हिमांग: स्वाद और सेहत से भरपूर

यह फल गुर्दे की बीमारियों और मूत्र पथरी के उपचार के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है
हिमांग से बनी चाय (फोटो: विभा वार्ष्णेय / सीएसई)
हिमांग से बनी चाय (फोटो: विभा वार्ष्णेय / सीएसई)
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हिमांग भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में मणिपुर का एक शानदार मसाला है। मणिपुर दुनिया के सबसे जैव विविधता वाले क्षेत्रों (इंडो-बर्मा) का एक हिस्सा है और उन पौधों से भरा हुआ है, जिन्हें राज्य के लोग सदियों से भोजन और दवा के रूप में इस्तेमाल करते आ रहे हैं। हिमांग या रस चिनेंसिस ऐसा ही एक पौधा है।

सितंबर महीने में हिमांग के पेड़ फूलों के सुंदर गुच्छों से लद जाते है। नवंबर-दिसंबर तक इसमें छोटे-छोटे फल आ जाते हैं, जो गोलाकार और गुच्छों में देखे जा सकते हैं। इन फलों में मखमली बाल होते हैं और ऐसा लगता है जैसे वे मोम से ढके हों। गहरे लाल रंग के ये फल पॉलीफेनोल्स, फ्लेवोनोइड्स और एंटीऑक्सिडेंट से भरपूर होते हैं। इसमें खट्टापन भी होता है जो इसे रसोई के लिए उपयोगी बनाता है।

मणिपुर के पारंपरिक इलाज करने वाले, जिन्हें माईबास और माईबिस के नाम से जाना जाता है, डायरिया और पेचिश जैसी सामान्य गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं के इलाज के लिए इन फलों के इस्तेमाल की सलाह देते हैं। पानी में भीगे हुए फल अपच और पेट के अल्सर के लिए भी कारगर बताए जाते हैं।

यह फल गुर्दे की बीमारियों और मूत्र पथरी के उपचार के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। अक्टूबर 2021 में जर्नल ऑफ हर्बल मेडिसिन में प्रकाशित शोध में इस फल के इस्तेमाल के समर्थन में लिखा गया है। शोधकर्ताओं ने पाया कि इस फल का अर्क इन-विट्रो कैल्शियम ऑक्सालेट क्रिस्टल के निर्माण को रोकता है। इसके अर्क ने कैल्शियम ऑक्सालेट क्रिस्टल के न्यूक्लियेशन और एकत्रीकरण को रोकने का काम किया और क्रिस्टल घनत्व को कम किया। यह अर्क प्रयोगात्मक रूप से मूत्र पथरी बनने को भी रोक सकता है और ऐसे पारंपरिक दावे की पुष्टि करता है।

हाल के वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि हिमांग में एंटीवायरल, जीवाणुरोधी, एंटीकैंसर, हेपेटोप्रोटेक्टिव, एंटीडायरेहियल और एंटीऑक्सीडेंट गुण भी हैं। पेड़ के तने से निकाले गए कंपाउंड इन विट्रो में एचआईवी-1 गतिविधि को महत्वपूर्ण रूप से थामने का काम कर सकते हैं। 37 शोध लेखों के रिव्यू से पता चलता है कि इस पौधे के अर्क में हर्पीज सिम्प्लेक्स वायरस गतिविधि हो सकती है, जो एचआईवी-1 गतिविधि को दबा सकता है, रक्त शर्करा के पोस्टप्रैन्डियल वृद्धि को कम कर सकता है, हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया को रोक सकता है, दस्त को कम कर सकता है और अनुवांशिक तत्वों की रक्षा कर सकता है। यह रिव्यू अगस्त 2018 में यूरोपियन जर्नल ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन में प्रकाशित हुआ था। पौधे में ऐसे कंपाउंड भी होते हैं जो दांतों के लिए अच्छे होते हैं क्योंकि वे दांतों के इनामेल के क्षरण को रोकते हैं।

ताजा हिमांग फलों को आमतौर पर सुखाया जाता है और भविष्य में चाय या खटाई के रूप में उपयोग के लिए रख लिया जाता है। घर पर इसे साधारण नमक के साथ पानी में भिगोया जाता है और पाचन में सहायता के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसे चाय बनाने के लिए गर्म पानी में डाल दिया जाता है (देखें रेसिपी)। पौष्टिक और पाचक कैंडी बनाने के लिए इस फल को गुड़ के साथ भी मिलाया जाता है।

फल का एक लंबा पाक इतिहास है और कहा जाता है कि इसका उपयोग रोम और मध्य पूर्व में किया जाता था। मूल अमेरिकियों ने इसे धूम्रपान में इस्तेमाल किया। यह मसाला बहुमुखी है और मांस, सब्जियों और यहां तक कि मीठा व्यंजन बनाने में भी इसका इस्तेमाल होता है।

