नरेंद्र मोदी सरकार ने 81.5 करोड़ लोगों को अगले एक साल तक मुफ्त राशन देने की घोषणा की। यह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए) के तहत दी जाएगी। अब तक 2013 से लागू एनएफएसए के तहत रियायती दरों पर राशन दिया जाता है, जबकि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त राशन दिया जा रहा है, लेकिन क्या यह राशन जरूरतमंदों तक पहुंच रहा है? यह जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने दिसंबर के पहले पखवाड़े में कुछ इलाकों में जाकर जमीनी हकीकत जानी। इस कड़ी में प्रस्तुत है, झारखंड के एक आदिवासी गांव की जमीनी तफ्तीश:
देश की राजधानी से लगभग 1200 किलोमीटर दूर झारखंड के एक गांव में रह रही अनार देवी के एक-एक शब्द पर गौर कीजिए, “मेरे पांच बेटे हैं। सब एक-एक करके बाहर चले गए। यहां रह कर करते भी क्या? भूखे मर जाते! इसलिए बच्चों के जाने का दुख नहीं होता। वे अपने बच्चों को शहरों में किसी तरह पाल रहे हैं और हम यहां बूढ़ा-बुढ़िया अपने बचे हुए दिन काट रहे हैं”।
अनार देवी अनुसूचित जाति से हैं। वह झारखंड के पलामू जिले के रामगढ़ ब्लॉक के गांव सरहुआ की हैं। उनके पति सीता राम भुइयां के नाम पर लगभग 80 डेसिमिल (0.8 एकड़) खेती की जमीन है, जिसमें मकई, धान, सब्जी करते हैं।
इस बार झारखंड में पड़े सूखे की वजह से उनके खेतों में एक दाना भी नहीं हुआ। वह जंगलों से जड़ी-बूटी लाते हैं। उन्हें छांटते हैं और सुखा कर बेचते हैं, तब जाकर किसी तरह दोनों पति-पत्नी अपना पेट भर रहे हैं।
हालात ऐसे हैं कि ज्यादातर दिन एक बार ही खाना खाते हैं, ताकि अगले दिन भूखा न सोना पड़े।
अनार देवी बताती हैं कि उनके पास पीला (अंत्योदय अन्न योजना) कार्ड है, लेकिन सात-आठ साल से उन्हें राशन का एक दाना नहीं मिला।
डाउन टू अर्थ को अपना राशन कार्ड दिखाते हुए अनार देवी ने कहा कि यह राशन कार्ड भर गया था, लेकिन उसके बाद न तो नया राशन कार्ड मिला और ना ही राशन। वह अंग्रेजी शब्द “डिलीट” का अर्थ नहीं जानती, लेकिन बताती हैं, “लोग कहते हैं कि उनका राशन कार्ड “डिलीट” हो गया है। अब उन्हें हरा राशन कार्ड से राशन मिलेगा, लेकिन अब तक तो राशन मिलना शुरू नहीं हुआ।“
हरा राशन कार्ड झारखंड सरकार द्वारा उन लोगों को दिया जा रहा है, जिनके पास या तो राशन नहीं है। इस कार्ड पर अंत्योदय अन्न योजना वाले परिवारों को 35 किलो और प्राथमिकता घरेलू परिवारों (पीएचएच) परिवारों को 5 किलो प्रति सदस्य राशन दिया जाता है।
डाउन टू अर्थ ने जब उनका राशन कार्ड देखा तो पाया कि कार्ड में आखिरी पन्ने पर दिसंबर 2015 के बाद कोई एंट्री नहीं थी। वहीं, हरे राशन कार्ड की ऑनलाइन आवेदन की पर्ची देखी और झारखंड सरकार के खाद्य, सार्वजनिक वितरण और उपभोक्ता मामलों के विभाग की वेबसाइट पर आवेदन संख्या की जांच की तो पता चला कि झारखंड सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले हरे कार्ड के लिए उनका आवेदन स्वीकृत हो चुका है, परंतु अनार देवी बताती हैं कि उन्हें आज तक राशन नहीं मिला।
रुआंसे स्वर में वह कहती हैं, “लॉकडाउन के दौरान गांव के लगभग सभी बच्चे अपने घर लौट आए थे, लेकिन उनके बच्चे घर नहीं आए, क्योंकि उन्हें डर था कि गांव में कहीं भूखे न मर जाएं!”
