आहार संस्कृति: ऐसे बनाएं गुणकारी इमली बीज का वड़ा

इमली का पेड़ सूखा प्रतिरोधी है और उनके बीज जलवायु परिवर्तन के दौर में हमारी भोजन की थाली की शान बढ़ा सकते हैं
फोटो: विभा वार्ष्णेय / सीएसई
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जब भी मैं इमली खरीदती हूं, मेरी मां हमेशा याद दिलाती है कि यह खट्टा फल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उनके गांव में कितना दुर्लभ है। मां बचपन में इमली की गुठली (बीज) भी रातभर चूल्हे की राख में भूनकर खा जाती थी।

परंपरागत रूप से इमली के बीजों को अच्छी तरह से भूना जाता है और फिर ओखली व मूसल में धीरे से कूटा जाता है ताकि बीज का आवरण टूट या हट जाए। इस प्रक्रिया में कम से कम एक दिन का समय लग जाता है लेकिन आधुनिक परिवार इस लंबी प्रक्रिया से बच सकते हैं क्योंकि बीज का पाउडर अब बाजार में आसानी से उपलब्ध है। अगर फिर भी आप इसे घर पर तैयार करना चाहते हैं तो माइक्रोवेव की मदद से यह काम बेहतर तरीके से किया जा सकता है।

इमली के बीज दक्षिणी भारत के लोकप्रिय व्यंजनों में शामिल हैं क्योंकि यहां इमली का उपयोग अधिक प्रचलित है। बीज के पाउडर का उपयोग महाराष्ट्र में दाल वड़ा तैयार करने में किया जाता है (देखें, व्यंजन, पेज 57)। ये वड़े साधारण दाल वड़े से अधिक करारे होते हैं। कर्नाटक में भुनी हुई गुठली को छाछ और नमक में एक दिन के लिए भिगोया जाता है जो उन्हें नरम कर देता है ताकि नाश्ते के रूप में आसानी से खाया जा सके। पारंपरिक व्यंजनों के अलावा इस पाउडर का उपयोग बेकिंग में किया जा सकता है या इसे रोटी के आटे में मिलाकर उसे समृद्ध किया जा सकता है।

इमली के बीज प्रोटीन और अमीनो एसिड के समृद्ध स्रोत के रूप में लोकप्रिय हो रहे हैं। 10 मई, 2020 को इंटरनेशनल जर्नल ऑफ करंट माइक्रोबायोलॉजी एंड एप्लाइड साइंसेज में प्रकाशित एक अध्ययन में बिहार और राजस्थान के शोधकर्ताओं ने बताया कि 15 मिनट के लिए 150 डिग्री सेंटीग्रेड पर भुने हुए बीजों के पाउडर में 19.46 प्रतिशत प्रोटीन, 2.32 प्रतिशत फाइबर और 62.13 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट है। यह पाउडर कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन और पोटैशियम जैसे खनिजों से भी समृद्ध होता है।

इमली कई देशों में पाई जाती है। पुराने जमाने में यह नाविकों के आहार में शामिल थी क्योंकि इसमें मिलने वाला उच्च विटामिन सी त्वचा रोग स्कर्वी से बचाता है। यही वजह है कि नाविकों के साथ जहाज के साथ इमली का पेड़ कई जगह पहुंच जाता था। यह पेड़ सूखे और पानी की कमी वाले क्षेत्रों में अच्छी तरह से पनपता है। सूखे प्रतिरोधी पेड़ के रूप में इमली में नाइट्रोजन स्थिरीकरण के माध्यम से खराब मिट्टी में विकसित होने की क्षमता है। यह खूबी इमली सहित फैबेसी परिवार की सभी प्रजातियों में पाई जाती है। यह पेड़ तटीय क्षेत्रों से खारेपन को भी सहन कर सकता है।

आनुवंशिक अध्ययनों से संकेत मिलता है कि यह पेड़ अफ्रीका मूल का हो सकता है लेकिन इससे बने कोयले के विश्लेषण से पता चलता है कि पेड़ कम से कम 1,300 ईसा पूर्व से भारत में मौजूद है। इमली का अंग्रेजी नाम तामारिंड अरबी शब्द तामार हिंद से उत्पन्न हुआ है। माना जाता है कि बेंगलुरु के पास नल्लूर इमली का बाग 12वीं शताब्दी में राजा राजेंद्र चोल के शासनकाल के दौरान लगाया गया था। यहां 54 एकड़ में 278 इमली के पेड़ हैं और सबसे पुराना पेड़ 410 साल का है। यह पहला विरासत स्थल है जिसे राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण ने 2007 में मान्यता दी थी क्योंकि यह एक अद्वितीय जीन पूल का प्रतिनिधित्व करता है जिसे संरक्षण की आवश्यकता है।

