बंपर पैदावार पर सवाल: कहां चला जाता है हर साल 10 करोड़ टन अनाज?
इलस्ट्रेशन: योगेन्द्र आनंद / सीएसई

बंपर पैदावार पर सवाल: कहां चला जाता है हर साल 10 करोड़ टन अनाज?

देश में अनाज के बंपर पैदावार पर सवाल उठाता यह लेख स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट 2025 रिपोर्ट में प्रकाशित हुआ। यह रिपोर्ट आज जारी हुई
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भारत हर साल लगभग 30 करोड़ टन अनाज का उत्पादन करता है, लेकिन घरेलू खपत मुश्किल से 15 करोड़ टन तक रहती है। यह स्थिति क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले हमें इन आंकड़ों की पुष्टि करनी होगी। भारत सरकार के खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा फरवरी 2024 में प्रकाशित आधिकारिक फूडग्रेन्स बुलेटिन के मुताबिक 2022-23 में अनाज का उत्पादन (मुख्यतः चावल और गेहूं) पहली बार 30 करोड़ टन को पार कर गया, जो अगले साल यानी 2023-24 में 30.8 करोड़ टन तक पहुंच गया। इस तरह 2021-22 से 2023-24 तक के सालाना उत्पादन का तीन-वर्षीय औसत 30 करोड़ टन रहा।

कितनी थी घरेलू खपत? राष्ट्रीय सांख्यिकीय सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा 2022-23 में किए गए ताजा उपभोग सर्वेक्षण के अनुसार, प्रति व्यक्ति मासिक औसत अनाज खपत 9 किलो थी, जो ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति 9.61 किलो और शहरी क्षेत्रों में 8.05 किलो थी। राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग के अनुमानों के अनुसार, अगर उस समय भारत की जनसंख्या लगभग 138 करोड़ थी तो कुल घरेलू अनाज खपत 2022-23 में लगभग 15 करोड़ टन रही होगी।

भारत सरकार के सालाना आर्थिक सर्वेक्षण में पारंपरिक रूप से “बीज, चारा और बर्बादी” (एसएफडब्ल्यू) के लिए 12.5 प्रतिशत की कटौती की जाती है ताकि सकल उत्पादन से “शुद्ध उत्पादन” का आकलन किया जा सके। इसके बाद, “शुद्ध उपलब्धता” की गणना शुद्ध आयात जोड़कर और सार्वजनिक भंडार में घटाकर किया जाता है। हाल तक शुद्ध उपलब्धता प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) के उपभोग अनुमानों के लगभग समान रही है। हालांकि, हाल के वर्षों में शुद्ध उपलब्धता और घरेलू खपत के बीच एक बड़ा अंतर उभरकर सामने आया है, जिसे अब “सीरल गैप” यानी अनाज-खपत उपलब्धता का अंतर कहा जा रहा है(देखें, अनाज खपत-उपलब्धता के अंतर का सालाना अनुमान)।

इस ग्राफ में प्रति व्यक्ति अनाज खपत को 2004-05 और 2011-12 के बीच 11.6 किलोग्राम से 10.7 किलोग्राम प्रति माह और फिर 2011-12 और 2022-23 के बीच 10.7 किलोग्राम से 9.1 किलोग्राम प्रति माह तक रेखीय रूप से घटता हुआ माना गया है। ये एनएसएसओ के इन वर्षों के अनुमान हैं। ग्राफ के अनुसार, अनाज खपत-उपलब्धता का अंतर 2008 के आसपास तेजी से बढ़ना शुरू हुआ। ग्राफ 2022-23 पर समाप्त होता है, लेकिन 2023-24 के अस्थायी आंकड़े बताते हैं कि अनाज खपत-उपलब्धता का अंतर इन दोनों वर्षों में 10 करोड़ टन से अधिक था।

ग्राफ से यह भी पता चलता है कि कई वर्षों से घरेलू अनाज खपत का कुल आंकड़ा सालाना लगभग 15 करोड़ टन के आसपास बना हुआ है। इसका कारण यह है कि प्रति व्यक्ति खपत में कमी जनसंख्या वृद्धि की भरपाई कर देती है (यह घटती प्रवृत्ति 1970 के दशक के अंत से जारी है)। वहीं, अनाज उत्पादन पिछले 10 वर्षों में व्यवस्थित तरीके से लगभग 2.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ रहा है। इस असंतुलन का एक परिणाम अनाज निर्यात में भारी वृद्धि है। वर्ष 2021-22 से 2023-24 तक औसतन प्रति वर्ष लगभग 3 करोड़ टन का निर्यात जारी है। दूसरा परिणाम यह है कि सार्वजनिक भंडार लगातार आधिकारिक मानदंडों से कहीं अधिक बना हुआ है। इन सबके बावजूद हर साल 10 करोड़ टन अनाज का कोई हिसाब नहीं है।

