रूस ने 17 जुलाई को ब्लैक सी ग्रेन इनिशिएटिव से पीछे हटने की घोषणा कर दी। पिछले साल यूक्रेन पर रूस के हमले और काला सागर में मालवाहक जहाजों का रास्ता रोकने के बाद जुलाई में संयुक्त राष्ट्र ने यूक्रेन से अनाज की आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए यह इनिशिएटिव अथवा समझौता कराया था।
दरअसल, रूस-यूक्रेन युद्ध के तुरंत बाद बहुत से गरीब और विकासशील देशों में अनाज का भाव बढ़ने से खाद्य असुरक्षा बढ़ गई थी। यूक्रेन और रूस दुनिया के सबसे बड़े अनाज और सूरजमुखी तेल के निर्यातक हैं। एक तिहाई अफ्रीकी देश अपनी जरूरत का आधा गेहूं यूक्रेन से खरीदते हैं। करीब 33.5 मिलियन टन कृषि उत्पादों का व्यापार ब्लैक सी इनिशिटिव के माध्यम से होता है। रूस के इस इनिशिएटिव से पीछे हटने से उन देशों में खाद्य आपूर्ति बाधित हो गई है, जहां अनाज की सख्त जरूरत है।
रूस ने चेतावनी दी है कि काला सागर में यूक्रेन के बंदरगाहों की ओर जाने वाले सभी जहाजों को संभावित सैन्य जहाज माना जाएगा। इसका अर्थ है कि उन पर हमला किया जाएगा। इससे न केवल आयात पर निर्भर देशों को नुकसान हुआ है, बल्कि यूक्रेन भी गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहा है।
इनिशिएटिव से बाहर निकलने के तुरंत बाद रूस ने यूक्रेन के कृषि के बुनियादी ढांचे पर चुन-चुनकर हमले किए। इन हमलों ने दुनिया को चौंका दिया। रूस ने ओडेसा, चोर्नोमोर्स्क और मायकोलाइव बंदरगाह शहरों पर बमबारी की। इन स्थानों से ही आमतौर पर अनाज निर्यात किया जाता है। ये सभी बंदरशाह शहर इनिशिएटिव का हिस्सा थे।
यूक्रेन सरकार के अनुसार, हमलों से 60,000 टन अनाज के साथ खाद्य भंडारण के कई बुनियादी ढांचों को तहस-नहस कर दिया गया। आक्रमण के चलते यूक्रेन पहले से ही 40 प्रतिशत कम अनाज पैदा कर पा रहा है। उसका विशाल कृषि रूसी कब्जे में है और कृषि गतिविधियां ठप पड़ी हैं। रूस ने खेतों में बारूद बिछा दिया है और लगातार दुकानों व खाद्य भंडारों को नष्ट कर रहा है।
रूस के इन हमलों ने यूक्रेनियों को ‘होलोडोमोर’ अथवा 1932-33 में पड़े भीषण अकाल की याद दिला दी है। उस समय यह देश रूस का हिस्सा था। 1929 में जोसफ स्टालिन ने विशेष रूप से यूक्रेन को निशाने पर लेते हुए खेती के सामूहिकीकरण की शुरुआत की थी। इसके खेत और उपज जबरन ले लिए गए, जिससे स्थानीय उपभोग के लिए कुछ नहीं बचा। बहुत से अध्ययन बताते हैं कि इसके बाद करीब चार मिलियन यूक्रेनी भूख से मर गए।
‘होलोडोमोर’ भूख अथवा भोजन को संघर्ष के दौरान रणनीति के रूप में अपनाने का स्पष्ट उदाहरण है। यह रणनीति उतनी ही पुरानी है जितने संघर्ष। अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन द्वारा हस्ताक्षरित युद्ध आचरण के लिए अमेरिका के पहले नियम 1863 के लीबर कोड में कहा गया है कि आत्मसमर्पण के लिए सशस्त्र अथवा निहत्थे दुश्मन को भूखा मारना न्यायोचित है। यह लीबर कोड अब भी इस प्रकार के नियमों का आधार है। इसी तरह पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर कह चुके हैं, “जो खाद्य आपूर्ति को नियंत्रित करता है, वह लोगों को नियंत्रित करता है।” दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, एडॉल्फ हिटलर के “हंगर प्लान” ने चार मिलियन से अधिक सोवियत लोगों को मार डाला था। जर्मनी के सैनिकों और नागरिकों के लिए उनसे भोजन छीन लिया गया था।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) ने मई 2018 में संकल्प 2417 को अपनाया, जिसमें पहली बार “भोजन को युद्ध का हथियार” मानने की आलोचना की गई और इस पर प्रतिबंध लगाया गया।
अब सवाल है कि क्या रूस भोजन को हथियार के रूप में उपयोग कर रहा है? ऐसा माना जा रहा है कि रूस कम से कम यूक्रेन के लिए यह हथकंडा अपना रहा है। रूस का यह कदम नाजुक केंद्रीकृत वैश्विक खाद्य आपूर्ति प्रणाली (जहां कुछ सबसे अधिक भोजन का उत्पादन करते हैं और कई देश उन पर निर्भर हैं) का फायदा उठाने की रणनीति प्रतीत होता है।
रूस के आक्रमण के बाद कई यूएनएससी बैठकों में सदस्य देशों ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में जानबूझकर “युद्ध के हथियार के रूप में भोजन” पर रूसी रणनीति पर विचार-विमर्श किया। अनाज सौदे को जारी रखने के लिए रूस ने रूसी कृषि बैंक पर प्रतिबंध हटाने और कृषि मशीनरी व उसके पुर्जों के निर्यात के लिए आपूर्ति लाइनों को फिर से खोलने की मांग की।
दुनियाभर के नेताओं ने समझौते से रूस से पीछे हटने और बमबारी को यूक्रेन के खाद्यान्न पर निर्भर सभी लोगों पर हमला बताया। शायद यह खाद्य हथियार का एक तरीका है जो न केवल स्थानीय लोगों को भूखा मारता है, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को भी नष्ट कर देता है।