औषधीय गुण

2018 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी रुड़की के शोधकर्ताओं ने जर्नल वायरोलॉजी में लिखा कि इमली के बीजों में पाए जाने वाले प्रोटीन में एंटीवायरल गुण होते हैं और चिकनगुनिया के खिलाफ दवा विकसित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।

भारत, अमेरिका और नॉर्वे के शोधकर्ताओं ने घुटने के दर्द की दवा तैयार करने में भी इसके बीजों का उपयोग किया है। इमली के बीज और हल्दी (कुरकुमा लोंगा) का अर्क घुटने के दर्द को कम कर सकता है और रोगियों को मांसपेशियों, हड्डियों और लिंगामेंट्स को सुचारू करता है। इसके अलावा, यह औषधीय दवा मांसपेशियों में होने वाली सूजन को भी कम करने में बड़ी मददगार है।

भोजन और औषधीय उपयोगों के अलावा इमली के बीज पारंपरिक रूप से चमड़े की टेनिंग में उपयोग किए जाते हैं। बीजों से लाल रंग का तेल निकलता है जिसका इस्तेमाल मूर्तियों को रंगने के लिए किया जाता है। ओडिशा में सौरा जनजाति अपने पारंपरिक चित्रों में इमली के बीज के भूरे रंग को प्राकृतिक रंग के रूप में उपयोग करती है।

हाल के वर्षों में इमली के बीजों के उपयोग बढ़े हैं। उदाहरण के लिए भारत, दक्षिण कोरिया और सऊदी अरब के शोधकर्ताओं ने पनीर के कारखाने से निकले अपशिष्ट जल के उपचार के लिए बीजों का इस्तेमाल किया। टीम ने अक्टूबर 2022 में कीमोस्फेयर पत्रिका में बताया कि बीज में मौजूद पॉलीसेकेराइड कोगुलेंट के रूप में काम करते हैं और पानी से गंदगी साफ करते हैं।

एक लोकप्रिय किंवदंती है कि एक दिन जब राधा कृष्ण से मिलने जा रही थीं, तो उन्होंने पके फल पर पैर रख दिया जिससे उनका पैर कट गया। इसके बाद राधा ने पेड़ को श्राप दिया कि उसका कच्चा फल पेड़ से गिरेगा यानी फल पेड़ पर नहीं पकेगा। यह श्राप उन बच्चों के लिए वरदान बन गया जो जमीन पर पड़ी इमली को आराम से बटोरकर खा सकते हैं। कच्ची इमली के बीज खट्टे गूदे के साथ बच्चे चबाते हैं और अनजाने में स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हैं।

व्यंजन : इमली बीज का वडा

  • इमली के बीज का पाउडर : 2 बड़े चम्मच
  • उरद दाल : 1 कप (आप मूंग व चने जैसी अन्य दालें भी मिला सकते हैं)
  • सहजन की पत्तियां : एक मुट्ठी
  • अदरक : दो इंच के टुकड़े
  • लहसुन : 10 कलियां
  • हरी मिर्च : 5
  • नमक : स्वादानुसार
  • तेल : तलने के लिए
विधि : उड़द दाल को 30 मिनट के लिए पानी में भिगो दें। मिक्सर जार में अदरक, लहसुन और मिर्च के साथ इसका पेस्ट बना लें। इसमें इमली के बीज का पाउडर, सहजन की पत्तियां और नमक डालकर अच्छी तरह मिला लें। तलने के लिए तेल पहले से गरम कर लें। हाथ से पेस्ट का वड़ा बनाकर तल लें। वड़े में एक छेद कर लें ताकि यह ठीक से पक जाए।

इस पुस्तक में 70 से अधिक व्यंजनों को शामिल किया गया है जो बंगाली, खासी और नेपाली व्यंजनों के मिश्रण का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसमें आवश्यक मसाला मिश्रण, कद्दू के पत्तों में पकाया जाने वाला किण्वित व्यंजन जैसे शिडोल, भुना हुआ तिलापिया मछली स्टू, कीनू पाएश और अन्य व्यंजनों को पकाने के रहस्यों को शामिल किया गया है जो आपको एक पारंपरिक भारतीय रेस्तरां या रसोई की किताब में नहीं मिलेंगे।

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