इसका खट्टा स्वाद कार्बनिक अम्ल जैसे मैलिक एसिड, साइट्रिक एसिड और एस्कॉर्बिक एसिड के कारण होता है। पॉलीफेनोल्स, फ्लेवोनोइड्स और एंटीऑक्सिडेंट की मौजूदगी इस फल को एक आकर्षक खाद्य सामग्री बनाती है। इसके बीज से बने तेल में फायदेमंद अन्सेचुरेटेड फैटी एसिड और फाइटोकेमिकल्स भी होते हैं। तेल में प्रचुर मात्रा में अन्सेचुरेटेड फैटी एसिड जैसे लिनोलिक एसिड और ओलिक एसिड के साथ-साथ टोकोफेरोल/टोकोट्रियनॉल, फाइटोस्टेरॉल और पॉलीफेनोल की उच्च मात्रा होती है। शोधकर्ताओं ने मार्च 2019 में जर्नल इंडस्ट्रियल क्रॉप्स एंड प्रोडक्ट में लिखा भी कि यह तेल भोजन और पौष्टिक सप्लीमेंट इंडस्ट्रीज के लिए एक अच्छा कच्चा माल हो सकता है।

इस पौधे के अन्य भागों का भी औषधीय उपयोग हैं। इसकी पत्तियां, जड़, तना, छाल, फल आदि का दस्त, पेचिश, मलाशय और आंतों के कैंसर, मधुमेह, सेप्सिस, ओरल रोग और सूजन जैसी बीमारियों पर निवारक और चिकित्सीय प्रभाव पड़ता है।

मणिपुर में इसकी पत्तियों का उपयोग ‘चिंघी’ नाम के हर्बल शैम्पू तैयार करने के लिए किया जाता है। चावल के पानी में प्राकृतिक जड़ी बूटियों और हिमांग के फलों और पत्तियों को मिलाकर अच्छी तरह उबाला जाता है। ठंडा करने के बाद, एक मलमल के कपड़े में इसे छान लिया जाता है, जिसे शैम्पू के रूप में उपयोग किया जाता है। इसे 2 से 3 दिनों तक स्टोर किया जा सकता है।

हालांकि, इस फल के कई उपयोग हैं, लेकिन इसका व्यावसायिक रूप से अधिक इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसके पारंपरिक उत्पादों में कैंडी और पाचक पाउडर हैं। अब जाकर कुछ कंपनियां ऐसे टी बैग्स बेच रही हैं जिनमें ये फल मिलाए गए हैं। जाहिर है, यह उन लोगों के लिए अच्छी खबर होगी जिनकी इस पेड़ तक आसानी से पहुंच है।

यह पौधा एनाकार्डियासी फैमिली से संबंधित है जिसे आमतौर पर काजू परिवार या सुमेक फैमिली कहा जाता है। हिमांग गर्म तापमान से लेकर ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में आसानी से उगता है। इसकी 250 से अधिक प्रजातियां हैं और रस चिनेंसिस इसकी एक महत्वपूर्ण प्रजाति है।

व्यंजन : हिमांग चाय

  • हिमांग फल: 1 चम्मच
  • चाय की पत्ती: ½ छोटी चम्मच
  • चीनी स्वादानुसार
विधि : पानी को उबालें और उसमें हीमांग फ्रूट्स डालें। मनचाहे स्वाद का काढ़ा बनकर तैयार हो जाने के बाद फल को छान लें, चीनी डालें और पेय इस्तेमाल के लिए तैयार है। अगर आप स्वाद और औषधीय महत्व को बढ़ाना चाहते हैं तो आप उबलते पानी में अदरक भी मिला सकते हैं। कभी-कभी स्वाद बढ़ाने के लिए इसमें एक चुटकी नमक भी मिलाया जाता है।

हिमांग चूरन
  • हिमांग फल: 100 ग्राम
  • चीनी: 10 ग्राम
  • नमक स्वादानुसार
विधि : हिमांग फल को सुखाकर उसका पाउडर बना लें। चीनी भी पीस लें। तीनों सामग्रियों को एक साथ मिलाएं। अब पाचक चूर्ण तैयार है। आप इसे ऐसे ही खा सकते हैं या सलाद पर चाट मसाला के रूप में छिड़क सकते हैं।

पुस्तक

द सेवन सिस्टर्स: किचन टेल्स फ्रॉम द नॉर्थईस्ट
लेखक: पूरबी श्रीधर, संगीता सिंह
प्रकाशक: वेस्टलैंड बुक्स प्रा. लि.
मूल्य: £R495 पृष्ठ: £226

इस पुस्तक में पूर्वोत्तर भारत के गांवों में लोकप्रिय व्यंजनों को शामिल किया गया है।

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