करिश्मा कुंदरू का

छोटे खीरे जैसी दिखने वाली यह सब्जी न केवल पौष्टिक है, बल्कि इसे उगाना भी आसान है
कुंदरू का स्वादिष्ट अचार बनाया जा सकता है। साथ ही छौंककर साइड डिश के रूप में भी खाया जा सकता है (फोटो: विभा वार्ष्णेय / सीएसई)
कुंदरू का स्वादिष्ट अचार बनाया जा सकता है। साथ ही छौंककर साइड डिश के रूप में भी खाया जा सकता है (फोटो: विभा वार्ष्णेय / सीएसई)
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उंगली के आकार की, खीरे जैसी दिखने वाली सब्जी कुंदरू भारतीय रसोई में कई रूपों में विद्यमान है। आंध्र प्रदेश में इसे डोंडाकाया के नाम से जाना जाता है और इसका इस्तेमाल चटपटा अचार बनाने में होता है। केरल में यह कोवयक्का के नाम से मशहूर है। यहां इसे नारियल के जायके वाले पोरियल को बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। महाराष्ट्र में टेंडली के नाम से मशहूर कुंदरू को छौंक कर सब्जी के रूप में खाया जाता है।

वैसे तो कुंदरू मेरे घर में भी काफी बनता है पर जब मैंने इस साल नबंवर में गुरुग्राम में लगे सरस मेले में इसे तीखे अचार के रूप में खाया तो यह मुझे बहुत ही अच्छा लगा। मेले में महिला उद्यमी सुजिनी अदुसुमिल्ली के स्टॉल पर यह बहुत से उत्पादों, जैसे फ्राइड स्नैक्स, स्पाइस मिक्सचर व शाकाहारी व मांसाहारी अचारों में से एक था। विजयवाड़ा में उनकी श्री साईं पिकल्स एंड होम फूड नाम से एक छोटी से फैक्ट्री है। यहां बने उत्पाद कई देशों में निर्यात होते हैं। सुजिनी के पति सनत कुमार ने 600 ग्राम अचार की आखिरी बोतल मुझे 300 रुपए में देते हुए बताया कि डोंडाकाया अचार की खूबी बिक्री हुई है। ये अचार कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसों में भी निर्यात होता है। सुजिनी ने यह काम करीब तीन साल पहले शुरू किया था। वह अपनी नानी की रेसिपी का इस्तेमाल कर ये सब सामान बनाती हैं।

कुंदरू कोकसिनिया जीनस का सब्जी है जिसमें 25 प्रजातियां हैं। इनमें कोकसिनिया ग्रांडिस ही उष्णकटिबंधीय अफ्रीका के बाहर पाया जाता है। कोकसिनिया लैटिन भाषा के शब्द ‘कोसिनस’ से बना है जिसका अर्थ होता है लाल। इस बेल के फल परिपक्व होने पर लाल हो जाते हैं। ये बेल सेनेगल पूर्व से सोमानिया तक और दक्षिण से तंजानिया, सउदी अरब, यमन और भारत में जंगली पौधे की तरह उगती है। अफ्रीका के घास के मैदानों और सूखे वनों में यह प्राकृतिक रूप से उगती है, वहीं उष्णकटिबंधीय एशिया में यह सूखे पर्णपाती वनों और रेत में फलती-फूलती है। इसका फल चिकना, हरा, धारीदार और अंडाकार होता है। इसकी मुलायम पत्तियों और शाखाओं को सब्जी के तौर पर भी खाया जाता है। पोषण से भरपूर इसका फल प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर और विटामिन ए व बी का अच्छा स्रोत भी है।

कमाल का अर्क

पारंपरिक चिकित्या पद्धति जैसे आयुर्वेद में इस पौधे की पत्तियों का प्रयोग मधुमेह को नियंत्रित करने में किया जाता है। विभिन्न बीमारियों जैसे पित्ताशय के विकारों, भूख की कमी, खांसी, मधुमेह के घाव भरने और यकृत के विकारों को दूर करने के लिए घरेलू उपचार के रूप में भी इसकी पत्तियां इस्तेमाल की जाती हैं। पत्तियों के अर्क की मदद से कीड़ों के काटने से होने वाली खुजली और सूजन को भी कम किया जाता है।

अध्ययनों से यह भी पता चला है कि पत्तियां का अर्क काला अजार बीमारी को फैलाने वाले परजीवी लीशमैनिया डोनोवानी के विकास को नियंत्रित कर सकता है। शोधकर्ताओं का सुझाव है कि कोकिनिया पत्ती का अर्क घाव भरने की प्रक्रिया को तेज करने वाला एक संभावित जड़ी बूटी हो सकता है और इसे त्वचा के सौंदर्य प्रसाधनों के एक हर्बल घटक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका फल कैंसर के उपचार में भी उपयोगी पाया गया है। फलों में पाया जाने वाला रसायन कुकुरबिटेसिन बी स्तन कैंसर कोशिकाओं को फैलने से रोकता है।

