
शहरों की कुछ सब्जी मंडियों में करीब एक फुट लंबे केले के तने बिकते हैं। सफेद तना पत्तों की परतों से बना होता है और देखने में बिल्कुल भी आकर्षक नहीं लगता। फिर भी जो लोग इसके स्वाद और औषधीय गुणों से वाकिक हैं, वे इसकी सब्जी तैयार करने में घंटों मेहनत करने को तैयार रहते हैं।
भारत के ग्रामीण इलाकों में केले किचन गार्डन के सबसे आम पौधों में से एक हैं। इस पौधे का हर हिस्सा खाया जाता है। फलों और फूलों के अलावा इसके तने भी आहार का हिस्सा हैं। एक बार फल की कटाई हो जाने के बाद केले के छोटे पौधों को बढ़ने देने के लिए तने को भी काटना पड़ता है। इसके पोषक तत्वों और औषधीय गुणों की जानकारी के अभाव में अक्सर तना बर्बाद हो जाता है। पश्चिम बंगाल और केरल में यह तना व्यंजन के रूप में बहुत लोकप्रिय है, जहां इसे थोर और वजेथांडू कहा जाता है।
यह बारहमासी पौधा मुसेसी परिवार से संबंधित है। माना जाता है कि यह दुनिया की सबसे पुरानी फसल है। यह विश्व के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। भारत में यह शायद 600 ईसा पूर्व के आसपास मूल दक्षिण-पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र से आया था।
इस पौधे से जब फल की कटाई की जाती है, उसी समय तने एकत्र किए जाते हैं। वैसे तो अच्छी गुणवत्ता और स्वाद के लिए तने को ताजा होना चाहिए। पर दिल्ली जैसे शहरों में यह संभव नहीं है क्योंकि यहां पेड़ इस काम के लिए कम ही लगाए जाते हैं।
2022 में बैंगलोर में रामैया यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंसेज के फूड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के शोधकर्ताओं ने केले के तने के पोषक और औषधीय गुणों पर उपलब्ध साहित्य की समीक्षा की और जर्नल ऑफ न्यूट्रिशनल थेरेप्यूटिक्स में निष्कर्ष प्रकाशित किए। उन्होंने बताया कि इस रेशेदार तने में 46.58 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 7.34 प्रतिशत प्रोटीन है। इसमें टोटल डायटरी फाइबर की मात्रा 61.14 प्रतिशत है। उन्होंने पाया कि तना विटामिन बी कॉम्प्लेक्स से भरपूर होता है। केले के तने पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस और सोडियम जैसे खनिजों से भी भरपूर हैं। यहां तक कि तने में आयरन, मैंगनीज, कॉपर और जिंक जैसे सूक्ष्म खनिज भी मौजूद होते हैं। तने के औषधीय गुणों को देखते हुए इसका उपयोग मधुमेह रोधी, सूजनरोधी, रोगाणुरोधी, कृमिनाशक, घाव भरने वाले, कैंसर रोधी, एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटीयूरोलिथिक गतिविधियों के लिए किया जाता है।
इनमें से मधुमेह पर प्रभाव का अच्छी तरह से अध्ययन किया गया है। कई उष्णकटिबंधीय देशों में केले के तने के रस का पारंपरिक रूप से मधुमेह रोगियों के लिए दवाई के रूप में उपयोग किया जाता रहा है। ऐसा माना जाता है कि तने के अर्क में मौजूद बायोएक्टिव घटक इंसुलिन की मात्रा को बढ़ाते हैं और रक्त शर्करा के स्तर को कम करते हैं। तने के रस में कई तरह के बायोएक्टिव पदार्थ होते हैं, इसलिए यह ग्लाइकोजेनोलिसिस और ग्लूकोनियोजेनेसिस की प्रक्रियाओं को रोकता है, जो शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है।
शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि कई तरह की बीमारियों के इलाज और रोकथाम के लिए नए तरीके खोजने के लिए केले के तने के रस की औषधीय क्षमता पर और अधिक अध्ययन किए जाने चाहिए।
