करेले की पत्तियां कई तरह के खाने में इस्तेमाल की जा सकती हैं। यहां इन्हें अंडा भुर्जी में मिलाया गया है (फोटो: विभा वार्ष्णेय / सीएसई)
करेले की पत्तियां कई तरह के खाने में इस्तेमाल की जा सकती हैं। यहां इन्हें अंडा भुर्जी में मिलाया गया है (फोटो: विभा वार्ष्णेय / सीएसई)

गुणकारी पत्तियां

करेले में तो औषधीय और पौष्टिक गुण होते ही हैं, इसकी लाभकारी पत्तियां भी हमारे भोजन का हिस्सा बन सकती हैं
Published on

मैंने गमले में करेले का बीज लगाया। सोचा था करेला निकलेगा। मेरी गलत बागवानी के कारण और हमारे दिल्लीवाले घर में सूरज की रोशनी ठीक से न आने की वजह से करेले की जगह सिर्फ पत्तियां ही निकलीं। यह देखकर थोड़ा अफसोस तो हुआ लेकिन तसल्ली बस इस बात की थी कि यह पौधा देखने में सुंदर था। पत्तियों से भरी सुंदर बेल और छल्लेदार तंतु, घर की सुंदरता को बढ़ा रही थीं। मेरे एक दोस्त ने इन पत्तियों के पकौड़े बनाने की सलाह दी। इसके बाद मैंने कुछ पत्तियों को साबुत ही चावल और चने के आटे के घोल में डालकर पकौड़े बनाए। ये इतने स्वादिष्ट बने कि अलगे साल मैंने करेले के और बीज बो दिए।

करेला या मोमोर्डिका चेरेंशिया ब्लड शुगर कम कर सकता है, इसलिए डायबिटीज (मधुमेह) के मरीजों को इसका सेवन करने की सलाह दी जाती है। आमतौर पर इसके लिए कच्चे करेले का रस पिया जाता है, पर करेला डायबिटीज की दवाइयों के साथ मिलाकर ब्लड शुगर को खतरनाक स्तर तक कम कर सकता है। गर्भवती महिलाओं को भी करेला न खाने की सलाह दी जाती है क्यांेकि इससे गर्भपात का खतरा होता है। हालांकि ज्यादातर भारतीयों को इसका कड़वा स्वाद पसंद है, कुछ लोगों को समझ ही नहीं आता कि यह सब्जी क्यों खानी चाहिए। वे इसकी कड़वाहट को कम करने के तरीके अपनाते हैं। मसलन, करेले को उबालकर उसकी कड़वाहट को निकालते हैं। या करेले को छील कर उस पर नमक लगाते हैं ताकि उससे पानी निकले और उसके साथ ही उसकी कड़वाहट भी निकल जाए। इसके बाद इसे काटकर या मसाले भरकर बनाया जाता है।

आमतौर पर, इन तरीकों में कच्चे आम या अमचूर का खुलकर इस्तेमाल होता है। करेले के पतले टुकड़ों को तलकर इसके चिप्स बनाए जाते हैं जो चाट मसाला डालकर खाए जाते हैं और इन्हें काफी पसंद किया जाता है। इन तरीकों से करेले की कड़वाहट काफी कम हो जाती है लेकिन यह पूरी तरह खत्म नहीं होती। इससे बेहतर है कि इसकी कड़वाहट को स्वीकार किया जाए और इसका मजा लिया जाए। गर्मियों में बाजार में इसकी बहार रहती है। यह समय करेला खाने के लिए बिलकुल सही है क्योंकि इसके बीज मुलायम होते हैं और इन्हें पकाने से पहले निकालना नहीं पड़ता। करेले की तरह ही इसकी पत्तियां भी कड़वी होती हैं और ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में काफी मददगार होती हैं। चूंकि इसकी पत्तियां करेले जितनी कड़वी नहीं होती, इसलिए जो लोग इसकी सब्जी पसंद नहीं करते, वे भी इसकी पत्तियों का मजा ले सकते हैं। इसकी ताजी और सूखी पत्तियों से बनी चाय भी डायबिटीज के मरीजों के बीच काफी लोकप्रिय है।

बहुउपयोगी सामग्री

औषधीय गुणों से युक्त होने के साथ-साथ इसकी पत्तियां कई तरह से भोजन का हिस्सा बनकर हमारे भोजन का स्वाद बढ़ाती हैं। ओडिशा में इन पत्तियों को भुने हुए प्याज में डाला जाता है और इसमें पके हुए चावल मिलाए जाते हैं। इसकी हल्की कड़वाहट माड़ वाले चावलों के साथ स्वादिष्ट लगती है।

