

कोविड-19 महामारी के दौरान जिन स्वास्थ्यवर्धक भोजनों का चलन शुरू हुआ, उनमें पेठा (ऐश गार्ड) भी शामिल है। पारंपरिक रूप से इसका उपयोग पारदर्शी पेठा मिठाई बनाने में किया जाता है। लेकिन अब डिटॉक्स (विषहरण) के रूप में भी इसका उपयोग खासा लोकप्रिय है। इसके कच्चे जूस को आंतों की सेहत के लिए अच्छा माना जाता है और फिल्मी हस्तियां और धार्मिक बाबा दोनों ही इसकी सिफारिश करते हैं।
लेकिन इसे खाने का एक तीसरा तरीका भी है। आप अपरिपक्व फल को हल्के मसालों में भूनकर खा सकते हैं या इसे नारियल के दूध के साथ पका सकते हैं। केरल और आंध्र प्रदेश में यह उपयोग होता है। उत्तर भारत के हिमालयी क्षेत्र में इसे मूंग दाल के साथ वड़ी बनाने में उपयोग किया जाता है और ये सूखी वड़ियां साल भर उपयोग में लाई जा सकती हैं। कर्नाटक के उडुपी व्यंजनों में यह सांभर, हलवा और यहां तक कि चटनी में भी प्रयुक्त होता है। महाराष्ट्र में इससे एक मीठा व्यंजन “कोहल्याची वडी” बनाई जाती है जो बर्फी की तरह होती है। पश्चिम बंगाल में “चालकुमरोर बोरा” (फ्रिटर) और “चालकुमरो घोंटो” (मिक्स सब्जी) लोकप्रिय हैं। ये व्यंजन वे लोग खाते हैं जो फैशन के पीछे नहीं भागते बल्कि सच में स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होते हैं।
पेठा के सफेद गूदे में कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं। यहां तक कि चीनी से भरपूर मीठा पेठा लू से बचा सकता है और पानी के साथ लेने पर तुरंत ऊर्जा देता है। पेठा अथवा बेनिनकासा हिसपिडा कुकुर्बिटेसी परिवार से संबंधित है और यह संभवतः मूलरूप से इंडो-मलेशियन क्षेत्र से है।
यह बेलयुक्त पौधा भारत, म्यांमार और श्रीलंका के मैदानी इलाकों में व्यापक रूप से उगाया जाता है। यह गर्म मौसम में आसानी से उगता है। इसे दोमट और रेतीली मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसे नदी के किनारों या नालियों में भी उगाया जा सकता है क्योंकि इसे बढ़ने के दौरान पर्याप्त पानी चाहिए होता है। यह फल छोटे किसानों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बहुत दिन तक खराब नहीं होता। यह बहुत बड़ा सा होता है इसलिए इसे आसानी से घर-घर भेजा जा सकता है।
अपरिपक्व पेठा बाहर से रोएंदार होता है। परिपक्व होने पर ये रोएं झड़ जाते हैं और एक मोमी परत विकसित हो जाती है जिससे यह फल एक साल तक भी खराब नहीं होता। यह मोमी परत बर्फ जैसी लगती है और इसी कारण इसे सफेद कद्दू, विंटर मेलन और विंटर लौकी कहा जाता है। जब यह फल बड़ा होता है तो इसकी लंबाई 80 सेंटीमीटर तक हो सकती है।
पेठा मिठाई बनाते समय फल का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा फेंक दिया जाता है जिसमें बीज, गूदा और छिलके शामिल हैं। हालांकि बीजों को भूनकर खाया जा सकता है, फिर भी आमतौर पर ये बर्बाद हो जाते हैं। शायद यही कारण था कि कोविड-19 महामारी के दौरान अमेरिका में एक स्कैम के तहत पेठा के बीजों का उपयोग किया गया। 2020 में अमेरिका भर में लोगों को चीन से रहस्यमयी बीजों के पैकेट मिलने लगे। इससे घबराहट फैल गई और सरकार ने लोगों से कहा कि वे पैकेट न खोलें क्योंकि यह जैविक आतंकवाद हो सकता है। पेठा के बीज भी उनमें से एक थे जो डर फैलाने के मकसद से इस्तेमाल किए गए थे। हालांकि बाद में पता चला कि यह शायद फर्जी रिव्यू पाने और ई कॉमर्स प्लैटफॉर्म पर अपने उत्पाद की रैंकिंग बेहतर करने एक एक तरीका था।
