चार साल में रास्ते से गायब हो गया 4 लाख टन से अधिक गेहूं-चावल!

संसद में पेश खाद्य, उपभोक्ता मामलों और सार्वजनिक वितरण पर स्थायी समिति ने भारतीय खाद्य निगम में भ्रष्टाचार पर नाराजगी जताई है
स्थायी संसदीय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 1109 करोड़ रुपए का अनाज रास्ते में कहीं गुम या खराब हो गया। फाइल फोटो: विकास पाराशर
स्थायी संसदीय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 1109 करोड़ रुपए का अनाज रास्ते में कहीं गुम या खराब हो गया। फाइल फोटो: विकास पाराशर
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चार साल में 4,11,810 मीट्रिक टन गेहूं और चावल रास्ते में गायब हो गया। अगर यह बच जाता तो प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत लगभग 8.23 करोड़ लोगों को एक माह का अन्न दिया जा सकता था। इस योजना के तहत 5 किलो अन्न (चावल या गेहूं) गरीबों को दिया जा रहा है।

10 अगस्त को संसद में पेश खाद्य, उपभोक्ता मामलों और सार्वजनिक वितरण पर स्थायी समिति (स्टैंडिंग कमेटी) की रिपोर्ट में ये चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। समिति की यह रिपोर्ट भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई)द्वारा खरीद, संग्रहण और वितरण पर आधारित है।

ये आंकड़े 2017-18 से लेकर अक्टूबर 2020 तक के हैं। अपनी रिपोर्ट में स्थायी समिति ने कहा है कि सरकार को ट्रांजिट (रास्ते में होने वाले नुकसान) और स्टोरेज लॉस (भंडारण में होने वाले नुकसान) को रोकने के ठोस इंतजाम करने चाहिए, ताकि टैक्स देने वाले आम लोगों के पैसे से दी जाने वाली खाद्य सब्सिडी को कम किया जा सके। अकेले ट्रांजिट लॉस की वजह से चार साल ( अक्टूबर 2020 तक) के दौरान 1109.82 करोड़ रुपए के नुकसान का आकलन किया गया है। 

स्थायी समिति ने ट्रांजिट लॉस के लिए जिम्मेवार अधिकारियों व कर्मचारियों पर की जा रही कार्रवाई पर सवाल खड़े किए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2018-19 में 153, 2019-20 में 114 और 2020-21 (सितंबर 2021 तक) 44 मामले ही दर्ज किए गए हैं। जबकि इसमें से 18 मामले अभी भी लंबित हैं।

इसी तरह स्टोरेज लॉस के 89 मामले दर्ज हैं, जबकि 2018-19 में 266, 2019-20 में 258 और अप्रैल से सितंबर 2020 तक 154 मामले दर्ज हुए।

कमेटी ने सिफारिश की है कि खाद्यान्न का नुकसान रोकने के लिए एफसीआई अपने मानक, गाइडलाइंस और चेकलिस्ट तैयार करे, जिसे सभी कर्मचारी-अधिकारी अधिक सजग हों। साथ ही, भ्रष्टाचार व डयूटी में लापरवाही बरतने संबंधित सभी लंबित कानूनी मामलों को एक तय समय में निपटाने के लए एक फ्रेमवर्क भी तैयार करे।

मंत्रालय ने बताया कि भारतीय खाद्य निगम में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। जैसे, किसानों को एमएसपी का भुगतान ऑनलाइन किया जा रहा है। एजेंसियों को भी ई-पेमेंट सिस्टम के तहत भुगतान किया जा रहा है।

धान की गुणवत्ता को लेकर हमेशा सवाल उठते हैं, इसलिए क्वालिटी पैरामीटर के बारे में पब्लिक डोमेन में स्पष्ट जानकारी दी जा रही है। खरीद संबंधी प्रक्रिया का नियमित निरीक्षण किया जा रहा है और दोषी पाए जाने पर कार्रवाई की जा रही है।

मंडी मिल से लेकर डिपो तक पूरी प्रक्रिया की टैगिंग की गई है। कुछ संवेदनशील जिलों की पहचान की गई है, उन पर खास नजर रखी जा रही है।

सभी गोदामों में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। ठेकेदारों की शिकायतों के निवारण के लिए शिकायत निवारण कमेटियां बनाई गई हैं।

रास्ते में होने वाले खाद्यान्न के नुकसान की जांच के लिए परिवहन व्यवस्था पर पूरी नजर रखी जाएगी और उन रास्तों पर नजर रखी जा रही है, जहां अकसर नुकसान होता है।

एक स्वतंत्र कंसाइनमेंट सर्टिफिकेशन स्कॉवड बनाया गया है, जो रेलवे में लोडिंग व अनलोडिंग के वक्त तैनात रहता है।

वितरण पर नजर रखने के लिए भी कई कदम उठाए गए हैं। जैसे- ओपन मार्केट में बिक्री केवल ई-ऑक्शन के जरिए होती है। स्टॉक क्वालिटी की जांच ज्वाइंट सैंपलिंग से होती है। मजदूरों से संबंधित प्रक्रिया की भी निगरानी की जाएगी। 

हालांकि कमेटी ने कहा कि सरकार ने खाद्यान्न का नुकसान रोकने के लिए कई कदम उठाए गए हैं, बावजूद इसके 2020-21 (अक्टूबर 2020 तक) में केवल ट्रांजिट लॉस 280.94 करोड़ रुपए का है, जो बहुत अधिक है। इसलिए सरकार को और अधिक कड़े कदम उठाने चाहिए।

कमेटी ने अन्न के वितरण में बरती जा रही लापरवाही पर भी चिंता जताते हुए कहा कि एफसीआई द्वारा भारी रकम खर्च करके जो अनाज एमएसपी  पर खरीदी जा रही है। भ्रष्टाचार के कारण वह अनाज सही हाथों में नहीं पहुंच रहा है। सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए।

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