बचपन में गर्मी की छुट्टियां मनाने जब मैं अपने ननिहाल पटना जाता था तो सुबह की सैर के लिए संजय गांधी जैविक उद्यान का रुख करता था। वहां आम, जामुन, बेर, शहतूत सहित कई प्रकार के फलों के पेड़ थे, जिनके फल तोड़कर हम खाया करते थे। इन सभी फलों में मुझे जो सबसे ज्यादा पसंद था, वह था आसफल। यह फल लीची जैसा दिखता है और इसका स्वाद भी कमोबेश लीची जैसा ही होता है।
आसफल सपोडेसी परिवार का फल है। इस परिवार के अन्य फल लीची और रामबुटान हैं। आसफल का वैज्ञानिक नाम डिमोकारपस लोंगन है। इसे अंग्रेजी में लोंगन फ्रूट कहा जाता है। लोंगन शब्द कंटोनीज के दो शब्दों लुंग और नगान से बना है जिसका अर्थ होता है ड्रैगन की आंख। इसलिए इस फल को या ड्रैगन आई फ्रूट भी कहा जाता है। इसके बीज छोटे, गोल, कठोर और गहरे भूरे रंग के होते हैं, जो गूदों के बीच आंख की पुतली के समान दिखते हैं।
मान्यता है कि लोंगन की उत्पत्ति म्यांमार और दक्षिणी चीन के पर्वतीय क्षेत्रों में हुई। हालांकि लोंगन की कई प्रजातियां भारत, श्रीलंका, उत्तरी थाईलैंड, कंबोडिया, उत्तरी वियतनाम और पापुआ न्यू गिनी में भी पाई जाती हैं। लोंगन उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों का पेड़ है, जो बलुई मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है।
पिछले कई दशकों से लोंगन की जंगली प्रजाति के पेड़ों को इमारती लकड़ी के लिए बड़े पैमाने पर काटा गया है, जिससे यह प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है। इसलिए लोंगन की इस प्रजाति को वर्ष 1998 में अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की लाल सूची में शामिल किया गया है।
वर्ष 2005 में प्रकाशित पुस्तक “लीची एंड लोंगन: बॉटनी, प्रोडक्शन एंड यूसेज” के अनुसार, लोंगन के बारे में उपलब्ध सबसे पुराने रिकार्ड हमें बताते हैं कि इसे पहली बार 200 ईसापूर्व हान साम्राज्य के समय देखा गया था। तत्कालीन सम्राट ने शांक्सी स्थित अपने महल के बागान में लीची और लोंगन के पेड़ लगाने के आदेश दिए थे। हालांकि वहां लोंगन के पेड़ जल्दी सूख गए। लेकिन बाद के वर्षों में प्रवास की बढ़ती प्रवृत्ति और अलग प्रकार के फलों के प्रति उत्सुकता ने लोंगन को कई देशों में पहुंचा दिया।
ऑस्ट्रेलिया में 19वीं सदी के मध्य में और थाईलैंड में 19वीं सदी के उत्तरार्ध में लोंगन का आधिकारिक तौर पर उत्पादन शुरू हुआ। यूरोप में लोगन फ्रूट को वर्ष 1790 में पहचान मिली जब इस फल को वनस्पति विज्ञानी जोआओ डी लौरीरो ने अपनी किताब फ्लोरा कोचिनचिनेसिस में इसका जिक्र किया। वर्तमान में चीन लोंगन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। चीन प्रतिवर्ष करीब 130 करोड़ टन लोंगन का उत्पादन करता है।
