एक ओर जहां दुनिया में 78.3 करोड़ लोग खाली पेट सोने को मजबूर हैं, वहीं हर दिन करीब 100 करोड़ खुराक के बराबर भोजन बर्बाद किया जा रहा है। 2022 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो साल में करीब 105.2 करोड़ टन भोजन बर्बाद हो रहा है, जो हर साल प्रति व्यक्ति औसतन 132 किलोग्राम के बराबर है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की नई रिपोर्ट ‘फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2024’ में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक खाने योग्य करीब 20 फीसदी भोजन कचरे में फेंक दिया जाता है।
यह रिपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय शून्य अपशिष्ट दिवस से ठीक पहले जारी की गई है जो हर साल 30 मार्च को मनाया जाता है।
रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों की जो बर्बादी हो रही है उसका अधिकांश यानी 60 फीसदी घरों में बर्बाद हो रहा है। यदि घर-परिवार में बर्बाद हो रहे इस भोजन की कुल मात्रा को देखें तो वो करीब 63.1 करोड़ टन है।
इससे ज्यादा दुखद क्या होगा कि जहां एक तरफ इस आहार की बर्बादी हो रही है वहीं वैश्विक स्तर पर पांच वर्ष से कम आयु के 15 करोड़ बच्चों का विकास इसलिए अवरुद्ध हो गया क्योंकि उनके आहार में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी है। मतलब की वो बच्चे किसी न किसी रूप में कुपोषण का शिकार हैं।
इसी तरह खाद्य सेवा क्षेत्र में 29 करोड़ टन और फुटकर सैक्टर में 13.1 करोड़ टन खाद्य उत्पादों की बर्बादी हो रही है। वहीं यदि प्रति व्यक्ति के हिसाब से देखें तो एक व्यक्ति सालाना औसतन 79 किलोग्राम भोजन की बर्बादी के लिए जिम्मेवार है। जो दुनिया में भूख से जूझते हर व्यक्ति को प्रति दिन 1.3 खुराक भोजन प्रदान करने के लिए काफी है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उपभोक्ताओं के लिए उपलब्ध कुल भोजन का करीब 19 फीसदी हिस्सा फुटकर दुकानों, खाद्य सेवाओं और घर-परिवारों में बेकार हो रहा है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का अनुमान है कि फसल उपज से लेकर बिक्री तक, खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में करीब 13 फीसदी भोजन का नुकसान हो रहा है। देखा जाए तो यह वो बर्बादी है जिसे टाला जा सकता है।
देखा जाए तो खाद्य उत्पादों की होती बर्बादी आज केवल संपन्न देशों तक ही सीमित नहीं है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में भी यह समस्या बढ़ रही है। आंकड़े इस बात की भी पुष्टि करते हैं कि उच्च-आय, ऊपरी-मध्य आय, और निम्न-मध्यम आय वाले देशों में घर-परिवारों में होने वाली औसत खाद्य बर्बादी में, सालाना प्रति व्यक्ति केवल सात किलोग्राम का अन्तर है।
पर्यावरण और जलवायु पर भी भारी पड़ रही बर्बादी
दूसरी तरफ मध्यम आय वाले देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में भोजन की बर्बादी कम होती है। इसकी एक वजह वहां बची-खुची खाद्य सामग्री को फिर से इस्तेमाल में लाया जाना हो सकता है, क्योंकि इन खाद्य उत्पादों को मवेशियों के चारे या खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि इससे निपटने के लिए खाद्य पदार्थों की होती बर्बादी में कमी लाने के प्रयासों को मजबूत करना होगा। शहरों में सड़े हुए खाद्य पदार्थों का खाद के रूप में इस्तेमाल कचरे को कम करने में मददगार हो सकता है।
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में खाद्य पदार्थों की होती बर्बादी और औसत तापमान के बीच के संबंधों को भी उजागर किया है। रिपोर्ट के मुताबिक उन देशों में जहां जलवायु गर्म है वहां प्रति व्यक्ति ज्यादा भोजन बर्बाद होता है। ऐसा शायद इसलिए है क्योंकि वहां रेफ्रिजरेशन की कमी के कारण खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था नहीं है।
इसके साथ ही उंचें तापमान, लू और सूखे के कारण इन खाद्य उत्पादों का सुरक्षित भंडारण, परिवहन और प्रसंस्करण चुनौतीपूर्ण हो जाता है, जिससे बड़ी मात्रा में भोजन का नुकसान या बर्बादी होती है।
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अर्थव्यवस्था को भी लग रही एक लाख करोड़ डॉलर की चपत
हाल में जारी आंकड़ों के अनुसार भोजन की हो रही यह हानि और बर्बादी वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के आठ से दस फीसदी उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है, जो विमानन क्षेत्र से हो रहे कुल उत्सर्जन का पांच गुणा है।
इतना ही नहीं इसकी वजह से जैवविविधता को भी भारी नुकसान हो रहा है। इसके साथ ही यह कृषि क्षेत्र पर भी भारी दबाव डाल रहा है। अनुमान है कि खाद्य पदार्थों का जो नुकसान हो रहा है उसके लिए दुनिया की एक तिहाई कृषि भूमि का उपयोग किया गया था। इतना ही नहीं खाद्य पदार्थों की होती यह हानि और बर्बादी आर्थिक रूप से भी काफी महंगी पड़ रही है। इसकी वजह से एक लाख करोड़ डॉलर का नुकसान हो रहा है।
हालांकि इसके बावजूद 2022 तक, केवल 21 देशों ने अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं (एनडीसी) में भोजन की हानि और बर्बादी को कम करने की रणनीतियों को शामिल किया है। ऐसे में रिपोर्ट के मुताबिक 2025 में एनडीसी में होने वाली संशोधन की प्रक्रिया भोजन की हानि और बर्बादी के खिलाफ कार्रवाई को उसमें शामिल करके जलवायु महत्वाकांक्षा को बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण मौका प्रदान करती है। यह रिपोर्ट न केवल व्यक्तिगत बल्कि सिस्टम के स्तर पर भी भोजन की बर्बादी से निपटने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
गौरतलब है कि मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए सतत विकास के 12.3वें लक्ष्य के तहत 2030 तक फुटकर और उपभोक्ता स्तर पर प्रति व्यक्ति वैश्विक खाद्य बर्बादी को आधा करने का लक्ष्य रखा गया है, साथ ही इसका उद्देश्य आपूर्ति श्रृंखलाओं में होने वाले खाद्य पदार्थों के नुकसान को भी कम करना है।
इस बारे में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की कार्यकारी निदेशक इंगर ऐंडरसन ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि खाद्य पदार्थों की होती बर्बादी एक वैश्विक त्रासदी है। दुनिया भर में यह भोजन ऐसे समय में बर्बाद हो रहा है, जब लाखों-करोड़ों लोगों को भरपेट खाना नहीं मिल पा रहा है। उनके मुताबिक इससे न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है, साथ ही जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता और प्रदूषण जैसी चुनौतियां भी गहरा रही हैं।
उनका यह भी कहना है कि यह न केवल विकास से जुड़ा मुद्दा है। इसके साथ ही यह पर्यावरण और जलवायु को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
अच्छी खबर यह है कि यदि देश इस मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करें, तो भोजन के इस नुकसान और बर्बादी को काफी हद तक कम कर सकते हैं। इस तरह जलवायु प्रभावों और आर्थिक नुकसान को भी कम किया जा सकता है। साथ ही वैश्विक लक्ष्यों की दिशा में हो रही प्रगति में तेजी ला सकते हैं।