मिड-डे-मील में फूड प्वॉजनिंग के मामले पिछले तीन माह में तेजी से बढ़े

बिहार, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में बीते तीन माह में फूड प्वॉजनिंग के मामले, पिछले छह साल के दौरान सबसे अधिक बढ़े
फाइल फोटो: सीएसई
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कोविड-19 शुरू होने के बाद मिड-डे-मील योजना के अंतर्गत पके हुए भोजन के बदले अनाज दिया जाने लगा। लेकिन जैसे ही कोविड-19 में लगे प्रतिबंधों में ढील के बाद छात्र-छात्राओं को फिर से पका हुआ भोजन दिया जाने लगा।

ऐसे में एक बार फिर से मिड-डे मील खाने के कारण फूड प्वॉजनिंग के मामले देशभर के कई राज्यों से आने लगे। यदि पिछले तीन माह यानी 90 दिनों का लेखा-जोखा देखें तो पाएंगे कि देश के तीन राज्यों में फूड प्वॉजनिंग के मामले तेजी से बढ़े हैं। ये राज्य हैं कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और बिहार। इन राज्यों के स्कूलों में लगभग 120 छात्र पिछले तीन माह में फूड प्वॉजनिंग से पीड़ित हो चुके हैं।  

यदि इन आंकड़ों को वृहद रूप से देखें तो 2022 में अब तक यानी सितंबर तक देशभर के स्कूलों में फूड प्वॉजनिंग के मामलों की संख्या 979 पहुंच चुकी है। ये आंकड़े पिछले छह वर्षों में सबसे अधिक हैं।

2009 और 2022 के 13 वर्षों के बीच फूड प्वॉजनिंग के 9,646 मामले सामने आए। यह आंकड़े एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम यानी इंटीग्रेटेड डिजीज सर्विलांस प्रोग्राम के तहत एकत्रित किए गए हैं।

2009 और 2022 के बीच पीड़ितों की सबसे अधिक संख्या कर्नाटक (1,524), ओडिशा (1,327), तेलंगाना (1,092), बिहार (950) और आंध्र प्रदेश (794) में हैं। 2016 में महाराष्ट्र के पालघर जिले के एक गांव में जिला परिषद स्कूल में मिड डे मील के रूप में खिचड़ी खाने के बाद 247 छात्र बीमार पड़ गए। इस राज्य में 2009 से 2022 के बीच स्कूलों में मिड-डे मील खाने के कारण फूड प्वॉजनिंग के कुल 232 मामले सामने आए।

भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक यानी कैग ने पिछले एक दशक में कई राज्यों का ऑडिट किया और इसके लिए कई कारण बताए है। जैसे खराब बुनियादी ढांचा, अपर्याप्त निरीक्षण, अनियमित लाइसेंस और फीडबैक ठीक से न देना आदि।

ध्यान रहे कि 2019 में मध्य प्रदेश में कैग ने पाया कि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण यानी फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने डॉक्टरों को फूड प्वॉजनिंग के मामलों की रिपोर्ट करने के लिए सूचित नहीं किया।

यही नहीं कैग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि खाद्य सुरक्षा आयुक्त के पास 2014-19 की अवधि के दौरान हुए फूड प्वाइजनिंग के मामलों की जानकारी नहीं थी। कैग ने पाया कि इस तरह की एक घटना में होशंगाबाद जिले के एक स्कूल में अगस्त 2014 में हुई जब 110 फूड प्वॉजनिंग के मामले सामने आए।

प्रशासन द्वारा इसके आंकड़े एकत्रित नहीं किए गए और इसका नतीजा था भोजन तैयार करने के लिए जिम्मेदार खाद्य व्यवसाय ऑपरेटरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।  कैग ने 2015-16 में पाया कि मध्य प्रदेश में लगभग 14,500 स्कूलों में मिड डे मील तैयार करने के लिए किचन शेड नहीं था। 2016 में अरुणाचल प्रदेश में 40 प्रतिशत स्कूलों में शेड नहीं था। छत्तीसगढ़ में कैग ने अपने सर्वेक्षण में पाया कि 8,932 स्कूलों में मीड डे मिल खुले क्षेत्रों के अस्वच्छ परिस्थितियों में पकाया गया।

रसोई से स्कूलों में पहुंचाए जाने वाले भोजन का न्यूनतम तापमान 65 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए, जब इसे छात्रों को परोसा जाता है। 2018 में गुजरात के वलसाड जिले के स्कूलों के एक दौरे के दौरान कैग ने देखा कि गैर सरकारी संगठनों द्वारा परोसा जाने वाला भोजन गर्म नहीं था और सीएजी ने जिन स्कूलों का दौरा किया था, उनमें से किसी में भी तापमान जांच करने की सुविधा नहीं थी।

राज्य के पांच जिलों में कैग ने यह भी पाया कि स्टाफ की 80 फीसदी कमी थी। 2014 में झारखंड में कैग ने पाया कि कई स्कूलों में शिकायत निवारण तंत्र ही नहीं है, ऐसे में बच्चों के बीमार होने की रिपोर्ट कहां दर्ज कराएं? 2017 में हिमाचल प्रदेश में कैग ने पाया कि लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाण पत्र क्रमशः 97 और 100 प्रतिशत खाद्य व्यवसाय ऑपरेटरों को उनके परिसर का निरीक्षण किए बिना ही दे दिए गए थे।

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