इसी तरह पश्चिम बंगाल के घरों में जब करेला उपलब्ध नहीं होता, तब इन पत्तियों को पारंपरिक पकवान शुक्तो में मिलाया जाता है। कुछ ऐसी विधियां हैं जिनमें पत्तियों को आलू के साथ इस्तेमाल किया जाता है। बहुत की जगह करेले की पत्तियों को परांठे में भरकर भी बनाया जा सकता है। ये चिकन और मछली के पकवानों के साथ भी अच्छी लगती हैं तथा इन्हें सलाद में कच्चा या उबली दाल में डालकर खाया जा सकता है। मुझे यह अंडे के साथ भी पसंद है।

ये पत्तियां पौष्टिक होती हैं तथा खनिजों, जैसे- पोटेशियम, सोडियम, कैल्शियम, जिंक, मैग्नीशियम, आयरन, मैंगनीज और कॉपर तथा विटामिन जैसे कैरोटीन, टोकोफेरोल, फॉलिक एसिड, सायनोकोबेलामिन और एस्कॉर्बिक एसिड से भरपूर होती हैं। इनमें विटामिन बी3, बी6, डी और विटामिन के अंश भी मिलते हैं। करेला कुकुरबिटेसी परिवार से संबंधित है जिसमें खीरा, खरबूजा और सीताफल शामिल हैं। हालांकि मोमोर्डिका की उत्पत्ति का सही-सही पता नहीं है, तथापि ज्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि यह मूलरूप से पूर्वी एशिया, संभवत: पूर्वी भारत या दक्षिणी चीन में पाया जाता था। देश में विभिन्न हिस्सों में मोमोर्डिका की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, तथापि मोमोर्डिका चेरेंशिया पूर्वोत्तर क्षेत्र को छोड़कर पूरे भारत में पाया जाता है।

आयुर्वेदिक ग्रंथों में करेले का विस्तार से उल्लेख मिलता है। स्वास्थ्य को होने वाले लाभों के कारण कई लोग करेलों से बने उत्पादों को पेटेंट कराने को आकर्षित हुए हैं। करेले के डायबिटीज रोधी गुणों के कारण वर्ष 1999 में अनिवासी भारतीय द्वारा संचालित एक कंपनी द्वारा इसके सत्व का पेटेंट कराने का मामला सामने आया था। इसके बाद सरकार की स्वदेशी पौधों के औषधीय गुणों को दस्तावेजों में दर्ज करने और दुनियाभर के पेटेंट कार्यालयों के साथ इसे साझा करने की प्रतिबद्धता मजबूत हुई। इससे पहले अमेरिका ने हल्दी से चोट ठीक करने के गुण को पेटेंट प्रदान किया जो भारत में सदियों से चली आ रही उपचार व्यवस्था का हिस्सा रहा है।

व्यंजन 
अंडे की भुर्जी
सामग्री:
अंडे: 2
प्याज: ½ (छोटे टुकड़ों में कटे हुए)
मक्खन: 1 बड़ा चम्मच
करेले की मुलायम पत्तियां: एक मुट्ठी (बारीक कटी हुई)
विधि: अंडों, प्याज और कटी हुई पत्तियों को एक साथ फेटें और नमक मिलाएं। फ्राइंग पैन में मक्खन डालें। अंडे का मिक्सचर पैन में डालें और धीरे-धीरे पकने दें। सुनहरा पीला होने पर प्लेट में निकालें और इसके हल्के कड़वे स्वाद का मजा लें।

पुस्तक
बिटर मेलन: नेचर्स एंटी-डायबिटिक
लेखक: डब्ल्यू जी गोरेजा प्रकाशक: अमेजिंग हर्ब्स प्रेस मूल्य: 5.99 अमेरिकी डॉलर
यह किताब आपको करेले का दुनियाभर में जड़ी-बूटियों के तौर पर उपयोग के इतिहास के बारे में बताती है और कई बीमारियों और स्थितियों के उपचार में इसके अनुप्रयोग की व्याख्या करती है। इस किताब में करेले के फल, पौधे, जड़ और बीजों के भीतर सक्रिय घटकों के बारे में नवीनतम वैज्ञानिक और चिकित्सा अनुसंधान को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है। साथ ही करेले के कई व्यंजनों की विधियों का भी समावेश किया गया है। जिन्हें दैनिक आहार में पौष्टिक और संभावित चिकित्सीय सब्जी के तौर पर शामिल किया जा सकता है। 
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in