इस सब्जी की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे उगाना बेहद आसान है। इसकी बेलें 4-5 वर्षों तक फल देती रहती हैं और रोपण के लगभग 70 दिनों बाद भी सब्जी प्राप्त की जा सकती है। दक्षिण और मध्य भारत में इसमें सालभर फूल आते हैं जबकि उत्तर भारत में नवंबर में तापमान कम होने पर फल आने बंद हो जाते हैं। क्योंकि यह बहुत आसानी से उगती है इसलिए इस बेल को अक्सर गरीबों की सब्जी कहा जाता है। ये बेलें तेजी से फलती हैं जिससे कई बार कुंदरू इतने अधिक हो जाते हैं कि वे जानवरों को खिला दिए जाते हैं। उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में कुंदरू के फल कभी-कभी जंगलों से भी एकत्र किए जाते हैं। पूर्वी भारत में यह जंगल से इकट्ठा करने के साथ-साथ घरेलू बागानों में भी उगाई जाती है।

किसान आमतौर पर पारंपरिक बीजों से ही इसकी खेती करते हैं और बहुत कम व्यावसायिक किस्में उपलब्ध हैं। भुवनेश्वर स्थिति केंद्रीय बागवानी प्रयोग स्टेशन जो बेंगलुरू में आईआईएचआर का एक क्षेत्रीय रिसर्च स्टेशन है, में इसके जर्मप्लाज्म संवर्धन, मूल्यांकन और लक्षण वर्णन पर व्यवस्थित कार्य किया जा रहा है। संगठन ने आईएनजीआर 09126 को एनबीपीजीआर में एक अद्वितीय जर्मप्लाज्म के रूप में पंजीकृत भी किया है।

संस्थान ने दो नई किस्में भी जारी की हैं। इनमें एक है अर्का नीलाचल खुन्खी जिसके फल बड़े और नरम होते हैं और साथ ही इनका उत्पादन भी ज्यादा होता है। ये फल सलाद के लिए भी उपयुक्त है। दूसरी किस्म अर्का नीलाचल सबुजा है। इसकी उपज भी अधिक है और यह दबने से खराब भी नहीं होती।

कुंदरू फल का स्वाद थोड़ा खट्टा होता है। अपरिपक्व फलों को कुरकुरापन प्रदान करने के लिए सलाद में मिलाया जा सकता है। छोटे फलों का स्वाद बेहतर होता है क्योंकि परिपक्व होने पर गूदा चिपचिपा हो जाता है क्योंकि परिपक्व फल लाल होते हैं, इसलिए आसानी से कच्चे फलों से अलग किए जा सकते हैं। आमतौर पर, फल जितना छोटा होगा उतना अच्छा होगा। मैंने डोंडाकाया अचार की रेसिपी को दोबारा बनाने के लिए छोटे फल चुने और उसी दिन गर्म चावल के साथ मसालेदार अचार का स्वाद लिया।

यदि आप अचार का सेवन नहीं करना चाहते तो ताजी सब्जी को छौंक कर साइड डिश बनाई जा सकती है। इसके लिए कढ़ाई में एक बड़ा चम्मच तेल लीजिए। इसमें जीरा, हींग, हल्दी, धनियां पाउडर, मिर्च, नमक और कटी हुई सब्जी डाल दीजिए। इसे नरम होने तक पकने दीजिए। आमतौर पर हम घर में सब्जियों का सेवन इसी तरह करते हैं। आप डिश को स्वादिष्ट बनाने के लिए सब्जी में कटी प्याज और कसा हुआ नारियल भी मिला सकते हैं।

व्यंजन: कुंदरू का अचार

सामग्री
  • कुंदरू: 100 ग्राम
  • सरसों के बीज: 1 चम्मच
  • मेथी दाना: 1/2 चम्मच
  • लाल मिर्च पाउडर: 2 से 3 चम्मच
  • हल्दी पाउडर: 1/2 चम्मच
  • तेल: 6 बड़े चम्मच
  • हींग: 1/4 छोटी चम्मच
  • करी पत्ता: 4 से 6
  • नमक : स्वादानुसार
विधि : कुंदरू को अच्छे से धोकर सुखा लें। इसे लंबाई में काट लें। अब एक कढ़ाई में 1 बड़ा चम्मच तेल गर्म करें और इसमें कटे हुए कुंदरू डालें। इन्हें थोड़ा नरम होने तक पकाते रहें। भुनने पर इन्हें एक प्लेट में निकालकर रख दें। इसके बाद कढ़ाई में बचा हुआ तेल गर्म करें और उसमें मेथी दाना, राई, हींग और हल्दी के साथ करी पत्ता डालकर चटकने तक पकाएं। तेल को थोड़ा ठंडा होने दें। इसमें मिर्च पाउडर और नमक डाल दें। इसमें आप अपनी सहनशीलता के अनुसार मिर्च मिला सकते हैं। अब इसमें तले हुए कुंदरू को अच्छे से मिला दें। अचार तैयार है। इसे किसी भी भोजन के साथ खा सकते हैं।


पुस्तक
फॉरगॉटन फूड्स: मेमोरीज
एंड रेसीपीज फ्रॉम मुस्लिम
साउथ एशिया
लेखक: तराना हुसैन खान, क्लेयर चेम्बर्स, सियोभान लैम्बर्ट-हर्ले
इस किताब में शामिल पाक विविधता यह साबित करती है कि मुस्लिम रसोई ने कितनी गहराई से आहार प्रथाओं को नया रूप दिया है और दक्षिण एशियाई भोजन को समृद्ध किया है।

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