आहार संस्कृति: काली गाजर के गुणों के बारे में जानें और बनाएं हलवा

पोषक तत्वों से भरपूर काली गाजर धीरे-धीरे खेतों और बाजारों से गायब होती जा रही है
काली गाजर का हलवा कई पोषक तत्वों से भरपूर होता है (फोटो: विकास चौधरी / सीएसई)
काली गाजर का हलवा कई पोषक तत्वों से भरपूर होता है (फोटो: विकास चौधरी / सीएसई)
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आपने अपने आसपास के बाजारों में अधिकतर लाल या नारंगी रंग की गाजर बिकती देखी होगी। लेकिन क्या आपने काले रंग की गाजर देखी है? काली गाजर का वैज्ञानिक नाम डॉकस कैरोटा है। यह मुख्यतः भारत सहित पूर्वी एशिया महाद्वीप के देशों में पाई/उगाई जाती है। हालांकि पिछले कुछ दशकों से लाल गाजर की लोकप्रियता ने इसके अस्तित्व के लिए खतरा उत्पन्न कर दिया है।

मुझे याद है कि बचपन में जब हम ठंड के मौसम में सब्जी बाजार जाते थे, तो लाल गाजर कम ही दिखती थी। उस समय हमारे घर पर अमूमन काली गाजर का हलवा ही बनता था। हम लोग इसे कच्चा भी खाते थे। परंतु पिछले कई वर्षों से यह बाजार से लगभग गायब ही हो गई है। हालांकि इस वर्ष जब मुझे लखनऊ जाने का मौका मिला तो वहां एक मिठाई की दुकान पर मैंने इसका हलवा देखा तो बचपन की सारी यादें ताजा हो गईं और मैं उसे खाए बिना नहीं रह पाया।

काली गाजर मुख्यतः गहरे बैंगनी (पर्पल) रंग की होती है। इसे काटने पर इसका अंतर्भाग हल्का पर्पल अथवा पीले रंग का होता है। इसका स्वाद अन्य गाजरों की तुलना में अधिक मीठा होता है। यही वजह है कि प्राचीन काल में इसके रस का इस्तेमाल शर्बत और हलवा बनाने में किया जाता था।

काली गाजर के बीजों को सितंबर-अक्टूबर के महीने में बोया जाता है और इसकी फसल लगभग तीन महीने में तैयार हो जाती है। वर्ष 2016 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय ने काली गाजर की एक नई प्रजाति विकसित की, जो पारंपरिक प्रजाति से लंबी है और एक एकड़ खेत में 196 किलो तक उपज दे सकती है। इसका नाम “पंजाब ब्लैक ब्यूटी” है।

काली गाजर का उत्पत्ति स्थल पूर्वी एशिया का अफगानिस्तान माना जाता है। वर्ल्ड कैरेट म्यूजियम के मुताबिक, काली गाजर को सर्वप्रथम नौवीं शताब्दी में मध्य एशिया में उगाया गया था। दसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में जब अरब का विस्तार हो रहा था, तब इसके बीज को अंडलुसिया (वर्तमान में स्पेन) लाया गया। वहीं से यह उत्तरी यूरोप के अन्य क्षेत्रों में फैली। ऐसी मान्यता है कि गाजर की सर्वाधिक लोकप्रिय प्रजाति लाल और नारंगी गाजर की उत्पत्ति दरअसल काली और सफेद गाजर के म्यूटेशन से हुई है। वर्तमान में यह मुख्य रूप से अफगानिस्तान सहित भारत, पाकिस्तान, ईरान और तुरकीये में उगाई जाती है।

गाजर की इस प्रजाति के संरक्षण के लिए दक्षिणी स्पेन के मलागा में हर साल “द कैरट मोरा ऑफ क्यूवस बेजास” नामक महोत्सव आयोजित किया जाता है, जिससे न सिर्फ वहां के लोगों, बल्कि पर्यटकों में भी इसके प्रति आकर्षण पैदा किया जा सके। यह आयोजन हर साल दिसंबर के पहले रविवार को होता है। वर्ष 2006 से शुरू किए गए इस महोत्सव में काली गाजर और उससे बने खाद्य पदार्थों और औषधियों की बिक्री की जाती है।