इस स्कैम के कारण बहुत से पोषक तत्वों से भरे हुए बीज बर्बाद हो गए। कई अध्ययनों से साबित हुआ है कि ये स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक हैं। सिर्फ 2025 में ही कई अध्ययन प्रकाशित हुए हैं जो इन खूबियों को दर्शाते हैं। पेठे के अर्क को स्तन कैंसर के इलाज में प्रभावी पाया गया है। इस अध्ययन में स्तन कैंसर की कोशिकाओं पर इनका असर देखा गया। बीज के अर्क में कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने वाले गुण पाए गए। यह अध्ययन फरवरी 2025 में एशियन पैसिफिक जर्नल ऑफ कैंसर प्रिवेंशन में प्रकाशित हुआ। अप्रैल 2025 में केमिस्ट्री एंड बायोडायवर्सिटी जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि बीजों में मौजूद फाइटोकेमिकल्स अल्जाइमर रोग के इलाज की क्षमता रखते हैं।
यह भी देखा गया कि यदि इसे गूदे और बीज सहित पूरा उपयोग किया जाए, तो इसका फायदा ज्यादा हो सकता है। फरवरी 2025 में फूड एंड फंक्शन जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि फ्रिज-ड्राई (फ्रीज में सुखाया गया) पेठे का रस मधुमेह नियंत्रण में सहायक होता है। चूहों पर किए गए इस अध्ययन में यह पाया गया कि यह फास्टिंग ब्लड शुगर, ग्लूकोज और इंसुलिन रेजिस्टेंस को कम करता है। साथ ही यह फैटी लिवर में भी सुधार लाता है। यह अध्ययन भारत के कई सार्वजनिक और निजी संस्थानों द्वारा किया गया था जिनमें केरल के सीएसआईआर-नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर इंटरडिसिप्लिनरी साइंस एंड टेक्नोलॉजी शामिल है। अप्रैल 2025 में साइंटिफिक रिपोर्ट में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में बताया गया कि पेठा मोटापे से जुड़ी इम्फलेमेटरी बाउल रोगों में भी सहायक है। इसके 18 यौगिकों में से 11 में दवा जैसे गुण पाए गए।
भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में भी यह फल काफी उपयोगी है। उत्तर-पूर्व भारत के मिजो समुदाय और असम के कुछ जनजातीय समुदाय इसे डायरिया के इलाज में उपयोग करते हैं। आयुर्वेद में इसके ताजे रस का प्रयोग आंतरिक रक्तस्राव को रोकने के लिए किया जाता है। यह तंत्रिका संबंधी रोग, जलन, मधुमेह, बवासीर और अपच के इलाज में भी उपयोगी है। यह कैल्शियम, आयरन, विटामिन ए व सी जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का अच्छा स्रोत है। इसलिए कहा जा सकता है कि इसे आहार में शामिल न करने का कोई भी कारण नहीं है।
सामग्री
पेठा: 2 कटोरी
हरी मिर्च: 2
राई: 1 छोटी चम्मच
नारियल का दूध: 1 कटोरी
करी पत्ता: 1-2 पत्ते
नारियल तेल: 1 बड़ा चम्मच
नमक: स्वादानुसार
विधि: पेठे को छीलकर छोटे टुकड़ों में काट लें। पैन में एक कप पानी गरम करें और उसमें पेठे के टुकड़े डालें। लंबाई में चिरी हुई हरी मिर्च और नमक डालें और नरम होने तक उबालें। ताजा नारियल से नारियल का दूध निकालें, उसमें 1 चम्मच चावल का आटा मिलाएं और इसे उबले पेठा में डालें। ध्यान रखें कि नारियल का दूध उबलने न पाए। इससे पहले गैस बंद कर दें। अब एक छोटे पैन में नारियल तेल गर्म करें, उसमें राई और करी पत्ते डालें। जब राई चटकने लगे, तब यह तड़का स्ट्यू में डालें और अच्छे से मिला लें। इसे चावल या अप्पम के साथ खाएं।
लेखक स्टीफन ए हैरिस ने अपनी इस पुस्तक में कॉफी, जौ और ताड़ जैसी प्रजातियों की कहानियां साझा की हैं, जो आज भी वैश्विक व्यापार, राजनीति और प्रौद्योगिकी को प्रभावित करती हैं