चूंकि तना फाइबर से भरपूर होता है, इसलिए भोजन के लिए इसे तैयार करना मुश्किल है। इसके लिए सबसे पहले तने की सभी बाहरी परतों को हटाकर रेशेदार कोर तक पहुंचा जाता है। इस कोर को पतले टुकड़ों में काटना पड़ता है और इस प्रक्रिया में फाइबर को निकालना पड़ता है। अनुभवी रसोइए इस काम में माहिर होते हैं और हर परत को काटते वक्त फाइबर को उंगली पर लपेट लेते हैं। तने के टुकड़ों को काला पड़ने से बचाने के लिए पानी में रखना पड़ता है।
पश्चिम बंगाल में तने का उपयोग कई लोकप्रिय व्यंजनों में किया जाता है जैसे कि थोरएर घोंटो जो आलू के साथ तैयार किया जाता है। इसका कई अलग-अलग मसालों और ताजे नारियल के साथ स्वाद दिया जाता है। केरल में वजेथांडू पोरियाल में भी मसालों और नारियल का उपयोग किया जाता है लेकिन करी पत्तों के उपयोग से इसका स्वाद अलग हो जाता है। आप तने से पोषक तत्वों से भरपूर सूप भी बना सकते हैं।
अगर व्यावसायिक दृष्टि से देखें तो तने का उपयोग विभिन्न उद्योगों में फाइबर के स्रोत के रूप में किया जाता है। फाइबर की मजबूती के कारण कार्डबोर्ड और खाद्य पैकेजिंग सामग्री में इसका उपयोग होता है। तने का उपयोग अपशिष्ट जल से भारी धातुओं को निकालने के लिए भी किया जाता है। आंतरिक कोर का उपयोग खाद्य सामग्री के रूप में और पेक्टिन निकालने के लिए भी किया जाता है जिसका उपयोग खाद्य उद्योग द्वारा एक एडिक्टिव के रूप में किया जाता है। इसके अलावा तने के पाउडर का उपयोग बेकरी उत्पादों और पेय पदार्थों की गुणवत्ता बढ़ाने में किया जाता है।
तना प्रतिरोधी स्टार्च या अपचनीय स्टार्च से भरा होता है जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि तना खनिज की उच्च मात्रा के कारण स्पोर्ट्स ड्रिंक और पेय पदार्थों के रूप में विकसित करने के लिए उपयुक्त है और इस काम के लिए प्रचलित नारियल के पानी को टक्कर दे सकता है।
सामग्री
केले का तना: 12 इंच का टुकड़ा
आलू (मध्यम आकार के) : 2
नारियल (ताजा, कद्दूकस किया): 1/2 कप
मूंगफली: एक मुट्ठी
दाल बोरी: 1 मुट्ठी
लाल मिर्च: 2
तेज पत्ता: 1
पंच फोरन: 1 छोटी चम्मच
दालचीनी: 1 इंच का टुकड़ा
इलायची (बड़ी): 1
लौंग: 5
जीरा पाउडर: 1 छोटी चम्मच
हल्दी: 1/2 छोटी चम्मच
धनिया पाउडर: 1 छोटी चम्मच
हरी मिर्च (लंबाई में कटी हुई): 2
चीनी: 2 छोटी चम्मच
घी: 1 बड़ी चम्मच
गरम मसाला: 1 छोटी चम्मच
कॉर्न का आटा: 1 छोटी चम्मच
दूध: 1/2 कप
विधि: केले के तने को काटकर अलग कर लें और काला पड़ने से बचाने के लिए पानी में रखें। इसे एक पैन में नमक डालकर कुछ मिनट तक उबालें जब तक कि वह थोड़ा नरम न हो जाए।
फिर पानी निकालकर ठंडा होने के लिए अलग रख दें। आलू को छोटे टुकड़ों में काट लें। एक मोटे तले वाली कढ़ाई में तेल गर्म करें और मूंगफली और बोरी को तल लें। फिर निकालकर अलग रख दें। उसी तेल में सूखी लाल मिर्च, तेज पत्ता, इलायची, लौंग, दालचीनी और पंच फोरन डालें और फिर आलू डालें। अब इसमें नमक डालें और कुछ मिनट तक भूनें।
एक कटोरी में जीरा पाउडर, धनिया पाउडर और हल्दी को थोड़े से पानी के साथ मिलाएं और आलू के ऊपर डालें। अब नारियल डालें और अच्छी तरह मिलाएं। इसके बाद अदरक का पेस्ट डालें और कुछ और मिनट तक पकाएं। केले के तने से पानी निचोड़ें और उन्हें थोड़ा मसल लें। इसे पैन में डालें।
सब कुछ अच्छी तरह मिलाएं और जरूरत पड़ने पर थोड़ा पानी डालें। मसालों को सब्जियों में अच्छी तरह से समा जाने के लिए लगभग 15 मिनट तक पकाएं। जब सब कुछ अच्छी तरह से पक जाए तो कटी हुई हरी मिर्च और चीनी डालें।
मकई आटे को दूध के साथ मिलाएं और सब्जियों के ऊपर डालें। अंत में घी और गरम मसाला डालें और चावल के साथ खाने से पहले कुछ देर के लिए कढ़ाई को ढक दें।