इसका गहरा रंग इसमें पाए जाने वाले एक रासायनिक तत्व एंथोसाइनिन की वजह से होता है। यही वजह है कि इससे बनने वाले चूर्ण का उपयोग भोजन में खाद्य रंगों के तौर पर किया जाता है। इसके अलावा इसके चूर्ण का उपयोग खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों को संतुलित करने के लिए भी किया जाता है, क्योंकि काली गाजर में प्रचुर मात्रा में विटामिन सी और विटामिन ई मिलता है।

औषधीय गुण

काली गाजर में फाइबर, पोटैशियम, विटामिन-ए, विटामिन-सी, मैंगनीज, विटामिन-बी जैसे कई पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसका नियमित सेवन हमें नाना प्रकार की बीमारियों से बचाकर रखता है। साथ ही इसका उपयोग एक औषधि के तौर पर करने से यह कई रोगों के उपचार में भी कारगर साबित हुआ है। समय-समय पर काली गाजर के औषधीय गुणों को उद्घाटित करने के लिए कई शोध भी होते रहे हैं।

वर्ष 2004 में मेरी एन लिला द्वारा किए गए एक अध्ययन “एंथोसायनिंस एंड ह्यूमन हेल्थ: एन इन विट्रो इन्वेस्टिगेटिव अप्रोच” बताता है कि काली गाजर में पाया जाने वाला एंथोसायनिन शरीर में कैंसर कोशिका बनने की गति को धीमा कर देता है। यह अध्ययन जर्नल ऑफ बायोमेडिसिन एंड बायोटेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ था। वर्ष 1999 में ऑस्ट्रेलियन एंड न्यूजीलैंड जर्नल ऑफ ओप्थलमोलॉजी में प्रकाशित एक शोध, जिसका शीर्षक“ कैरट्स, कैरोटीन एंड सीइंग इन द डार्क” है, के परिणाम बताते हैं कि इसमें पाया जाने वाला बीटा कैरोटीन आंखों की रोशनी बढ़ाता है।

फ्रांटियर्स इन न्यूट्रिशन नामक जर्नल में वर्ष 2017 में प्रकाशित एक अध्ययन “मैनेजिंग रयुमाटॉइड आर्थराइटिस विद डायटरी इंटरवेंशंस” के अनुसार, काली गाजर में पाए जाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट्स और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण मनुष्यों में आर्थराइटिस की समस्या पैदा नहीं होने देता। वहीं जर्नल ऑफ मेडिसिनल केमिस्ट्री में वर्ष 2018 में प्रकाशित एक शोध “एंटी-डायबेटिक फेनोलिक काम्पाउंड्स ऑफ ब्लैक कैरेट” के अनुसार, इसका सेवन रक्त में शर्करा की मात्रा को नियंत्रित रखता है।

व्यंजन : काली गाजर का हलवा

सामग्री
  • काली गाजर: ½ किलो
  • चीनी: 2 कप
  • फुल क्रीम दूध: 2 कप
  • देसी घी: 4 बड़ी चम्मच
  • इलाइची पाउडर: ½ छोटी चम्मच
  • कंडेंस्ड मिल्क/मावा: 150 ग्राम
  • काजू, बादाम: 50 ग्राम
विधि : गाजर को अच्छी तरह से धोकर, छीलकर कद्दूकस कर लें। अब एक कड़ाही में घी डालकर गरम कर लें। अब इसमें कद्दूकस किया हुआ गाजर और दूध डालकर गाजर के नरम होने तक पकाएं। इसके बाद मिश्रण में चीनी और मावा डालकर अच्छे से पकाएं। जब कड़ाही के किनारे घी छोड़ने लगे, तो चूल्हा बंद करके हलवा को थोड़ा ठंडा होने के लिए रख दें। लीजिए तैयार है काली गाजर का स्वादिष्ट हलवा। इसे काजू और बादाम से सजाकर परोसें।

यह पुस्तक हमें दुनियाभर से विभिन्न प्रकार के लुप्तप्राय खाद्य पदार्थों के ऐसे दौर में ले जाती है,
जिसमें न सिर्फ प्रत्येक भोजन के इतिहास की जानकारी मिलती है,
बल्कि हमारे पूर्वजों और उन लोगों की कहानियां भी बताती है जो इन खाद्य पदार्थों को विलुप्त होने से बचाने की कोशिश कर रहे हैं।

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