आहार संस्कृति: भूला-बिसरा चिलबिल, ऐसे बनाएं खीर

चिलबिल के बीजों का उपयोग ग्रामीण अंचलों तक ही सीमित होकर रह गया है
फोटो: विभा वार्ष्णेय
फोटो: विभा वार्ष्णेय
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अप्रैल-मई के महीने में कागज की तरह पतले और हल्के चिलबिल के बीज पेड़ों से गिरकर के दिल्ली-एनसीसार की सड़कों पर बिछ जाते हैं। इसके सुंदर बीज बिन पत्तियों वाली शाखाओं पर गुच्छों में लटके रहते हैं और हाथ लगाते ही झड़ जाते हैं।

जमीन पर गिरे बीज अक्सर हवा के झोंकों से उड़ते-उड़ते हुए दूर तक पहुंच जाते हैं। मुझे इन बीजों के बारे में पता नहीं चलता] अगर मेरे दफ्तर के सहयोगी ने एक थैले में भरकर इसके बीज नहीं दिए होते।

उसने बताया कि पोषण से भरपूर ये बीज ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले बच्चे सालों से खा रहे हैं। चिलबिल के बीजों को लोकप्रिय भाषा में बंदर की रोटी भी कहा जाता है। पेड़ के अन्य सामान्य नाम पपरी और कंजु हैं।

चिलबिल अथवा भारतीय एल्म ट्री (होलोप्टेलिया इंटीग्रिफोलिया) भारतीय उपमहाद्वीप, भारत-चीन और म्यांमार में मूलरूप से पाया जाता है। संस्कृत में इसे चिरबिल्वा कहा जाता है और पारंपरिक चिकित्सा में इसका उपयोग होता है। पंखों वाले बीजों को समारा कहा जाता है, जिसे चोट लगने पर लेप के रूप में लगाया जाता है। दाद के लिए बीज का लेप भी एक प्रभावी उपचार है। पानी में भिगोए हुए बीजों का उपयोग सूजन को कम करने के लिए भी किया जाता है।

ऑनलाइन प्लैटफॉर्म पर भी इसके बीज बेचे जा रहे हैं। चूंकि सूखे बीज कुछ समय के लिए ही पेड़ पर गुच्छों में लटकते हैं, इसलिए तभी उन्हें संग्रह के लिए तोड़ना आसान होता है। इसकी पत्तियों और छाल का उपयोग अक्सर दवा के रूप में किया जाता है। इसकी पत्तियों को बीटा-लैक्टम प्रतिरोधी स्टैफिलोकोकस ऑरियस के खिलाफ प्रभावी पाया गया है। पत्तियों का उपयोग चिरुविलवाड़ी कषायम तैयार करने के लिए किया जाता है जो पेट की बीमारियों के इलाज में मदद करता है और हल्के रेचक के रूप में कार्य करता है।

चिलबिल के बीजों में 50 प्रतिशत तक तेल होता है, इसलिए खाद्य प्रयोजनों के लिए इसके तेल को बढ़ावा देने के प्रयास किए जा रहे हैं। बीज के विश्लेषण से पता चलता है कि उनमें फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर, तांबा, लोहा और जस्ता होता है।

इसके हरे बीजों का उपयोग सब्जी बनाने में किया जाता है और चूंकि इन्हें कच्चा भी खाया जा सकता है, इसलिए इन्हें सलाद के एक घटक के रूप में भी उपयोग किया जाता है। सूखे छिल्कों को हटाया जा सकता है और खीर तैयार करने के लिए बीज को सूखे मेवे के रूप में उपयोग किया जाता है (देखें, रेसिपी)। हालांकि पंखनुमा छिल्कों से बीज निकालने में काफी समय लग सकता है और बेहद सावधानी से इन्हें अलग करना पड़ता है। नमी पूरी तरह खत्म होने के बाद ही बीज निकालना संभव होता है। हाथ से धीरे से मसलकर बीच निकाले जा सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने वायु प्रदूषण के उच्च स्तर को सहन करने के लिए पेड़ की क्षमता का अध्ययन किया है। मुरादाबाद स्थित हिंदू कॉलेज के वनस्पति विज्ञान विभाग की पारिस्थितिकी अनुसंधान प्रयोगशाला की एक टीम द्वारा मुरादाबाद शहर में अध्ययन किए गए 10 पेड़ों में से यह तीसरा सबसे सहिष्णु पेड़ पाया गया। हालांकि, इसका एक्सपोजर पत्तियों में क्लोरोफिल की मात्रा को कम कर सकता है। यह जानकारी हरिद्वार के गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन से मिलती है।

बीजों की अधिक संख्या चिलबिल को वानिकी में उपयोगी बनाती है। यह पेड़ सूखा प्रतिरोधी है और इसे उगाना आसान है। यह अच्छी जल निकासी वाली रेतीली मिट्टी या दोमट, बजरी वाली उप-मिट्टी में रोपण के लिए उपयुक्त है। इसकी लकड़ी का उपयोग फर्नीचर बनाने और निर्माण कार्यों के लिए भी किया जा सकता है।

इसकी मटमैली छाल परतों में निकलती है, इसलिए इसे जंगल कॉर्क ट्री भी कहते हैं। हालांकि, चिलबिल का पेड़ बहुत लोकप्रिय नहीं है, क्योंकि लगभग 10 प्रतिशत लोगों को इसके परागकणों से एलर्जी है। जनवरी से फरवरी के महीनों के दौरान इसके हरे पीले फूल बहुतायत से खिलते हैं और पराग छोड़ते हैं। 2004 में जब इलाहाबाद में एक पूरे वर्ष के लिए विभिन्न परागकणों की उपस्थिति का अध्ययन किया गया था, तो कुल 80 प्रकार के पराग की पहचान की गई थी। इनमें से चिलबिल के परागकणों की हिस्सेदारी 46.2 प्रतिशत थी।

चिलबिल के बीजों की खाद्य क्षमता के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है क्योंकि इसके प्रसंस्करण में बहुत समय लगता है। हालांकि, आदिवासियों के बीच इसके सेवन का चलना ज्यादा है। इनमें उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले, बिहार के गया जिले और हिमालयी तराई क्षेत्र (थारू जनजाति) में आदिवासी आबादी शामिल हैं। ये जनजातियां पौधे के विभिन्न भागों का उपयोग अपने और पशुओं के लिए भी औषधीय प्रयोजनों के लिए करती हैं।

व्यंजन - चिलबिल खीर

चिलबिल के बीज : 100 ग्राम
दूध : एक लीटर
चीनी: 50 ग्राम
बादाम और काजू : 50 ग्राम
घी: 50 ग्राम
खोया: 50 ग्राम

बनाने की विधि : सूखे चिलबिल के बीजों को धोकर सिलबट्टे पर पीस लें। एक कड़ाही को गैस में रखें और उसमें घी गर्म करें। इसमें पीसे हुए चिलबिल के बीज डालें और भूनें। अब इसमें दूध डालें और बीज मुलायम होने तक उबालते रहें। इसके बाद मेवे और चीनी मिला दें और दूध के गाढ़ा होने तक उबालें। खीर तैयार है, इसे गर्मागर्म परोसें।

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