झारखंड के गरीबों को नहीं मिलता पूरा राशन, सुनने वाला कोई नहीं

भोजन का अधिकार अभियान से जुड़े सेराज कहते हैं कि कम राशन देने के नाम पर झारखंड में एक बड़ा घोटाला चल रहा है
File Photo: ARCHI RASTOGI
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झारखंड में भूख से होने वाली मौतों का एक बड़ा कारण सरकारी राशन न मिलना बताया जाता है। कभी अंगूठे का पीओएस मशीन (प्वाइंट ऑफ सेल) से मिलान नहीं होना, कभी राशन कार्ड का आधार आधारित होना, तो कभी इंटरनेट के नेटवर्क का नहीं होना। ये वो बधाएं हैं, जिनके कारण राशन नहीं मिल पाता। लेकिन जिन लोगों को राशन मिल भी रहा है तो पूरा नहीं मिल रहा है। जानकार इसे एक बड़ा घोटाला बता रहे हैं। 

राजधानी रांची से करीबन 150 किलोमीटर दूर गुमला जिले के चैनपुर ब्लॉक तो बिना कटौती के राशन मिल रहा है, लेकिन इसी प्रखंड के बेनडोरा पंचायत के ग्रामीणों तक पहुंचते पहुंचते प्रति व्यक्ति एक किलो या उससे अधिक की कटौती हो जाती है। 

पंचायत की एक महिला कार्डधारक ने नाम नहीं लिखने की शर्त पर डाउन टू अर्थ को बताया, “हम आपको कैसे बताएं। हमको डर लगता है, हमारे परिवार में चार जन हैं। पांच किलो प्रति व्यक्ति के हिसाब से 20 किलो राशन नहीं मिलता है। कभी 16, कभी 15 किलो मिलता है। शिकायत करते हैं, लेकिन सब मिले रहते है। शुरू से ही यही चल रहा है यहां।”

झारखंड के खाद्य सुरक्षा वितरण एवं उपभोक्ता मामले विभाग के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 59,33,923 राशन कार्डधारक हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के मुताबिक प्राथमिकता वाले राशन गुलाबी कार्डधारक परिवार को प्रति व्यक्ति पांच किलो ग्राम अनाज एक रुपये दर से प्रति माह, तो वहीं अन्यतोदय अन्न योजना (एएवाई) के तहत शामिल परिवार को 35 किलोग्राम अनाज प्रति माह पाने का कानूनी अधिकार है।

भोजन के अधिकार अभियान की ओर से रांची में आयोजित तीन दिवसीय (11-13 मार्च, 2022) सेमिनार में विभिन्न जिलों से आए वक्ताओं ने राज्य में हो रहे राशन कटौती की समस्याओं पर भी चिंता जाहिर की।

अभियान से जुड़े, सेराज दत्ता ने डाउन टू अर्थ से बात करते हुए कहा, “राशन कटौती बड़ी समस्या है। डिपोधारक निर्धारित अनाज में कटौती करके कार्डधारक को देते हैं। ये बात हमलोगों ने कई बार राज्य के संबंधित मंत्री, सचिव और पदाधिकारी के संज्ञान में लाई, लेकिन कुछ ठोस परिणाम नहीं दिखा।”

सेराज, राशन कटौती को घोटाला मानते हैं, “आपको इसे घोटाले के तौर पर देखना होगा और इस घटोले में डीलर (डिपोधारक) एक चेहरा है, जबकि उसके पीछे जिला स्तर के अधिकारी होते हैं। आप ऐसे भी समझ सकते हैं कि झारखंड 59 लाख कार्डधारी हैं। अब अगर प्रति कार्ड एक किलो ग्राम ही कटौती लें तो हर महीने 59 लाख किलो अनाज का घोटाला हो रहा है, लेकिन घोटला इससे कई गुना ज्यादा का है।”

इनका कहना है कि डीलर की राशन वितरण का काम गांव में महिला समूह और पंचायत को दिया जाए। छत्तीसगढ़ में यह प्रयोग सार्थक साबित हुआ और वहां राशन कटौती पर बहुत हद तक लगाम भी लगी है। 

ग्रामसभा सशक्तिकरण पर काम करने वाले रूपेश साहू का कहना है कि उन्हें ग्रामसभाओं की बैठकों राशन कटौती की शिकायत आदिवासी इलाकों में ज्यादा मिलती है. और खासकर कोल्हान के क्षेत्र में।

वेस्ट सिंहभूम जिले कोल्हान में ही आता है। जिले के मनोहरपुर प्रखंड के मेर्मेंडा पंचायत में राशन कटौती की शिकायत भी और जिलों के तरह ही है।

मेर्मेंडा के स्थानीय डीलर सुलेमान जोजो कटौती की बात तो स्वीकार करते हैं लेकिन वो इसके लिए ब्लॉक से होने वाले आवंटन को जिम्मेदार ठहराते हैं। वह कहते हैं, “ ब्लॉक से छह महीने से काट करके राशन आ रहा है। 27 क्विंटल की जगह हमें फरवरी में 19 क्विंटल ही मिला। जब तक पूरा राशन मिल रहा था, तब तक मैं आगे भी पूरा राशन देता था।”

मेर्मेंडा की मुखिया शांति भी इसके लिए डीलर को जिम्मेदार नहीं मानती। वो कहती हैं, “मैंने ब्लॉक में भी शिकायत की है. क्यों आवंटन कम करके दिया जा रहा है। ”

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