विश्व दुग्ध दिवस 2021: श्वेत क्रांति की बदौलत भारत बना दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश

1955 में, भारत का मक्खन आयात प्रति वर्ष 500 टन था और 1975 तक दूध और दूध से बने उत्पादों के सभी आयात बंद कर दिए गए थे क्योंकि भारत दूध उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर हो गया था।
Photo: Wikimedia Commons
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विश्व दुग्ध दिवस क्यों मनाते हैं? सन 2001 से हर साल 1 जून को पूरी दुनिया में विश्व दुग्ध दिवस मनाया जा रहा है। डेयरी किसानों और डेयरी क्षेत्र की सराहना करने और दुनिया भर में भोजन के रूप में दूध के महत्व को पहचानने के लिए संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा इस दिवस की स्थापना की गई थी।

डेयरी क्षेत्र से भारत सहित दुनिया के अरबों लोगों की आजीविका जुड़ी हुई है। दूध के महत्व को एफएओ के आंकड़ों से समझा जा सकता है जो दिखाता है कि दुनिया भर में 1 अरब से अधिक लोगों की आजीविका डेयरी क्षेत्र से जुड़ी है। दुनिया भर में 6 अरब से अधिक लोगों द्वारा डेयरी उत्पादों का उपभोग किया जाता है।

1 जून को ही दुग्ध दिवस क्यों? खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार इस तिथि को इसलिए चुना गया क्योंकि कई देश इस समय या उसके आसपास पहले से ही राष्ट्रीय दुग्ध दिवस मना रहे थे। इसे मई के अंत में मूल रूप से प्रस्तावित किया गया था, लेकिन कुछ देशों, उदाहरण के लिए चीन ने महसूस किया कि उस महीने में उनके पास पहले से ही बहुत सारे उत्सव थे। जबकि अधिकांश देश 1 जून को अपने उत्सव मनाते हैं, कुछ लोग इस तिथि से एक या एक सप्ताह पहले या बाद में इसे आयोजित करते हैं।

2020 में, विश्व दुग्ध दिवस 40 से अधिक देशों द्वारा मनाया गया। इसमें दूध देने के प्रदर्शन और खेतों में दौरे किए गए, खेल, प्रतियोगिताएं और संगीत कार्यक्रम किए गए। दूध उत्पादों का वितरण, और सम्मेलन, सेमिनार और सूचनाओं को साझा किया गया। इन सभी का उद्देश्य दूध के मूल्य के बारे में जानकारी साझा करना और समुदायों, राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं और समाजों के सांस्कृतिक पहलुओं में डेयरी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाना था। इन आयोजनों ने बच्चों, डेयरी किसानों, निर्माताओं, व्यापारियों, उपभोक्ताओं, वैज्ञानिकों और सरकारी अधिकारियों सहित इस क्षेत्र से जुड़े सभी लोगों को भाग लेने का एक और अवसर प्रदान किया।

इस वर्ष की थीम

विश्व दुग्ध दिवस 2021 थीम पर्यावरण, पोषण के साथ डेयरी क्षेत्र में स्थिरता पर केंद्रित है। वर्ल्ड मिल्क डे.ऑर्ग के अनुसार डेयरी के लिए कम कार्बन उत्सर्जन वाला भविष्य बनाने में मदद के लिए तकनीकों को अपनाने वाले किसानों और अन्य लोगों के सुझावों, वीडियो को प्रोत्साहित कर रहे हैं।

विश्व दुग्ध दिवस पर कोविड-19 का प्रभाव

वर्ल्ड मिल्क डे.ऑर्ग के अनुसार कोविड-19 की वैश्विक महामारी के कारण, आयोजकों को विश्व स्वास्थ्य संगठन और आपकी स्थानीय सरकार द्वारा निर्धारित नीतियों का पालन करने के लिए सोशल मीडिया अभियानों या ऑनलाइन कार्यक्रमों की मेजबानी करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। हमारा समर्थन उन सभी लोगों के साथ हैं जो इस वायरस से प्रभावित हैं।

भारत और विश्व दुग्ध दिवस

भारत दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। 1955 में, भारत का मक्खन आयात प्रति वर्ष 500 टन था और 1975 तक दूध और दूध से बने उत्पादों के सभी आयात बंद कर दिए गए थे क्योंकि भारत दूध उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर हो गया था। दुग्ध उत्पादन में भारत की सफलता की कहानी डॉ वर्गीज कुरियन द्वारा लिखी गई थी, जिन्हें भारत में "श्वेत क्रांति के जनक" के रूप में जाना जाता है। आज विश्व दुग्ध दिवस पर कई लोग डॉ वर्गीज कुरियन को याद कर रहे हैं।

भारत में श्वेत क्रांति डॉ वर्गीज कुरियन के दिमाग की उपज थी। उन्हें भारत को दूध की कमी वाले देश से आज दुनिया में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक देश बनाने के अपने जबरदस्त प्रयासों के लिए जाना जाता है। उनके अधीन गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ लिमिटेड और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड जैसे कई महत्वपूर्ण संस्थान स्थापित किए गए। इन दोनों निकायों ने देश भर में डेयरी सहकारी आंदोलन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सहकारी डेयरी का आनंद मॉडल प्रसिद्ध हुआ और पूरे देश में प्रचलित हुआ।

1998 में विश्व बैंक ने भारत में डेयरी विकास के प्रभाव पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की और इसमें अपने स्वयं के योगदान को देखा। ऑडिट से पता चला कि विश्व बैंक ने ऑपरेशन फ्लड में निवेश किए गए 200 करोड़ रुपये में से, भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर कुल रिटर्न 10 साल की अवधि में हर साल 24,000 करोड़ रुपये का था, जो कि किसी अन्य डेयरी कार्यक्रम से मेल नहीं खाता।

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