यह सच है कि अनाज का उपयोग घरेलू खपत के अलावा अन्य कार्यों में भी होता है। विशेषज्ञों के अध्ययन बताते हैं कि पारंपरिक रूप से एसएफडब्ल्यू घटक में कुल उत्पादन का 5 प्रतिशत चारे के लिए निर्धारित किया जाता है। इसे बढ़ाकर 10 प्रतिशत करने की जरूरत हो सकती है। ऐसा करने से अनाज खपत-उपलब्धता के अंतर में 1.5 करोड़ टन की कमी आ सकती है। वैश्विक डेटा और बिजनेस इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म स्टेटिस्टा डॉट कॉम और अन्य संबंधित स्रोतों से उत्पादन के अनुमान का उपयोग करके वर्ष 2022-23 में लगभग 80 लाख टन अनाज आधाारित एथेनॉल उत्पादन, 10 लाख टन बीयर के लिए और 10 लाख टन “बिस्किट, ब्रेड, बन, कुकीज और क्रोइसेंट” के लिए अनाज खपत को घटाना संभव है। हालांकि, यह सब जोड़कर 10 करोड़ टन से घटाने पर भी 7.5 करोड़ टन अनाज खपत-उपलब्धता का अंतर बना रहता है।

स्रोत : एनुअल इकोनॉमिक सर्वे से शुद्ध उपलब्धता के आंकड़े लिए गए। परिवार उपभोग की गणना एनएसएसओ के 2004-05, 2011-12 और 2022-23 आंकड़ों के इंटरपोलेशन से की गई। इसमें एनुअल इकोनॉमिक सर्वे से आबादी के आंकड़े शामिल किए गए। जानकारी मांगे जाने पर उपलब्ध।

यह एक विशाल मात्रा है। इतनी बड़ी कि इससे आधे अरब लोगों को एक साल तक या गाजा की पूरी जनसंख्या को 250 साल तक खिलाया जा सकता है। इसी प्रकार, “अप्रत्यक्ष” अनाज खपत जैसे चाउमीन और रेस्तरां के भोजन को ध्यान में रखने पर भी इस अंतराल को समझा पाना मुश्किल है।

क्या यह संभव है कि अनाज उत्पादन के आंकड़े बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए हों? इन आंकड़ों की जांच की तत्काल आवश्यकता है। हालांकि, यह आश्चर्यजनक होगा यदि ये आंकड़े 10 प्रतिशत से अधिक गलत साबित हों। इस दर पर भी उत्पादन का बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुतिकरण अनाज खपत-उपलब्धता के अंतर का अधिकांश हिस्सा स्पष्ट नहीं कर पाएगा।

एक संबंधित पहेली यह है। यदि भारत अनाज से भरा हुआ है, जैसा कि अनाज खपत-उपलब्धता का अंतर से प्रतीत होता है, तो अनाज की कीमतें तेजी से क्यों बढ़ रही हैं? अक्टूबर 2022 में अनाज घटक के लिए थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) में वार्षिक मुद्रास्फीति दर 12.1 प्रतिशत थी, जो अक्टूबर 2023 में 7.5 प्रतिशत और सितंबर 2024 में 8.1 प्रतिशत रही। यह हर बार सभी वस्तुओं के थोक मूल्य सूचकांक से काफी अधिक थी। ऐसा लगता है कि अनाज बाजार परंपरागत मांग-आपूर्ति नियमों के अनुसार कार्य नहीं करता।

अनाज खपत-उपलब्धता का अंतर केवल एक सांख्यिकीय पहेली नहीं है। भविष्य की योजना और मूल्य नीति के लिए भारत को अनाज उत्पादन और इसके उपयोग के विश्वसनीय अनुमान की आवश्यकता है। यदि घरेलू खपत की तुलना में अनाज उत्पादन तेजी से बढ़ता रहा, तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को बनाए रखना कैसे संभव होगा? क्या हालिया अनाज निर्यात की लहर को जारी रखना या बढ़ाना संभव और वांछनीय है? क्या समय आ गया है कि भारतीय कृषि को चावल और गेहूं से हटाकर विविधता लाने के लिए एक बड़ा प्रयास किया जाए? इन और संबंधित प्रश्नों का उत्तर आंकड़ों की स्पष्टता के बिना देना कठिन है।

चिंता का एक और कारण है। क्या होगा यदि अनाज खपत-उपलब्धता का अंतर किसी घोटाले को छिपा रहा हो? ऐसा प्रतीत होता है कि अर्थव्यवस्था में कहीं न कहीं अनाज का “छुपा हुआ उपभोक्ता” है। यदि यह कार्य पारदर्शी है, तो इसे छिपाने की आवश्यकता क्यों है? उम्मीद है कि समय के साथ इस पर से पर्दा उठेगा।

(ज्यां द्रेज रांची विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। क्रिस्टियन ओल्डिजेस पश्चिमी एशिया के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग में वरिष्ठ आर्थिक मामलों के अधिकारी हैं।) नोट : यह लेख हमारे वार्षिक प्रकाशन स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2025 का हिस्सा है।

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