भारत में लोंगन मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्व क्षेत्रों में उगाया जाता है, जिसे भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है (देखें, कहां मिलेगा)। पिछले कुछ वर्षों से मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र (एनआरसीएल) में लोंगन के उत्पादन को बढ़ाने को लेकर शोध चल रहा है। एनआरसीएल के निदेशक विशाल नाथ ने बताया, “देश में फिलहाल लोंगन को सुनियोजित तरीके से नहीं उपजाया जाता। इसका एक फल मुख्यतः 8-10 ग्राम का होता है, इसलिए इसका वाणिज्यिक तौर पर उत्पादन लाभदायक नहीं माना जाता। एनआरसीएल में लोंगन के 15 संभावित जीनोम पर शोध चल रहा है और संस्थान ने इसके फल के वजन को बढ़ाकर 16 ग्राम तक करने में सफलता पाई है। साथ ही इसक उत्पादन तकनीक और कीट नियंत्रण उपायों को लेकर भी काम चल रहा है।”
लोंगन फ्रूट को विभिन्न देशों में अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल किया जाता है। कहीं इसे लीची की तरह सीधे ही खाया जाता है और कहीं इसके व्यंजन बनाए जाते हैं। थाईलैंड में जहां लोंगन फ्रूट को चावल के साथ पकाकर मीठा व्यंजन बनाया जाता है या इसकी जेली (देखें, आसफल जेली) बनाकर खाया जाता है, वहीं चीन में इसे सुखाकर रखते हैं, ताकि मौसम खत्म होने के बाद भी इसका स्वाद लिया जा सके।
औषधीय गुण
लोंगन का इस्तेमाल पारंपरिक औषधि के तौर पर चीन और उसके आसपास के देशों में किया जाता रहा है। प्राचीन वियतनाम में लोंगन के बीज को सर्पदंश वाली जगह पर दबाकर रखा जाता था, ताकि वह बीज विष को सोख ले। हालांकि यह इलाज प्रामाणिक नहीं है। चीन में लोंगन का इस्तेमाल स्नायु में दर्द और सूजन के उपचार के लिए औषधि निर्माण में किया जाता था।
लोंगन के औषधीय गुणों की पुष्टि वैज्ञानिक अध्ययन भी करते हैं। वर्ष 2016 में जर्नल ऑफ माइक्रोबायोलॉजी एंड बायोटेक्नॉलजी में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, लोंगन में हड्डियों को मजबूती प्रदान करने वाले तत्व पाए जाते हैं। वहीं जर्नल ऑफ एथनोफार्माकोलोजी में वर्ष 2016 में ही प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि लोंगन में प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट और फ्लावोनॉइड पाए जाते हैं जो त्वचा में सूजन और जलन को कम करने में कारगर होता है। वर्ष 2012 में जर्नल ऑफ एग्रीकल्चर एंड फूड केमिस्ट्री में प्रकाशित एक शोध के अनुसार लोंगन दिमाग की कार्यक्षमता को भी बढ़ाता है।
व्यंजन
आसफल जेलीसामग्री:
विधि: आसफल को छीलकर उसके बीज निकाल दें। अब आधे आसफल का जूस निकाल लें। चार टेबलस्पून अगर-अगर पाउडर को आधे कप पानी में भिगोकर रखें। अब एक पतीले में दो कप पानी, आसफल जूस, डेढ़ कप चीनी और अगर-अगर का घोल डालकर धीमी आंच पर दस मिनट के लिए उबालें। अब इस मिश्रण के चार चम्मच एक मोल्ड में डालें और उस पर बीज निकाला हुआ एक आसफल रखें। इसके बाद सांचे को मिश्रण से तीन चौथाई भर दें। अब पतीले में एक कप नारियल का दूध उबालें और उसमें आधा कप चीनी, दो टेबलस्पून भिगोए हुए अगर-अगर पाउडर और चार बूंद खाद्य रंग डालकर मध्यम आंच पर दस मिनट तक उबालें। अब इस मिश्रण के चार चम्मच उसी सांचे में डालें जिसमें पहले वाला मिश्रण रखा गया था। सांचे को कमरे के तापमान पर आने के बाद फ्रिज में ठंडा होने के लिए रखें। सांचे से निकालें और बादाम से सजाकर परोसें। |
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