जंगल से लाई गई “जहर महुरा” नाम की जड़ी बूटी को कूटते-कूटते सीताराम भुइंया बताते हैं कि दूसरे परिवारों की तरह उन्हें भी सरकार से राशन मिल जाता तो उन्हें दोनों समय खाने को मिल जाता और जवान बेटों को भी अपने साथ गांव में रख लेते।
लगभग 300 वाले गांव सरहुआ में ऐसे आठ परिवार हैं, जिनके राशन कार्ड रद्द हो चुके हैं, जबकि शायद ही कोई ऐसा परिवार हो, जिसको पूरा राशन मिलता हो। और उन्हें राशन नहीं मिल रहा है।
लगभग सत्तर वर्षीय फगुनी देवी बताती हैं कि उनके आगे-पीछे कोई नहीं। वह अकेली रहती हैं। जनवरी से लेकर अब तक उन्हें केवल दो बार राशन मिला है। वह कोरबा जनजाति हैं, इसलिए उन्हें पेंशन भी मिलती है, लेकिन पिछले 18 महीने से पेंशन भी नहीं मिली।
विकलांग होने के कारण वह खेती भी नहीं कर पाती, इसलिए गांव के लोगों की मदद से अपना पेट भर रही हैं। फिर भी कई दिन वह एक बार ही खाना खाती है और कई बार भूखे पेट सोना पड़ता है।
गांव में रहने वाले लुकस कोरबा झारखंड मजदूर किसान मोर्चा से जुड़े हैं। वह बताते हैं कि उनके गांव ही नहीं, बल्कि पूरे प्रखंड में कई परिवार ऐसे हैं, जिन्हें भरपेट खाना नहीं मिल रहा है। इसकी तीन वजह हैं, एक तो कई परिवारों का राशन कार्ड रद्द कर दिया गया है। दूसरे, प्रखंड में नए राशन कार्ड नहीं बन रहे हैं। तीसरा- जिनके पास राशन कार्ड हैं, उन्हें भी पूरा राशन नहीं मिल रहा है।
लुकस कहते हैं कि उनके प्रखंड में आदिम जनजाति के पीले कार्ड बहुत संख्या में रद्द किए गए हैं। लगभग 380 राशन कार्ड रद्द होने की सूचना उनके पास है।
लुकस के मुताबिक, राशन कार्ड रद्द होने की सूचना लोगों को मिलती ही नहीं है, जब उनका राशन नहीं आता, तब वे अधिकारियों के चक्कर काटते हैं, तब उनसे कहा जाता है कि झारखंड सरकार द्वारा जारी होने वाले हरे कार्ड के लिए आवेदन करें। इस पूरी प्रक्रिया में लोगों का 250 से 300 रुपया खर्च होता है। कई परिवार ऐसे हैं कि जिनके पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि वे आवेदन कर सकें।
भूख के कारण मौतों के मामले में सुर्खियों में रहे झारखंड के जिले पलामू में रह रहे आदिम जनजाति के लोगों का नाम भी राशन सूची से हटाया जा रहा है।
वित्त वर्ष 2017-18 में इन विशेष पिछड़ी जनजाति समूह (पीवीटीजी) के परिवारों को मुफ्त खाद्यान्न वितरण के लिए पीटीजी डाकिया स्कीम लागू करने का निर्णय लिया गया था। इसका मकसद इन परिवारों को उनके घर या जहां भी वह रह रहे हैं तक खाद्य एवं आपूर्ति विभाग द्वारा पैकेटबंद राशन पहुंचाना है।
ऐसे परिवारों की संख्या राज्य के 24 जिलों में 168 प्रखंडों में 68,731 बताई गई है। इन परिवारों को अंत्योदय अन्न योजना के तहत 35 किलो प्रति परिवार राशन दिया जाता है। डाउन टू अर्थ को पता चला कि इस विशेष वर्ग के राशन कार्ड भी रद्द किए गए हैं।
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