प्राप्त तिखुर की प्राचीन प्रजाति के अवशेष का कार्बन डेटिंग पद्धति से विश्लेषण करने पर पता चला कि इसका उत्पादन 8200 ई.पू. से किया जा रहा है। उस समय इसका इस्तेमाल खाद्य पदार्थ के रूप में नहीं बल्कि औषधि के तौर पर किया जाता था।
तिखुर का नाम एरोरूट इसलिए पड़ा, क्योंकि यह विष बुझे तीरों के जख्म के उपचार में बेहद कारगर होता है। प्राचीन माया सभ्यता के लोग और मध्य अमेरिकी जनजातियां, जमैका की लोक परंपराओं सहित दुनियाभर में विभिन्न जनजातियों के लोग इसका इस्तेमाल तीरों के जहर के उपचार के लिए करते थे। इसके अलावा वेस्ट इंडीज के आदिवासी तिखुर के जड़ का इस्तेमाल सर्पदंश सहित अन्य जहरीले कीटों के काटने पर जहर के प्रभाव को नष्ट करने और घावों के उपचार के लिए करते रहे हैं।
तिखुर कैल्शियम और कार्बोहायड्रेट का एक प्रमुख स्रोत है। सुपाच्य होने के कारण इसका उपयोग नवजात शिशुओं के लिए बेबी फूड के तौर पर भी किया जाता है। साथ ही तिखुर पेट की बीमारियों और हैजा के उपचार में भी सहायक होता है। स्वादहीन तिखुर की तासीर ठंडी होने के कारण इसका शरबत गर्मी के मौसम में लू लगने से बचाता है। तिखुर का चूर्ण जूते और मोजे के अंदर रखने से फूट फंगस उत्पन्न करने वाली नमी से बचा जा सकता है।
कैरीबियाई अरावक जनजाति के लोग इसे अरु-अरु कहते हैं, जिसका मतलब होता है सर्वोत्तम भोजन। तिखुर उनके मुख्य खाद्य पदार्थों में से एक है। वहीं फिलिपींस के सुदूर क्षेत्रों में तिखुर का इस्तेमाल कपड़ों को स्टार्च करने के लिए किया जाता है। दवा उद्योग में भी इसकी अच्छी मांग है। तिखुर से मिलने वाले स्टार्च का इस्तेमाल कैप्सूल का आवरण तैयार करने के लिए किया जाता है। स्टार्च पानी में घुलनशील होता है और इसका स्वास्थ्य पर विपरीत असर नहीं पड़ता है। कार्बनरहित कागज के निर्माण के शुरुआती दिनों में तिखुर का इस्तेमाल एक महत्वपूर्ण सामग्री के तौर पर किया जाता था। हालांकि अब इसका सस्ता विकल्प मिल जाने की वजह से कागज निर्माण में इसकी कोई भूमिका नहीं रह गई है।
छत्तीसगढ़ के सखुआ के जंगलों में तिखुर बहुतायत में पाया जाता था। लेकिन वर्तमान में अत्यधिक दोहन के कारण अब इसकी उपलब्धता एक छोटे से हिस्से में सिमट गई है। जंगलों के आसपास रहने वाले छत्तीसगढ़ के किसान इसे लघु वनोपज के तौर पर एकत्रित करते हैं और कुछ किसान इसको वाणिज्यिक फसल के तौर पर भी उगाते हैं।
तिखुर का प्रसंस्करण
तिखुर बनाने का काम मुख्य रूप से जंगलों में या उसके आसपास रहने वाली जनजातियां करती हैं। इसमें पहले तिखुर के पौधे को जड़ से उखाड़ लिया जाता है और मोटे कंद को काटकर अलग कर लिया जाता है। कंद को अच्छी तरह से धोकर, छीलकर स्टार्च वाला हिस्सा अलग कर लिया जाता है। इसे पीसकर लेप जैसा बना लिया जाता है और फिर इसे सुखाया जाता है। सूख जाने पर इसे कूटकर चूर्ण बनाया जाता है और बाजार में बेच दिया जाता है।
कई जगह कंद को सुखाकर और कूटकर चूर्ण बनाया जाता है। ऐसे में तिखुर में थोड़ा कसैलापन रह जाता है। हालांकि तीन-चार बार पानी से धोने पर इसका कसैलापन दूर हो जाता है। पारंपरिक तरीकों से इतर तिखुर का चूर्ण बनाने के लिए आजकल मशीनों का भी इस्तेमाल होने लगा है, क्योंकि पिछले कुछ दशकों से तिखुर का वाणिज्यिक उत्पादन शुरू हो गया है।
औषधीय गुण
तिखुर त्वचा की शुष्कता दूर करने के साथ ही सूजन में भी राहत प्रदान करता है। इसके अलावा तिखुर कई बीमारियों के उपचार में भी कारगर साबित हुआ है। यह गैंगरीन के इलाज में भी फायदेमंद है। तिखुर के औषधीय गुणों पुष्टि कई शोधों ने भी की है। वर्ष 2012 में एशियन जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल एंड क्लिनिकल रिसर्च में प्रकाशित एक शोध के अनुसार तिखुर एंटीऑक्सीडेंट होता है और मनुष्यों में बुढ़ापे के लक्षण को दूर भगाता है। मार्च 1991 में प्रकाशित एक पुस्तक डायरियल डिजीजेस रिसर्च के अनुसार तिखुर हैजा के उपचार में कारगर साबित हुआ है। फूड माइक्रोबायोलॉजी नमक जर्नल में प्रकाशित एक शोध में शोधकर्ता एस किम और डीवाईसी फंग ने साबित किया है कि तिखुर की चाय का सेवन भोजनजनित विषाक्तता को दूर कर सकता है।
व्यंजन
तिखुर का हलवा
विधि: पिसे हुए तिखुर को एक बड़े कटोरे में डालकर पानी में घोल लें। घोल को छानकर भूसी अलग कर दें। घोल को 15 मिनट के लिए रख दें और फिर पानी गिरा दें। अब एक बार फिर बर्तन में नीचे जमे तिखुर में पानी डालकर आधे घंटे के लिए छोड़ दें। आधे घंटे बाद पानी गिरा दें और नीचे जमे तिखुर को दूध में घोल दें। |