इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (आईसीआरआईएसएटी) के साक्षात्कार आधारित एक नए अध्ययन के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अधिक कार्बोहाइड्रेट और मीठा डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ खाते हैं जिनमें प्रोटीन कम पाया जाता है।
ज्यादा से ज्यादा लोग अधिक कार्बोहाइड्रेट खा रहे हैं क्योंकि वे किफायती और अधिक सुविधाजनक हैं। अधिक मीठे डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ खा रहे हैं क्योंकि वे दुकानों में आसानी से उपलब्ध हैं और स्वस्थ फलों और सब्जियों की तुलना में उनकी आयु लंबी होती है।
यह अध्ययन भारत के ग्रामीण स्वास्थ्य संकट को उजागर करता है, जिसमें ग्रामीण मोटापे और कुपोषण के बढ़ने के कारणों की पड़ताल की गई है।
यह अध्ययन भारत के एक राज्य तेलंगाना के ऑरेपल्ले, डोकुर गांवों और अमंगल और देवराकाद्र कस्बों में आयोजित किया गया था। अध्ययन में कहा गया है कि, यहां लोगों को प्रोटीन और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर विकल्पों की तलाश करने की तुलना में, कार्बोहाइड्रेट और शर्करा युक्त डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ हासिल करना अधिक सुविधाजनक लगता है।
आईसीआरआईएसएटी के अध्ययनकर्ता के मुताबिक, अध्ययन प्रोटीन तक लोगों की पहुंच की कमी और पारंपरिक खाद्य प्रणालियों और पोषण आधारित खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाओं के महत्व पर भी प्रकाश डालता है।
जो लोग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में आते हैं वे अपना खाना भी बदल देते हैं क्योंकि वे बड़े पैमाने पर डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों के विज्ञापनों से प्रभावित होते हैं।
अध्ययन में कहा गया कि, बाजरा जैसे पौष्टिक उत्पादों को उपभोक्ताओं के लिए अधिक आकर्षक बनाकर विरासत को स्वास्थ्य के साथ मिश्रित करने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।
पोषण और परंपरा के बीच संतुलन
अध्ययन के हवाले से कहा गया कि, आईसीआरआईएसएटी अपने कृषि व्यवसाय नवाचार मंच के माध्यम से और अपने सहयोगियों के साथ किफायती, पौष्टिक उत्पाद विकसित करने और बाजार से स्वास्थ्य को होने वाले फायदों के बारे में शिक्षित करने का काम कर रहे हैं।
अध्ययनकर्ता ने कहा, हम मोटापे और कुपोषण की खतरनाक वृद्धि से निपटने के लिए ग्रामीण भारत में पारंपरिक खाद्य प्रणालियों की समृद्ध बनाने, पुनर्जीवित करके पोषण और परंपरा के बीच सामंजस्यपूर्ण संतुलन बनाए रखने के लिए सामूहिक रूप से जिम्मेदार हैं।
अध्ययन में लिए गए साक्षात्कार में तेलंगाना के औरेपल्ले गांव के व्यक्ति ने बताया कि, हम पहले मुख्य रूप से ज्वार खाते थे जिसकी जगह चावल ने ले ली है क्योंकि यह सस्ता और आसानी से मिल जाता है। हम जंगल से जंगली फल और भोजन भी इकट्ठा करते थे। लेकिन अब उन्हें ढूंढना भी कठिन है क्योंकि वहां जंगल कम रह गए हैं।
उन्होंने बताया कि कई समय पहले उनका परिवार ज्वार खाता था लेकिन अब शायद ही कभी इसका उपयोग खाने में करते है।
अध्ययन में कहा गया है कि लोगों को स्थानीय भोजन उगाकर पौष्टिक भोजन के सेवन के बारे में बताना जरूरी है।
अध्ययनकर्ता ने कहा, बाजार तंत्र की जटिलताओं को बेहतर ढंग से समझकर, हम एक ऐसा रास्ता तैयार कर सकते हैं जो ग्रामीण समुदायों को पौष्टिक भोजन के विकल्पों तक व्यापक पहुंच प्रदान करेगा।
आईसीआरआईएसएटी शोधकर्ताओं ने यह समझने के लिए एक गणना-आधारित पद्धति तैयार की है कि खेती, भोजन और पोषण एक दूसरे से कैसे जुड़े हुए हैं।
अध्ययन के मुताबिक, नीति निर्माताओं को कुपोषण के तीन गुना बोझ, ग्रामीण भारत में अल्पपोषण, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी और अति-पोषण के सह-अस्तित्व से निपटने के लिए पर्याप्त सबूतों को सामने लाता है।
अध्ययनकर्ता ने कहा कि, पारंपरिक कृषि प्रणालियों और बाजारों की यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका है कि लोगों को ग्रामीण इलाकों में और जहां वे रहते हैं उसके करीब अधिक पौष्टिक भोजन मिल सके और आईसीआरआईएसएटी इस क्षेत्र में और अधिक समाधान पेश करने के लिए तत्पर है।